भुवन चन्द्र पन्त
एक शख्स अपनी स्विफ्ट डिजायर कार को सड़क के किनारे खड़ी करता है और सड़क के किनारे नालियों में पड़े कूड़े को उठाकर अपनी गाड़ी में रखता है और गाड़ी में बैठकर आगे को बढ़ जाता है । देखने वाला अजनबी का हैरत में पड़ना लाजिमी है । लेकिन यह क्या , दूसरे दिन वही आदमी नालों में कूड़ा बटोरते हुए पुनः नजर आ जाता है । न तो वह कोई सफाई कर्मी हो सकता और न कूड़ा बीनने वाला मजदूर । उसकी ठीकठाक पोशाक देखकर हर अजनबी को पहली नजर में वह कोई ’साइको’ या सिरफिरा लगेगा जो मानसिक से रूप से भटका हुआ विक्षिप्त हो । लेकिन भटका वह नहीं , सच कहें तो भटके वे लोग हैं , जो जहॉ-तहॉ कूड़ा फैंककर अपने शहर, कस्बे को कूडा़घर बनाने पर तुले हुए हैं और ये शख्स ’ लोग क्या कहेंगे’ की परवाह किये बिना कूड़ा उठाकर उसका निस्तारण कर रहा है । नदी नालों को साफ करने का जुनून उस पर इस तरह हावी है कि शिप्रा नदी को प्रदूषण मुक्त व पर्यावरण की रक्षा उसके जीवन का मकसद बन चुका है । यहॉ बात हो रही है, भवाली के समाजसेवी जगदीश नेगी की ।
अपने उद्गम स्थल श्यामखेत नानतिन बाबा के आश्रम से खैरना में कोसी नदी में मिलने वाली शिप्रा नदी, जो कभी बारहोंमास छल-छल,कल-कल निनाद करती प्रवाहित होती थी। अपने उद्गम स्थल से कुछ ही दूरी पर जिसमें पनचक्कियां चला करती थी , पिछले कुछ वर्षों से निरन्तर जलस्तर से जूझती हुई मृतप्राय अवस्था में पहुंच चुकी थी । 2015 में जगदीश नेगी ने इसे फिर से सदा नीरा बनाने का संकल्प लिया और जुट गये शिप्रा सफाई अभियान में ’एकला चलो रे’ की तर्ज पर । हालांकि बाद में लोगों से सहयोग व समर्थन भी छुटपुट मिलता रहा । 2017 में शिप्रा कल्याण समिति नाम से संस्था पंजीकृत की और तब से अनवरत् रूप से अपने मिशन के लिए प्रतिबद्ध हैं । उनके भगीरथ प्रयासों से घरों से शिप्रा नदी में बहने वाले सीवर लाइनों को रोका गया और आज शिप्रा पुराने रूप में न सही , लेकिन जीवन्त हो उठी है । भवाली शहर से लेकर श्मशान घाट तक तथा कैंची धाम में आये दिन स्वयं सेवियों के सहयोग से वे शिप्रा सफाई अभियान में जुटे रहते हैं। सैंकड़ों कट्टे कूड़े को वे शिप्रा नदी से निकाल चुके हैं उनके इस मिशन का ही परिणाम है कि आज शासन-प्रशासन तक शिप्रा सफाई व इसे पुनर्जीवित करने की मुहिम रंग ला रही है और शासन-प्रशासन के प्रोजेक्ट इस दिशा में काम करने लगे हैं ।
कोरोना काल में जगदीश नेगी द्वारा उद्गम स्थल पर बारिश के पानी को रोकने के लिए सैंकड़ों खनतियों का निर्माण करवाया जो आज वर्षाजल को संग्रहित कर शिप्रा के लिए अनुकूल परिणाम दे रही हैं। उनका यह कार्य बदस्तूर आज भी जारी है । भवाली का पुश्तैनी जलस्रोत जमुनाधारा जो कभी भवाली शहर की प्यास बुझाता था , पिछले दो दशकों से अन्धाधुन्ध निर्माण से मलवे से पटकर लगभग सूख चुका था , उसका जीर्णोद्धार कर उसे पुनर्जीवित किया है । इसके साथ ही शिप्रा के उद्गम स्थल के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी बृहद् स्तर पर वृक्षारोपण का कार्य निरन्तर चला रहता है ।
भवाली कस्बे को कूड़ा मुक्त बनाने के जुनून के साथ वे स्वयं के स्रोतों से घर पर ही पेन्ट के पुराने डिब्बों से कूड़ादान बनाते हैं और समय-समय पर बाजार की दुकानों में उन्हें निःशुल्क वितरित करते रहते हैं । समाजसेवा के इसी जज्बे से प्रेरित होकर उन्होंने स्वयं का शरीर भी मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया है ।
प्लास्टिक ने हमारे दैनिक जीवन को जो सुविधाऐं दी हैं , उससे कहीं अधिक चुनौती निष्प्रयोज्य प्लास्टिक के निस्तारण की है । प्लास्टिक की बड़ी वस्तुऐं तो तब भी रिसाइकल कर पुनः उपयोगी में जायी जा सकती हैं, लेकिन टॉफी रैपर , बिस्कुट रैपर, मैगी रैपर,, शैम्पू पाउच और दूध की थैलियां ये कुछ ऐसी निष्प्रयोज्य प्लास्टिक सामग्री है , जो इस्तेमाल के बाद जहॉ-तहॉ फैंक दी जाती है । इन्हें जलाने पर भी वायु प्रदूषित होती है और यों ही जमीन पर पड़े रहने पर या तो मवेशी दूसरे खाद्यसामग्री के साथ उनके पेट में जाकर उनको बीमार करती हैं और इनका एक बड़ा हिस्सा जमीन पर पड़े रहने से धीरे-धीरे सतह से नीचे धसकर जमीन को पानी अवशोषित करने से रोक देता है और उस भूमि पर जंगली वनस्पतियां तक नहीं उग पाती । यही हाल छोटे नदी-नालों व गाड़-गधेरों का है, जो प्लास्टिक से पटी पड़ी हैं । ’यूज एण्ड थ्रो ’ की दिनोंदिन बढ़ती प्रवृत्ति से आज पर्यटक स्थल ही इसकी सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं । अगर सरकारें वास्तव में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से इतनी चिन्तित होती तो प्लास्टिक पैकेजिंग पर ही राष्ट्रीय नीति अपनायी जानी चाहिये थी, लेकिन ऐसा होता दूर-दूर तक नहीं दिखता । हम राष्ट्रीय नीति निर्धारण में दखल नहीं दे सकते तो अपने स्तर पर तो इस समस्या से कुछ हद तक निजात दिला ही सकते हैं, कुछ इसी सोच के साथ शिप्रा कल्याण समिति के अध्यक्ष जगदीश नेगी ने भवाली में एक अभिनव प्रयोग की शुरूआत की है ।
वे पर्यटक स्थलों, बाजारों एवं दुकानों से पानी, कोल्ड ड्रिंक की बोतलों तथा टॉफी , शैम्पू, चाकलेट, बिस्कुट के रैपर तथा दूध की खाली थैलियों आदि को कचरे के रूप में उठाकर लाते हैं और फिर इन्हें पानी की बोतलों व कोल्ड ड्रिंक आदि की बोतलों में किसी लकड़ी या सरिया आदि के टुकड़ों से ठॅूस-ठूॅस कर भरते हैं । इस प्रकार एक ही बोतल में ये प्लास्टिक कचरा बड़ी मात्रा में बोतलों में समा जाता है । प्लास्टिक ठॅूसी गयी इन बोतलों को रंग-बिरंगे रंगों से रंगकर कलात्मक रूप दिया जाता है । प्लास्टिक भरे इन रंगीन बोतलों का उपयोग घर की क्यारियों की मेड़ों , दीवारों आदि में किया जा सकता है, जो देखने में काफी खूबसूरत लगता है । इस प्रकार निष्प्रयोज्य प्लास्टिक के निस्तारण के साथ घर की क्यारियों को भी सजाया/संवारा जा सकता है । इस तरह का प्रयोग लोगों को बहुत भा रहा है । इसी मुहिम को जगदीश नेगी ने रोजगार से जोड़ने का भी प्रयास शुरू कर दिया है । वे गांव के स्वयं सहायता समूह से जुडकर गरीब महिलाओं से इस कार्य में सहयोग ले रहे हैं और इस कार्य का उचित मेहनताना उनको दिया जाता है । इस प्रकार प्लास्टिक निस्तारण के साथ ही महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की यह एक अनूठी पहल है ।
आज इस तरह का प्रयोग भवाली जैसी एक छोटी जगह पर पायनियर प्रोजैक्ट के तौर पर किया जा रहा है , लेकिन इसमें दो राय नहीं कि पूरे देश में व्यापक स्तर पर इस अभियान को प्रारम्भ किया जाय तो निष्प्रयोज्य प्लास्टिक कचरे से बहुत हद तक निजात पायी जा सकती है । अपने इस अभियान को व्यापक रूप देने के लिए जगदीश नेगी अपने इर्द-गिर्द के संस्थानों, विभिन्न समारोहों,स्कूलों में बच्चों के बीच तथा आम जनता में जाकर अपनी बात रखकर जनजागरण कर रहे हैं । इस जनजागरण् अभियान में उनके सहयोगी नीरज जोशी, पूर्व कृषि अधिकारी लाल सिंह चौहान तथा पूर्व दर्जा मंत्री एवं गायत्री सहायता समूह की संयोजक खष्टी बिष्ट का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा है । स्कूलां में इस तरह के जनजागरण का संदेश निश्चित रूप से हर घर तक जायेगा और यदि हर परिवार अपने घर के निष्प्रयोज्य प्लास्टिक का उपयोग इस तरह करने लगे तो प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाले नुकशान को कुछ हद तक तो कम किया ही जा सकता है ।
…………………………………………………………..