विनोद पांडे
आज संसार भर में पर्यावरण का संरक्षण करने की मुहिम चली है क्योंकि मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण इस सीमा तक बिगड़ चुका है कि आने वाले समय में पर्यावरण असंतुलन से पृथ्वी पर हर प्रकार के जीवन को खतरा हो सकता है, कई नयी किस्म की बीमारियां पैदा हो सकती हैं, फसलों का उत्पादन घट सकता है आदि। हमारे पर्यावरण के कई विस्तृत आयाम हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि हर एक प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले जीवों के बीच परस्पर अंर्तसंबंध, क्रियाऐं प्रतिक्रियाऐं चलती रहती हैं। जिसके परिणामस्वरूप रीसाईक्लिंग यानी जो पदार्थ व्यर्थ हो गये हों उनका विघटन और जिन पदार्थों का उपयोग हो चुका हो उनका पुनः उत्पादन लगातार चलता रहता है। इसी कारण एक स्वस्थ पर्यावरण तंत्र में प्रत्येक जीव को उसकी आवश्यकता के अनुसार जीवनोपयोगी भोज्य पदार्थ मिलते रहते हैं।
पर्यावरण की अधूरी समझ के कारण कई बार कई लोग पर्यावरण को बहुत संकुचित अर्थों में समझ लेते हैं जैसे पर्यावरण की बेहतरी के लिए केवल पेड़ ही सब कुछ हैं। जबकि सच ये है कि जीवों के व्यर्थ पदार्थ जिन्हें आम लोग किसी उपयोग का नहीं समझते हैं, जैसे सूखा पेड़ या पेड़ की सूखी टहनी पर्यावरण का अभिन्न अंग है। ये पर्यावरण तंत्र के एक निश्चित क्रिया के अंर्तगत रिसाइक्लिंग का भाग हैं। एक पेड़ या उसकी टहनी के सूखते ही उसमें मौजूद सैल्यूलोज आदि कार्बनिक पदार्थों की मौजूदगी कई प्रकार के फफूंदों और कीड़ों को आकर्षित कर देते हैं क्योंकि यह उनका भोजन है। जिससे उस सूखी टहनी या पेड़ में इन फफूदों और कीड़ों की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है। उनकी संख्या में वृद्धि होने के कारण दूसरी श्रेणी के कीट और पक्षियों के लिए यहां आहार के अवसर पैदा हो जाते हैं। जिसके फलस्वरूप ये कीट और पक्षी पर्यावरण चक्र में दूसरे जीवों का आहार बनते हैं। इसी प्रकार इनका मल मूत्र भी रिसाइकिल होता रहा है। अंततः ये नये बनने वाले पदार्थ मिट्टी में मिल कर मिट्टी को अधिक उर्वर बनाते रहते हैं ताकि उस मिट्टी में नये पौधों को पैदा करने के लिये पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। संक्षेप में इन क्रियाओं को हम सड़ना गलना कहते हैं। यही “सड़ने गलने” से एक सूखी टहनी, सूखी पत्तियां पुनः मिट्टी बन जाती है। जिससे मिट्टी अधिक उर्वर बनकर नये उगने वाले पौधों के लिए उगने का आधार तैयार करती हैं। जो नये पौधे अंततः हमें आक्सीजन प्रदान करने के अलावा हमें कई तरह के जीवनोपयोगी पदार्थ देते रहते हैं।
हम जिन पदार्थों की बात कर रहे हैं उनमें सूखी पत्तियों का बहुत बड़ा भाग है। पतझड़ वाले पेड़ जाड़े शुरू होने से पहले ही अपनी सारी पत्तियां गिरा देते हैं, इन पेड़ों में वसंत आते ही फिर से नई पत्तियां आती हैं। लेकिन पहाड़ों में अधिकांश पेड़ सदाबहार होते हैं, इन पेड़ों की पत्तियां आमतौर पर बंसत के आने पर या कुछ समय बाद गिरती हैं। पत्तियांं के गिरने और नयी पत्तियों के उगने के क्रम में इतना कम समयांतर होता है कि हमें लगता ही नहीं की पेड़ों में पत्तियां गिरकर नयी पत्तियां कब आयी? नैनीताल जैसे इलाकों में अधिकांश पेड़ बांज व सहयोगी प्रजातियों के हैं। इनमें पत्तियां बसंत के आगमन यानी फरवरी के अंत से मार्च में गिरती हैं और नयी पत्तियां आती हैं। संयोग से ये समय ऐसा है जब मौसम खुश्क होने लगता है। जैसे सूखा पेड़ कई प्राणियों के लिए जरूरी है उसी तरह सूखी पत्तियां भी कई जीवों के लिए जीवन का आधार हैं क्योंकि इनमें कई किस्म के पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं। हरी पत्तियों का चारे के रूप में महत्व हम जानते हैं। सूखी पत्तियां जंगलों में बहुत बड़ी संख्या में गिरती हैं। और अंततः सड़कर खाद में बदल जाती हैं। जंगलों में जो वनस्पतियां उगी हैं या जिन्होंने उगना है, उनके लिए यही खाद पोषण का आधार है।
इसी तरह पर्यावरण की अपूर्ण समझ के कारण कई बार लोग मिट्टी के महत्व को नहीं समझते हैं। मिट्टी दरअसल रेत और ह्यूमस का मिश्रण है। मिट्टी में ह्यूमस नाईट्रोजन आदि पोषक तत्व देकर उर्वर बनाता है तो रेत उसमें ऑक्सीजन की सुगमता को बढ़ाता है। वनस्पतियों के उगने से मिट्टी की उर्वरता लगातार कम होती चली जाती है। जिसे पत्तियों आदि के सड़ने से पुनः उर्वर बनाने का काम प्राकृतिक रूप से होता रहता है। दूसरे शब्दों में यदि पत्तियों आदि को मिट्टी में जाने से रोका दिया जाय तो जंगल की भूमि अनुर्वर होती जाती है।
बसासत के दबाब और सरकार के कमजोर नियम कानूनों के कारण नैनीताल में कई जगह जंगलों के बीच में आबादी बस गयी हैं। दूसरे शब्दों में जंगलों के बीच में बस्तियां बस गई हैं। जिससे पत्तियां गिरने के मौसम में लोगों के घरों के आसपास पत्तियां के ढेर जमा होने लगते हैं। आम लोग कूड़े में और पर्यावरण के इस जरूरी तत्व पत्तियों के बीच में अंतर नहीं करते हैं और बेधड़क प्रकृति की इस अदभुत व आवश्यक देन को नष्ट कर देते हैं। हालांकि कानूनन किसी भी किस्म का कूड़ा जलाना प्रकृति के विरूद्ध अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए जुर्माने और सजा का भी प्रावधान है। लेकिन अज्ञानतवश लोग इस अपराध को करने में यह समझते हैं कि के सफाई कर रहे हैं। यही हाल सफाई कर्मचारियों का भी रहता है। क्योंकि पत्तियां जल्दी जल जाती हैं इसलिए वे इन्हें जला देना बेहतर समझते हैं ताकि इलाका साफ दिखे। बेशक सफाई की आदत एक अच्छी आदत है। लेकिन इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि कूड़े को जलाया जाय और विशेषकर कूड़े के नाम पर पत्तियों को जलाया जाय।
इसी तरह कई बार शरारती लोग जंगल में पड़े सूखी पत्तियों में आग लगा देते हैं। किसी भी तरह पत्तियों को आग लगाना अपराध के अलावा पर्यावरण के प्रति अन्याय होने के कारण अनैतिक कार्य भी है। ऐसा नहीं है कि पत्तियां को जलाने के लिए नियम कानून नहीं हैं। उत्तराखण्ड की हाईकोर्ट ने इस संबध में सख्त आदेश दिये हैं कि पत्तियां और कूड़ा जलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाय परन्तु आदेश का पालन नहीं हो पाया है। यदि लोगों की इस गलत आदत को रोका नहीं गया और ऐसा काम करने वालों को टोका नहीं गया तो संभव कि भविष्य में नैनीताल के जंगलों को खाद मिलनी बंद हो जाय और नयी पेड़ उगने के अलावा पुराने पेड़ों के अस्तिव के लिए खतरा पैदा जायेगा। दूसरे शब्दों में यहां के जंगल जिन पर कई तरह के दबाब हैं पूरी तरह बर्बाद हो जायेगें। इसलिए जरूरी है कि हम समय पर इस समस्या को समझें और इस तरह के काम करने वाले लोगां को ऐसा करने से रोंके और यदि वे नहीं मानते हैं तो इसकी शिकायत थाने या वन विभाग या नगरपालिका में करें।
पर्यावरण संरक्षण एक बहुत बड़ा काम है, जिसके लिए हमें कई तरह की बारीकियों को समझना होगा और उन पर अमल करना होगा। एक स्वयंसेवक व पर्यावरण कार्यकर्ता की तरह कार्य करना होगा। इस तरह हम पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं। इस छोटे से लगने वाले काम का महत्व समझ कर हम वनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण काम कर सकते हैं।