अतुल सती
अक्टूबर के महीने में इतनी भीड़ पहले कभी नहीं देखी। पिछले 40 साल में तो नहीं। बुजुर्गों का भी कहना है कि कभी ऐसा न हुआ। सितम्बर महीने में पितृविसर्जन के बाद यात्रा बिलकुल मद्धम पड़ जाती थी। हमसे भी कोई राय लेता या अपना करीबी कोई पूछता कि कब आएं बद्रीनाथ ? तो हम यही कहते सितम्बर—अक्टूबर में क्योंकि तब मौसम भी अनुकूल होता है और भीड़—भाड़ भी नहीं होती है।
अभी कुछ दिन पहले बीबीसी के साथी जोशीमठ के भूस्खलन की रिपोर्ट के लिए आ रहे थे। बारहा पूछते रहे कि बारिश का पूर्वानुमान दिखा रहा है लैंडस्लाइड तो नहीं होगा। मैं बार—बार यही दोहराता कि इस महीने की बारिश में लैंडस्लाइड नहीं होता, आप निश्चिंत हो चले आएं। ऐसा मैंने इसलिये कहा क्योंकि अनुभव यही रहे हैं। 16 अक्टूबर को ही बद्रीनाथ में 20 हजार पर्यटक रहे होंगे। जोशीमठ के एक सज्जन मिले उनका होटल है बद्रीनाथ में, कहने लगे आप हमारे यहां ठहरते परन्तु आज पूरा भरा है। ऐसे ही एक अन्य व्यवसायी भी बोले आजकल तो रोज़ ही फुल चल रहा है।
2012 में कुल 12 लाख यात्री/पर्यटक बद्रीनाथ आए थे। जून 2013 कि आपदा के बाद यात्रा थमी जो पुनः 2015-16 तक कुछ उसी रंग में आने लगी। 2018 में 10 लाख के करीब पहुंचे होंगे। फिर कोरोना के कारण 20—21 तक कम रहा। इस बार अभी तक ही 18 लाख से ऊपर पहुंच चुके होंगे और अभी यात्रियों का आना जारी है।
ऐसा माना जाता था कि बद्रीनाथ यात्रा सुगम है, मंदिर तक ही गाड़ी जाती है इसलिए यहां यात्री अधिक संख्या में पहुंचते हैं परन्तु केदारनाथ भी अभी तक 11 लाख के करीब यात्री पहुंच चुके हैं। 17 अक्टूबर को केदारनाथ में 10-15 हजार यात्री थे। खूब लम्बी कतारें लगी थीं। बद्रीनाथ से लौटते समय वहां बर्फबारी हो रही थी, केदारनाथ तो और भी ऊंचाई पर है।
मई—जून के महीने में जो भीड़ और धक्का—मुक्की होती थी वह आजकल दिख रही है। यह व्यापार और कमाई के लिहाज से तो अच्छा है। भले ही व्यापार वाले ही इस परिदृश्य को किंचित अचरज से देख रहे हैं। इसे सही संकेत नहीं मान रहे हैं। जो व्यापार से खुश भी हैं वे भी इस भीड़ से कुछ आशंकित से हैं। सभी यह जानते हैं कि चाहे जो हो पर यह क्षेत्र ऐसी भीड़—भाड़ और इतने ज्यादा दबाब को सहन नहीं कर सकता। यह सामान्य समझ हर आम—ओ—खास को है। 2013 कि आपदा को लोगों ने देखा है उसके परिणाम भी देखे हैं।
सोने के अंडे तो ठीक हैं मगर मुर्गी का पेट ही चिर गया तो… परन्तु इसको नियंत्रित भी कैसे किया जा सकता है ? व्यवस्थाएं भी आप कितनी बढ़ा लोगे ? उसका दबाब अंत में इस क्षेत्र के पर्यावरण पर ही पड़ेगा। अभी ही इतने लोगों की गंदगी के व्यवस्थित निकासी के इंतजाम नहीं हैं। वह तो 6 माह सब बन्द रहता है तो कुछ संतुलन प्रकृति बनाती होगी। परन्तु जब यह इस हद को पार कर रहा है तब विस्फोट ही होगा।
दन्तकथा है कि कभी भी नरसिंह की वह पतली कलाई टूट गिरेगी और बद्रीनाथ अगम्य हो जाएगा। पर लगता ऐसा है कि यात्रा का जो यह अतिशय बहाव है यह उस कलाई को वक़्त से पहले मरोड़ कर तोड़ डालेगा। इसलिए इस परिदृश्य को समझना होगा। इसके कारण और समाधान वक़्त रहते तलाशने होंगे। यह इस क्षेत्र की सुरक्षा, शांति, सौंदर्य और संतुलन के लिए जरूरी है। सिर्फ इस क्षेत्र के लिये ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए भी उतना ही जरूरी है।
यह क्षेत्र वह ताजी सांस है जिसके बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। आस्था से बहुत ऊपर यह अस्तित्व का सवाल भी है।