जगमोहन रौतेला
गत 24 नवम्बर को उत्तराखण्ड के एक दर्जन से अधिक पूर्व विधायक दलगत राजनीति को किनारे रख कर देहरादून में विधानसभा के कमरा नम्बर 120 में एकत्र हुए. यहां हुई बैठक में राज्य के सभी दलों भाजपा, कांग्रेस, बहुजनन समाज पार्टी, उत्तराखण्ड क्रांति दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राज्य की पहली विधानसभा में इसका एक विधायक निर्वाचित हुआ और निर्दलीय पूर्व विधायकों का एक गैर राजनीतिक संगठन बनाने का निर्णय किया गया. अपने इस एकत्र होने का बाहरी कारण इन लोगों ने राज्य के कुछ ज्वलन्त सवालों पर प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति बनाना बताया और कहा कि वे लोग विधानसभा अध्यक्ष के माध्यम से राज्य के ज्वलंत सवालों को उठायेंगे और जिन जन मुद्दों पर प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने की सहमति सभी विधायकों में बनेगी उसके लिए प्रदेश पर दबाव भी बनाया जाएगा.
पूर्व विधायकों के संगठन का नाम “उत्तराखण्ड पूर्व विधायक संगठन” रखा गया है. इसकी कमान भाजपा के पूर्व विधायक लाखीराम जोशी को सौंपी गई है, जबकि भाजपा के ही पूर्व विधायक भीमलाल आर्य को संगठन का सचिव बनाया गया है. बैठक के बाद पूर्व विधायकों के यमुना कॉलोनी में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण से उनके आवास पर मुलाकात की और उन्हें राज्य के कुछ ज्वलन्त सवालों पर एक ज्ञापन भी सौंपा. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से विधानसभा की विभिन्न समितियों की तरह ही पूर्व विधायकों की एक संवैधानिक समिति बनाने का अनुरोध किया. संगठन के अध्यक्ष लाखीराम जोशी ने मुलाकात के बाद दावा किया कि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने उनकी मांगों पर विचार करने का भरोसा दिया है. जोशी ने कहा कि दिसम्बर 2022 में देहरादून में पूर्व विधायकों का एक सम्मेलन किया जाएगा. जिसमें संगठन की पूरी रुप रेखा बनाई जाएगी और यह भी तय होगा कि वह किस तरह से काम करेगी. उन्होंने कहा कि पूरे उत्तराखण्ड में इस समय 148 पूर्व विधायक हैं.
पूर्व विधायकों को संगठन बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसके जवाब में जोशी ने कहा कि इस समय पूरे प्रदेश में पूर्व विधायक एक तरह से उपेक्षा के शिकार हैं. उन्हें कोई नहीं पूछता, जबकि उन लोगों के पास अनुभव का विशाल खजाना है. सरकार भी उन्हें कोई महत्व नहीं देती है. कई पूर्व विधायक तो उत्तर प्रदेश में भी विधायक रहे हैं. ऐसे विधायकों का जनता के बीच कार्य करने और उनके मुद्दों को समझने का लम्बा अनुभव हैं. अनुभवी पूर्व विधायकों की न सरकार सुन रही है और न नौकरशाही. अपने अनुभवों का लाभ राज्य की जनता को देने के लिए ही संगठन बनाया गया है. इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं है. इसी कारण इसे गैर राजनीतिक बनाने का निर्णय किया गया है. जोशी ने वैसे तो बैठक में 35 विधायकों के शामिल होने का दावा किया, लेकिन अधिकारिक तौर पर एक दर्जन विधायकों के नाम ही सामने आए. जिनमें लाखीराम जोशी व भीमलाल आर्य के अलावा हरक सिंह रावत, हीरा सिंह बिष्ट, कुँवर प्रणव सिंह चैम्पियन, देशराज कर्णवाल, राजेश जुंआठा, मातबर सिंह कण्डारी, गोविन्द लाल शाह, मुन्नी देवी, विजय सिंह पंवार, ओमगोपाल रावत के नाम शामिल हैं.
पूर्व विधायकों द्वारा उनकी एक संवैधानिक समिति बनाने का मांग पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने कहा कि कुछ पूर्व विधायक उनसे मिले और उन्होंने राज्य हित में विधानसभा के माध्यम से कार्य करने का अनुरोध किया. उनकी कई मांगें सही लगी. वे सभी लोग राजनीति में अनुभवी लोग हैं. जनता के बीच काम करने का उनके पास अपना अनुभव है. वे जमीन की राजनैतिक हकीकत को समझते हैं. लम्बे समय तक विधायक रहने वाले कई पूर्व विधायकों के पास कई ऐसे सुझाव थे, जो सदन के संचालन और उसकी लोकतांत्रिक गरिमा को मजबूती देने में योगदान दे सकते हैं. इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है?
पूर्व विधायकों के इस संगठन में पूर्व मुख्यमंत्रियों की क्या भूमिका होगी? और वे इस संगठन में शामिल होंगे या नहीं? इस बारे में अभी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है. लाखीराम जोशी कहते हैं कि इस बारे में तो कुछ टिप्पणी नहीं करते, लेकिन कहते हैं कि हमने संगठन में शामिल होने के लिए भाजपा-कांग्रेस दोनों के प्रदेश अध्यक्षों को संगठन में शामिल होने का निमन्त्रण दिया है. बाहरी तौर पर पूर्व विधायकों की यह पहल राज्य के विकास के लिए बहुत बेहतर नजर आती. पर असल में यह सारी कवायद राज्य हितों की आड़ में खुद के हित साधने की है. इन पूर्व विधायकों को जहां लगता है कि वे कथित तौर पर उपेक्षा के शिकार हैं, वहीं इन्हें यह भी लगता कि “बढ़ती महंगाई के दौर में उनकी पेंशन बहुत ही कम है” और उसे बढ़ाकर दोगुना कर दिया जाना चाहिए.
इसके अलावा पूर्व विधायकों की पारिवारिक पेंशन को भी दोगुना करने, पेट्रोल – डीजल के लिए मिलने वाला मासिक भत्ता भी दोगुना करने, उनके परिवार के सभी सदस्यों को बीमार होने पर कैशलेस इलाज की सुविधा देने (परिवार की परिभाषा में कौन-कौन लोग शामिल होंगे, अभी यह स्पष्ट होना बाकी है), भवन निर्माण व वाहन खरीदने के लिए ब्याज मुक्त ऋण सुविधा देने (यहां भी यह स्पष्ट होना बाकी है कि एक पूर्व विधायक को कितने साल में कितनी गाड़ियों और जीवन में कितने भवन (मकान नहीं) बनाने के लिए ब्याज मुक्त ऋण चाहिए?), विश्राम गृहों में नि:शुल्क आवास का सुविधा दिए जाने की मांगें शामिल हैं.
इन पूर्व विधायकों को बिना कुछ किए धरे अब एक लाख से दो लाख तक की पेंशन हर महीने चाहिए. अभी पांच साल के कार्यकाल के हिसाब से एक पूर्व विधायक को लगभग 50,000 से 1 लाख के ऊपर तक पेंशन मिलती है. जिसमें समय-समय पर बिना किसी बात के बढ़ोत्तरी होते रहती है. दरअसल विधायकों का दुख व पीड़ा राज्य विकास को लेकर बिल्कुल नहीं है. उसकी आड़ में अपने लिए मुफ्त पेंशन और दूसरी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी करवाना है. तभी ये सभी पूर्व विधायक अपने दलगत मतभेद भुलाकर एक संगठन के नीचे एकत्र हो रहे हैं. इनकी असली रंग तो इस महीने दिसम्बर में होने वाले सम्मेलन में नजर आएगा.
पेंशन बढ़ाने की मांग करने वाले विधायकों में गिनती के दो-चार विधायकों को छोड़कर कोई भी करोड़पति से कम नहीं है और सबके पास दो-दो, तीन-तीन जगह आलीशान भवन भी हैं. विधायक बनने के तुरन्त बाद ही अधिकतर नेताओं ने देहरादून में या तो मकान खरीदें हैं या फिर प्लाट. बड़ी सी लग्जरी गाड़ी खरीदना तो जैसे अनिवार्य सा है. विधायक बनते ही रातों—रात इतना पैसा कहां से आ जाता है? कितने पूर्व विधायक हैं जो रोडवेज़ की बस में “पास” पर यात्रा करते हैं. इसके अलावा इनमें से अधिकतर विधायकों के अपने कई तरह के व्यवसाय भी हैं. इसके बाद भी इन्हें जनता के विकास में लगने वाले पैसों में से अपने लिए मुफ्तखोरी की सुविधा क्यों चाहिए? इसका जवाब इनमें से किसी के पास नहीं होगा. सिवाय कुछ किन्तु-परन्तु लगाकर अपनी गैर वाजिब मांगों को सही ठहराने के!