हिमांशु जोशी
● कुछ दिनों पहले अभिनेत्री पूनम पांडे ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए सर्वाइकल कैंसर की वजह से अपनी मौत की झूठी खबर फैलाई थी। पूनम पांडे के लिए तो यह बस एक पब्लिसिटी स्टंट बनकर रह गया लेकिन हर महिला के लिए सर्वाइकल कैंसर का नाम इतना मामूली नही होता। अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन हम महिलाओं के सर्वाइकल कैंसर पर बात कर सकते हैं, जिसका एक महत्वपूर्ण कारण पीरियड्स के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल करना होता है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में सोबन सिंह जीना यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के शोध छात्र आशीष पंत किशोरियों में मासिक धर्म से संबंधित प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। आशीष बताते हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी मम्मी को पीरियड्स के दौरान पैड की जगह गंदे कपड़ों का इस्तेमाल करते हुए देखा था और उनकी मां की मृत्यु कैंसर से हो गई थी। आशीष को नहीं पता कि उनकी मृत्यु किस कैंसर से हुई थी लेकिन वह गंदे कपड़े के इस्तेमाल को भी अपनी मां की मृत्यु के कारण समझते हैं। इसके बाद एक दिन उनकी बहन ने भी उनसे शर्माते हुए पैड मंगवाया था।
इन कारणों से ही उन्होंने ‘सोच’ एनजीओ की शुरुआत की, इसका उद्देश्य मासिक धर्म संबंधी जागरूकता फैलाना है।
● अब भी 45 प्रतिशत महिलाएं कर रही हैं कपड़े का इस्तेमाल।
आशीष बताते हैं कि साल 2021 में उन्होंने अल्मोड़ा के आसपास के गांवों में पैड के इस्तेमाल को लेकर 15 से 45 साल की महिलाओं पर अध्ययन किया था।
जिसमें उन्हें यह चौंकाने वाली जानकारी मिली कि 45% महिलाएं अब भी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल कर रही थी।
पिछले साल उन्हें ताकुला क्षेत्र में एक लड़की मिली जो इतनी गरीब थी कि वह सरकारी योजना से मिलने वाले छह रुपए तक का पैड खरीदने में भी सक्षम नहीं थी।
अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज में पढ़ रही एक लड़की ने उन्हें बताया कि उसने अपने पहले मासिक धर्म के दौरान अखबार का इस्तेमाल किया था।
आशीष कहते हैं कि अभी भी अल्मोड़ा के आसपास के कई गांवों की लड़कियों को यह तक नहीं पता कि पैड का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है, कई लड़कियां एक ही पैड को 12 घंटे तक पहनती है, उन्हें एक लड़की मिली जो पैड का सही इस्तेमाल करने के लिए मुंह से खोल रही थी।
● मेंस्ट्रुअल कप है काम का।
उत्तराखंड के गांवों में पैड की उपलब्धता का न होना और कुछ परिवारों का इतना गरीब होना कि वह पैड भी नही खरीद सकते, महिलाओं में माहवारी से आने वाली समस्याओं का मुख्य कारण है। मेंस्ट्रुअल कप का सही इस्तेमाल इसका समाधान हो सकता है।
इस विषय पर बात करते हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल के पौढ़ी कैम्पस में अंग्रेजी की शोध छात्रा प्रियंका नेगी कहती हैं कि मैंने तीन महीने मेंस्ट्रूअल कप इस्तेमाल किया, इसके बाद मुझे मेंस्ट्रुअल कप के पांच फायदे लगे।
जिसमें पहला फायदा यह है कि पैड ज्यादा ब्लड फ्लो होने पर लीक होने लगता है और उसे पहनने में हमें यह डर लगता है कि कहीं टेबल,चेयर,बिस्तर जहां भी हम बैठे हैं वहां खून का कोई निशान ना पड़ जाए। कप में हमें यह दिक्कत पेश नहीं आती है, मेंस्ट्रुअल कप में ही ब्लड इकट्ठा हो जाता है और निशान पड़ने की कोई चिंता नही रहती।
मेंस्ट्रूअल कप का दूसरा फायदा यह है कि पैड इस्तेमाल करने पर शरीर में रैशेज पड़ जाते हैं, लेकिन मेंस्ट्रुअल कप का प्रोसेस अलग है तो इसमें रैशेज भी नहीं पड़ते, हां किसी को इससे एलर्जी जरूर हो सकती है पर मुझे नहीं हुई। मैं मानती हूं कि अगर इसको सही से इस्तेमाल किया जाए तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी।
मेंस्ट्रूअल कप इस्तेमाल करने का तीसरा फायदा यह है कि इसमें कभी ऐसा महसूस नहीं होता कि हमने अपने शरीर में कुछ पहन रखा है। जैसे पैड में हमें हमेशा महसूस होते रहता है कि कहीं यह अपनी जगह से आगे पीछे, दाएं बाएं खिसक तो नहीं रहा है लेकिन मेंस्ट्रूअल कप हमें अपने शरीर का हिस्सा ही लगता है।
चौथा और अगर मैं कहूं तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि मेंस्ट्रूअल कप में यह झंझट नहीं रहता कि इसे फेंकना कहां है, जबकि पैड को डिस्पोज करने में कई दिक्कतें आती हैं।
पैड को जलाएं तो यह जल्दी जल भी नहीं सकता और इसे इस्तेमाल करने के बाद तो इसको जलाने में तीन से चार घंटे लग जाते हैं, जो बहुत ही थकाने वाला होता है। खेत और नदी में हम इसे फेंक नही सकते।
मेंस्ट्रुअल कप पैड से सस्ता भी है क्योंकि पैड आपको हर महीने खरीदना है लेकिन इसको आप एक बार खरीद लें तो फिर यह लंबे समय तक चल सकता है। कप रखने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है, इसको आप अपने बैग, जींस की जेब कहीं भी रख सकते हैं।
सिर्फ एक समस्या जो मुझे मेंस्ट्रूअल कप में लगी वह यह कि जो लड़कियां खून देखकर डरती हैं, उन्हें इसको पहली बार इस्तेमाल करने पर डर लग सकता है लेकिन बाद में वह भी इसकी अभ्यस्त हो जाएंगी।
● मेंस्ट्रुअल कप के फीडबैक पर एक नजर।
प्रियंका नेगी कहती हैं कि मैं अपने मेंस्ट्रुअल कप के रिज़ल्ट्स से खुश थी इसलिए मैंने यह औरों के साथ भी साझा किया।
कप में स्विच करना आसान नहीं है लेकिन इसे करने के बाद अच्छा लगता है इसलिए इन्हें लेकर मैं गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी कैंपस के गर्ल्स हॉस्टल में गई।
वहां मेरी एक जूनियर है जो खुद भी दो साल से कप इस्तेमाल कर रही है। उसे मैंने पहले ही ये आग्रह कर लिया था कि मैं मास्टर्स वाली लड़कियों से इस संबंधित बात करना चाहूँगी।
मेरी अपेक्षा से अधिक लड़कियां बिल्कुल ठीक समय पर पूरे उत्साह के साथ मेस हॉल में एकत्र हो गयी थीं।
कप मेरे पास 6 ही थे लेकिन लड़कियां 25 के लगभग थीं। बातचीत बहुत अच्छी रही, उस ग्रुप में अब तक कोई भी कप इस्तेमाल नहीं कर रहा था। मैंने ‘कप पैड से बेहतर क्यों है’ पर बात रखी तो वहीं अपराजिता ने ‘कप कैसे इस्तेमाल करें’ बताया। उसने अपने खुद के शुरुआती अनुभव भी साझा किए।
एक बात जो हम बोलना नहीं भूले वो ये कि हर किसी का शरीर अलग है, हो सकता है कोई ट्रिक हमारे लिए काम करती हो लेकिन दूसरे के लिए नहीं। तो ये जरूरी है कि पहले तो हम अपने शरीर को समझें, उसे स्वीकारें और फिर उसके अनुसार चीजों का चुनाव करें।
कॉलेज की लड़कियों के साथ-साथ मैंने मेंस्ट्रुअल कप अपनी पहचान की कुछ शादीशुदा महिलाओं को भी दिए। इन सब का फीडबैक यह निकला की जो महिलाएं सेक्शुअली एक्टिव हैं ,उनको इसका इस्तेमाल करने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती है लेकिन जो लड़कियां सेक्शुअली एक्टिव नहीं है उनको मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने में दिक्कत आती है तो मेरा रिकमेंडेशन यह रहेगा कि इसका इस्तेमाल शादी के बाद ज्यादा किया जाए।