जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा इन दिनों जान पड़ता है कि सम्मोहन के असर में है और साथ ही इश्क में भी मुब्तिला है। सम्मोहित आदमी वही महसूस करता है जो उसे करवाया जाता है। क्योंकि सम्मोहनकर्ता का यही निर्देश होता है। और इश्क की कैफियत का तो फिर कहना ही क्या। चारों ओर बस फूल ही फूल खिले होते हैं। दर्द मीठी लोरी सा लगता है और सड़े चूहे से गेंदे की सी महक आती है- जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे, दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे।
हर वो हिन्दुस्तानी जो वर्तमान में साँसे ले रहा है परम सौभाग्यशाली है कि उसे उपरोक्त अद्भुत और ऐतिहासिक मनोदशा के अनुभव के लिए एक और जन्म लेने की जहमत से राहत मिल गई। जो मर गए और जो अजन्मे हैं, हमें उनके फूटे नसीबों पर दो आँसू बहाने चाहिए कि वे इस अद्भुत अनुभव से वंचित रह गए।
इन्द्रजाल कॉमिक्स का मुख्य पात्र मेंड्रेक आपको याद होगा जो जबरदस्त मैस्मेरिज्म से अपने प्रतिद्वंद्वियों को भ्रमित कर पल भर में धराशायी कर देता था। बाकी उठा-पटक का काम उसका बलवान दोस्त लोथार कर देता था। शुद्ध स्वदेशी अंदाज में बताइए- वर्तमान समय में चाचा चौधरी कौन, साबू कौन और रॉकेट कौन ?
मौजूदा समय को यूँ ही अद्भुत नहीं कहा, यह वाकई अद्भुत, अनोखा और टाइम कैप्सूल में ममी बना कर रखने लायक है। क्योंकि इतिहास में ही भविष्य के बीज छिपे होते हैं।
हम एक नये किस्म का तर्कशास्त्र गढ़ा जाना देख रहे हैं। बड़े से बड़े तर्कशास्त्री को भी लाजवाब कर देने वाली नई दलीलों के जनसुलभ संस्करण इन दिनों फिजा में गर्दिश कर रहे हैं। हमारे जवान रात, दिन खड़े होकर देश की हिफाजत कर रहे हैं और आप जरा देर लाइन में खड़े नहीं रह सकते, क्यों देश को बदनाम करते हो ? जनता को जब इतनी तकलीफ हो रही है तो उस आदमी की तकलीफ का अंदाजा लगाइए जो अकेला करोड़ों लोगों की परेशानी दूर करने में लगा है….
यह समय नए धंधों और लतीफों का भी है। एक धंधा कमीशनखोरी का है और दूसरा कुछ पैसों के बदले किसी के लिए लाईन में लगने का, कि ज्यों ही नंबर आए मुझे फोन कर देना, मैं तब तक दूसरे काम निपटा लूँ। लतीफा एक बैंक कर्मचारी ने सुनाया कि हमारी ब्रांच में चार-छः लोग शादी का कार्ड लेकर आ चुके हैं, कि हमें ढाई लाख रुपया दो। चैक करने पर उनके खाते में ढाई लाख से कम निकले। उन्होंने कार्ड लहराते हुए कहा, तो क्या हुआ, अखबार में छपा है शादी है तो ढाई लाख मिलेंगे, टीवी में भी आया था।
यह मनोदशा प्यार में पड़े हुए की-सी नहीं तो और क्या है कि आदमी यह सोच कर खुश है जिन्दगी में पहली बार उनके खाते में इतना रुपया है, वर्ना मेरी कहाँ औकात। ठीक है मेरा नहीं है, दोस्त का है, रिश्तेदार का है, बनिए का है, मालिक का है पर है तो अभी मेरे खाते में न! तो ? मैं तो इस जनम में सोच भी नहीं सकता था।
टेलीविजन में अलौकिक नजारा है, देखने वालों की आँखें एक अजीब सी कैफियत से डबडबा आई हैं। एक 97 साल की उम्रदराज महिला लाईन में लगकर पुराने नोट बदलवा रही हैं। निःसन्तानों को अपने बेऔलाद होने का अब कोई अफसोस नहीं। जब वो महिला लाइन में लग सकती हैं तो हम अपनी पेशाब की थैली हाथ में लिए, गर्भ में बच्चा लिए, दुधमुँहे बच्चे को घर में छोड़, दुःखते घुटने और कमर, शुगर और बीपी के साथ, कुछ देर धंधा बंद करके, नौकरी से बंक मार के, बैसाखी के सहारे क्यों नहीं लाइन में लग सकते ? अन्न जहाँ का हमने खाया, वस्त्र जहाँ के हमने पहने, उनकी रक्षा कौन करेगा बे ? हम करेंगे-हम करेंगे।
रोज सुबह-सुबह चाय के साथ बड़े ही शुभ-शुभ समाचार हमारी रगों में कानों और आँखों के जरिए उतर रहे हैं। हमारा पड़ोसी पाकिस्तान पूरा बर्बाद हो गया और चीन आधा। कश्मीर में अमन आ गया। माओवादी पता नहीं कहाँ चले गए। सारे जमाखोर उजड़ गए, बड़े-बड़े उद्योगपतियों का भट्टा बैठ गया, सारे राजनीतिक दलों को खाने के लाले पड़ गए, फलाँ लालाजी ने अपने सारे कर्मचारियों को दो साल का वेतन एक मुश्त दे दिया, काली कमाई गंगाजी में बहा दी, लोग नहर में जाल डालकर नोट पकड़ रहे हैं। हर खोखे वाले ने स्वाइप मशीन रख ली है (शनिदान वालों ने भी शायद मशीन आर्डर कर दी हो)। आम आदमी खुश है ये देखकर कि पृथ्वी में जब से जीवन शुरू हुआ पहली बार ऐसा हुआ कि सबकी औकात ढाई लाख मात्र की हो गई, फिर चाहे राजा हो या रंक। यह अद्भुत दौर है। इतने बड़े फैसले की खबर मंत्रिमंडल तो क्या वित्त मंत्री तक को नहीं लगने दी- लोग बातें कर रहे हैं, ताली पीट रहे हैं, आपस में धौल जमा रहे हैं, खुशी के अतिरेक में गुटके की पीक अपने ही गिरेबान में गिरी जा रही है, कोई नहीं जी…..कोई नहीं, सोने की चिड़िया, विश्व गुरु और भौत सही दिमाग लगाया गुरू उसने, नास्त्रेदमस ने भी कहा है….. जैसे वाक्य, कानों में रस घोल रहे हैं।
एकाध टीवी चैनल, बीच-बीच में कुछ अखबार और सोशल मीडिया बदमजगी पैदा कर दे रहे हैं कि लाइन में लगे इतने लोग मर गए, शादी टल या टूट गई, मय्यत घर में पड़ी रही बेटा लाइन में लगा रहा, पुराने नोट होने पर मरीज भर्ती नहीं हो पाया नतीजन दर्द ही दवा बन गया। सेना के साथ हुई मुठभेड़ के बाद कश्मीरी अलगाववादियों के पास चूरन के नोटों की खेप बरामद, हजार का नोट छः सौ में चला, लोग रजाई लेकर एटीएम के बाहर सोये, देर रात काम निपटा कर बैंक कर्मचारी घर जा रहे थे, गाड़ी भिड़ गई परलोक सिधारे, विदेशी पर्यटक वापस जाने के लिए चन्दा कर रहे हैं, दिहाड़ी मजदूर मजबूरन घर चले गए, बाजार बैठ गया, दो हजार रुपया जेब में है मगर आदमी चाय नहीं पी सकता, दारू की दुकान में सैल्समैन कहता है- पव्वा नहीं पूरा खम्बा लो तभी नोट चलेगा, पार्टी विशेष से जुड़े कई लोगों के पास से लाखों-करोड़ों की नई करेंसी पकड़ी गई…..
एक योगाचार्य बेचारे न जाने किस मजबूरी से बैंक की लाइन में लगे और गश खाकर गिर पड़े। अब बताइए योग विद्या का इससे ज्यादा नुकसान और कौन कर सकता है ? मजे की बात यह कि उन्होंने ही फरमाया था कि बैंकों में लम्बी लाइनें जो हैं वो विपक्षी दलों द्वारा प्रायोजित हैं।
लगता है जैसे कोई पागल या नशेड़ी एक बेतरतीब सी कहानी सुना रहा हो- एक बुढ़िया थी जो बचपन ही में गुजर गई…..
मैंने भी अपने बड़ों से सुना है सो आगे बढ़ा देता हूँ कि उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। थामे रहिए, हमें हर हाल में सकारात्मक सोचना चाहिए, उम्मीद करनी चाहिए कि भला होगा। उम्मीद के इस दामन को हाथों में ही थामे रहें, इससे आँखें न ढँक लें।
वर्तमान परिदृश्य की तुलना सम्मोहित और प्यार में पड़े हुए की-सी मनोदशा से की थी। सम्मोहन में आदमी लगभग बेहोश होता है और प्यार तो जगजाहिर है कि अंधा होता ही है। सम्मोहन से देर सबेर आदमी बाहर निकल आता है पर इश्क बड़ा कमीना होता है, इसे आदमी दिल पर ले लेता है। दरअसल आजकल इश्क कोई करता नहीं, इसकी आड़ में व्यापार करते हैं, बदले में कुछ चाहते हैं। वर्ना तेजाब से चेहरा क्यों जला देते या ऐसा गाना क्यों लिखते- तुम किसी और की होगी तो मुश्किल होगी ? इश्क करने के लिए बड़ा जिगर चाहिए साहब कि जरूरत पड़ने पर आप खुशी-खुशी अपने हाथों अपनी प्रेमिका का कन्यादान कर दें। ऐसे आशिक इस संसार में कुल जमा कितने होंगे आपके हिसाब से ? यही बात सोच के मैं खुश हूँ कि डरा हुआ हूँ, कह पाना मुश्किल है फिलहाल।