समाचार डेस्क
24 अक्टूबर को जब हम नैनीताल से रामगढ़ को निकले तो टूटा पहाड़ से ही भयानक वर्षा से हुए दंश के निशान मिलने लगे। जगह-जगह बिन दांत के पानी ने सड़क को कपोर कर रख दिया था। केवल 30 प्रतिशत सड़क पर आवागमन चल रहा था। भवाली से आगे रामगढ़ वाली सड़क यूं तो दिखने में साबुत लग रही थी पर 5 दिन बाद भी जे.सी.बी. से मलवा साफ किए जाने के बावजूद टूटे पेड़ों, गीली मिट्टी, पत्थर, टूटी चट्टानों के हिस्से रास्ते भर मिलते रहे।
जमरानी, जो कि मल्ला रामगढ़ और तल्ला रामगढ़ के मध्य स्थित है, में भूस्खलन से दबकर दो मौतें हुईं थीं पर सीमित साधन और समय के अभाव के कारण हम इस स्थान और झूतिया, जहां 9 मजदूरों की दब कर मौत हो गई थी, जा नहीं पाए।
नैनीताल से बोहराकोट (तल्ला रामगढ़) पहुंचते पहुंचते 3 घंटे लग गए। बोहराकोट पहुंच कर देखा कि एक छोटी सी पुलिया के पार एक बहुत लम्बा-चौड़ा रौखड़ (सूखी नदी जिसमें पत्थर ही पत्थर रह गए हों) है। समझ नहीं आया कि पुलिया के बाद रौखड़ क्यों है ? और इस रौखड़ के मुहाने पर मकान क्यों बने हैं ? नजदीक जाकर देखा तो रौखड़ के मुहाने पर बने मकानों की पहली मंजिल साफ थी और उनके आगे पीछे मलवे का ढेर था। इस ढेर में बिक्री के लिये रखे गए जूते-चप्पल, कपड़े आदि-आदि सामान का कीचड़ पड़ा था। पता चला कि यह लम्बा चौड़ा रौखड़ या पत्थरों की नदी नहीं बल्कि 18 अक्टूबर से पहले यह आड़ू का बगीचा था। 5 दर दुकानें यहाँ मय सामान साफ हो चुकीं थीं। 3 मकान मलवे में मिल चुके थे। जेवर, पैसा, साजो-सामान सब 19 ता. की प्रातः 3.30 बजे आई बाढ़ में बह चुका था। एक महिला (जिनका नाम मैं भूल रहा हूँ) कह रही थीं कि सब चला गया, कुछ नहीं बचा। पर अब भी हम दो वक्त का खाना खा रहे हैं। मगर बच गए मवेशियों के लिये घास कहां से लाएं ? घास या तो बह गई है या सड़ गई है।
प्रशासन द्वारा क्षति का आंकलन तो किया गया है पर राहत अभी तक नहीं पहुंची है। पीने का पानी तक लोगों के पास नहीं है। आपदाग्रस्त लोगों का कहना था कि राहत का तमाम राशन-पानी यहां पहुंचने से पहले ही समाप्त हो जा रहा है।
थान सिंह बिष्ट, कुन्दन बिष्ट, हरीश कार्की, बिहारी लाल साह (रिटार्यड फौजी) आदि की दुकानें-मकान आदि, श्याम सिंह दरमवाल, लालू दरमवाल की घर, रसोई, दुकान, देवन्द्र मेर जिनके यहां चिराग ने चार कमरे लिये थे, वे चार कमरे तथा उनके द्वारा इकट्ठा किया 25 लाख रु. के हर्ब आदि, तथा देवेन्द्र मेर के दो कमरे सब नष्ट हो गए। डॉ. नारायण दत्त तिवारी की क्लीनिक, तीन दुकानें और 5 कमरे वाला घर तथा अमित दरमवाल का घर मवेशी सहित समाप्त हो गए। इसके अलावा अन्य 15 दुकानों में मलवा भर गया था, जिन्हें उनके मालिकों ने अब साफ कर लिया था। मैने बगीचे के मालिकों के नाम लिखने का प्रयत्न किया पर 25 नाम लिखने के बाद मैने नाम लिखने बन्द कर दिये।
लगभग 3 घंटे वहां रहने के बाद हम कैंची की ओर रवाना हुए जहां दो लोगों की मृत्यु हो गई थी। पूरी सड़क के हाल बेहाल थे। 20 मिनट का यह रास्ता एक घंटे से भी अधिक समय में तय हो पाया। तारा सिंह लोगों का घर दुकान मलबे से घिरे थे पर वे बाल-बाल बच गए थे। जिन दो लोगों की मृत्यु हुई थी वे थे रितु चौहान जिनकी उम्र 23 वर्ष थी और कुमाऊँ विश्वविद्यालय में एम ए की छात्रा थी। दूसरा रितु का छोटा भाई था अभिषेक चौहान। इनकी उम्र 17 वर्ष थी। इन्होंने हाल ही में इन्टरमीडिएट किया था। इन बच्चों के ताऊ जी पुष्कर चौहान, जो प्रत्यक्षदर्शी थे ने बताया कि यह घटना 19 अक्तूबर की प्रातः की थी। तेज वर्षा के बीच आवाज सुनकर हम बाहर आए तो देखा कि जहां बच्चे सोये थे वो पूरा टिन शेड मलवे में दब गया था। हमने मलवा साफ करने की कोशिश की, बाकी लोग भी आ चुके थे। हम प्रयत्न करते रहे पर पीछे से मलवा आता रहा। बच्चों के चिल्लाने की आवाज हम तक पहुंच रही थी। अभिषेक की मृत्यु हो चुकी थी। हम रितु को बचाने की कोशिश कर रहे थे। प्रातः 10 बजे हमने उसे निकाल भी लिया था, पर वह आधा घंटे ही बच पाई। रास्ते बन्द थे। हमारे पास कोई साधन नहीं थे। सब कुछ हमारे सामने हुआ पर हम कुछ भी नहीं कर पाए। पुष्कर सिंह तथा उनके आसपास के सभी घर क्षतिग्रस्त थे। वे लोग दिन में यहां पर इसलिये आ रहे थे कि सर्वे करने वाले, पत्रकार, विभिन्न पार्टियों के नेता यहां निरीक्षण एवं जानकारी और मदद के लिये आ रहे थे। रितु के भाई योगेश चौहान ने बताया कि कल कांग्रेस के लोग आए थे और आज आपदा राहत के तहत राज्य मंत्री अजय भट्ट आठ लाख रु. का चैक दे गए हैं। मृतकों के माँ और पिताजी श्रीमती विमला चौहान (43 वर्ष) और श्री सुरेन्द्र चौहान (47 वर्ष) से हमारी मुलाकात तो हुई पर वे दोनों गुमसुम थे बोलने की स्थिति में नहीं थे। रितु के माँ के मुंह से इतना ही सुन पाया कि मंत्री जी मदद के लिये पटवारी से कह गए हैं।
सड़क के ऊपर पूरा कैंची क्षेत्र रहने योग्य नहीं रह गया है। पूरे इलाके के लोगों का पुनर्वास कहीं और किया जाना चाहिए।
तल्ला रामगढ़ या कैंची या कहीं भी जो आपदा आई है, उसके पीछे अवैज्ञानिक निर्माण मुख्य वजह है। ऊपर रिजोर्ट बने हैं। उनके मलवे ने निश्चित कोठी गाड़ की दिशा बदल दी और कई लोगों के घर, बगीचे, रोजगार, पीढ़ियों की अर्जित सम्पत्ति कुछ ही घंटों में बह गई। यही हाल है कैंची का। सर्वप्रथम मनमर्जी के अवैज्ञानिक निर्माणों पर रोक लगाया जाना आवश्यक है।