कमलेश जोशी
10 मई को केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद से मात्र 8 दिनों में 2,15,930 यात्री केदारनाथ धाम पहुँच चुके हैं. कपाट खुलने के दिन ही लगभग 30 हज़ार यात्री केदारनाथ धाम पहुँचे जो पिछले वर्षों की तुलना में काफी बड़ा आँकड़ा है. चारों धामों में यदि पहले दो दिन में आए यात्रियों की संख्या का अवलोकन किया जाए तो यह वर्ष 2023 की तुलना में लगभग 44 प्रतिशत ज़्यादा है. पिछले वर्ष लगभग 50 लाख से अधिक यात्री चार धाम की यात्रा पर पहुँचे थे और इस वर्ष अनुमानित है कि यह संख्या 70 लाख तक जा सकती है. इतनी बड़ी संख्या में यात्रियों का असुनियोजित तरीक़े से चार धाम पहुँचना न सिर्फ अव्यवस्थाएँ पैदा कर रहा है बल्कि यात्रियों को स्वयं भी कई कठिनाइयों का सामना करने के लिए मजबूर कर रहा है. यात्रा रूट पर कई घंटे जाम लगने से अव्यवस्था पैदा हो रही है जिस वजह से यात्रियों को विभिन्न पड़ावों पर रोका जा रहा है. रजिस्ट्रेशन की तय तिथि से पहले ही यात्रा करना भी भीड़ के बढ़ने का एक अहम कारक है.
केदारनाथ जैसे अतिसंवेदनशील गंतव्य की अपनी एक सीमित वहन क्षमता है जिसके ऊपर यात्रियों का वहाँ पहुँचना ख़तरे से ख़ाली नहीं है. भू-वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों की मानें तो हिमालय का यह हिस्सा सबसे नवीनतम है और आज भी धीरे-धीरे विकसित हो रहा है. इसको ध्यान में रखते हुए केदार घाटी जैसे अतिसंवेदनशील व नाजुक क्षेत्र में बेतरतीब विकास किया जाना भी खतरे से खाली नहीं है. जाने माने पर्यावरणविद शेखर पाठक कहते हैं कि 1882 तक केदारनाथ मंदिर के आस-पास कोई निर्माण नहीं था लेकिन पिछले 60-70 सालों में ही केदारनाथ के चारों तरफ बेहिसाब निर्माण कार्य को अंजाम दिया गया है. भू-वैज्ञानिक डॉ नवीन जुयाल का मानना है कि किसी भी निर्माण से पहले आपदा द्वारा लाए गए मलबे का सैटल होना बहुत जरूरी है. 2013 की आपदा में ग्लेशियर द्वारा लाए गए मलबे के ऊपर किसी भी तरह का निर्माण कार्य भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता है.
चंडी प्रसाद भट्ट व अन्य पर्यावरणविदों का भी यही मानना है कि केदार घाटी का विकास सतत व नियंत्रित होना चाहिये. लगभग 3,600 मीटर की ऊँचाई पर बसे इस धाम में यात्रा सीजन में लाखों तीर्थयात्रियों का पहुँचना तथा विकास कार्यों के लिए अधिक काँक्रीट व सीमेंट का इस्तेमाल किया जाना लोकल वार्मिंग (स्थानीय तापमान का बढ़ना) के खतरे को बढ़ा रहा है. केदारनाथ के साथ ही पंच केदार को भी वैकल्पिक गंतव्य के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिये ताकि केदार घाटी के ऊपर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सके. साथ ही प्रतिदिन केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या को भी नियंत्रित किया जाना चाहिये.
केदारनाथ जैसे गंतव्य के सतत व समग्र विकास के लिए निम्न बिंदुओं पर अमल किया जाना आज के समय की नितांत आवश्यकता है ताकि हमारे अतिसंवेदनशील गंतव्य भविष्य की आने वाली पीढ़ी के लिए भी बचे रहेंः
1. तीर्थाटन व पर्यटन के अंतर को समझें.
2. केदारनाथ को पिकनिक स्पॉट न बनाएँ.
3. केदारनाथ की भौगोलिक व भूगर्भीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखें.
4. केदारनाथ में प्रतिदिन जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या निर्धारित करें.
5. जाड़ों में भी ऊखीमठ में केदारनाथ के दर्शन को बढ़ावा दें.
6. केदारनाथ में आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए त्रिजुगीनारायण, तुंगनाथ व कार्तिक स्वामी जैसे सैटेलाइट गंतव्यों को बढ़ावा दें जिससे कि केदारनाथ में भीड़ एकाएक न बढ़े.
7. पैदल यात्रा मार्ग को प्रोत्साहन दें ताकि प्रकृति पर कम से कम प्रभाव पड़े.
8. हैली सेवाओं को बेतरतीब बढ़ाने की जगह नियंत्रित करें व हैलीकाप्टर को नियत ऊँचाई से नीचे उड़ाने वाली कंपनियों पर दंड का प्रावधान रखें.
9. कपाट खुलते ही पहले दिन दर्शन करने जैसी प्रतियोगिता से खुद को अलग रखें.
10. सितम्बर-अक्टूबर सुखद मौसम हैं कोशिश करें इन महीनों में यात्रा करें.
11. एक सीजन में 3-4 बार केदारनाथ जाने का रिकॉर्ड बनाने जैसी बचकानी हरकतों से बाज आएँ.
12. छोटे बच्चों को लेकर यात्रा न करें. नियत समय आने पर बच्चे अपनी यात्रा स्वयं कर लेंगे.
13. लोगों को यात्रा के महत्व व गंतव्य की संवेदनशीलता के प्रति जागरूक करते रहें.
14. अपने वाहनों के साइलेंसर निकाल कर देवभूमि के शांत वातावरण को ध्वनि प्रदूषित न करें.
15. केदारनाथ के सतत व समग्र विकास में अपना योगदान दें.
प्रोफ़ेसर शेखर पाठक कहते हैं कि चार धाम को जोड़ने वाले पुराने पैदल यात्रा मार्गों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिये जिससे भीड़ विकेंद्रित हो सके. इस मामले में हमें यूरोप से सीखना चाहिये. यूरोपीय देशों ने आल्प्स पर्वत की पारिस्थितिकी को बचाने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए वहाँ पर्यटकों की तमाम गतिविधियों को नियमित किया है. स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने आल्प्स की तरफ जाने वाले डीजल व पैट्रोल जनित वाहनों पर पूरी तरह रोक लगाई हुई है. सिर्फ बैट्री जनित गाड़ियाँ ही आल्प्स पर्वत के बेस तक पर्यटकों को लेकर जा सकती हैं. यहाँ तक कि आल्प्स में चलने वाली रोपवे भी गुरुत्वाकर्षण के मैकेनिज्म पर काम करती है. फ़्रांस, इटली, जर्मनी, आस्ट्रिया आदि तमाम देश भी सतत विकास के इसी मॉडल का अनुसरण करते हैं. उत्तराखंड को चाहिये कि यूरोप के इन देशों के विकास मॉडल की समीक्षा करे और उनमें से ज़रूरी बिंदुओं को केदारनाथ जैसे गंतव्य पर लागू करे.
केदारनाथ में लगातार बन रहे सीमेंट व कंक्रीट के ढाँचे उसकी पारिस्थितिकी व संवेदनशीलता पर बुरा असर डाल सकते हैं. स्थाई ढाँचों की जगह अस्थाई टेंट जैसी सुविधाओं को केदारनाथ में बढ़ावा दिया जाना चाहिये. पहाड़ों के लिए बनाई जाने वाली तमाम पॉलिसियों में नीति नियंताओं को पर्यावरण को सबसे ऊपर रखना चाहिये. यद्यपि आधुनिक यात्रा पर्यटन को परंपरागत यात्रा पर्यटन से बदल पाना मुश्किल है लेकिन आधुनिक यात्रा पर्यटन को सतत विकास से जोड़कर आगे बढ़ाया जा सकता है.
परंपरागत यात्रा पर्यटन में जहाँ पैदल चलने, पवित्रता, एक्स्प्लोरेशन व जंगलों से गुजरने जैसे तत्व थे वहीं आधुनिक यात्रा पर्यटन में गाड़ियों/हेलीकॉप्टरों से चलने, आराम/पिकनिक करने व कंफर्ट जैसे तत्व शामिल हैं. केरल में जैसे अयप्पा मंदिर में पैदल यात्रा को बढ़ावा दिया जाता है वैसे ही केदारनाथ के परंपरागत मार्गों को पुनर्जीवित कर पैदल यात्रा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये. यात्रा पर्यटन का असल मतलब लोगों तक पहुँचाने की आज के दौर में सख़्त जरूरत है. साथ ही चार धामों को छोड़कर पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग व उत्तराखंड के अन्य गंतव्यों को बढ़ावा दिया जाना भी जरूरी है ताकि यात्रियों को विकेंद्रित किया जा सके.
ज़िम्मेदार यात्री बनना हम सबका कर्तव्य है. केदारनाथ जैसे गंतव्य का आदर करना, उसके आस-पास के वातावरण को प्राकृतिक अवस्था में बने रहने देना, गंतव्य में अनावश्यक शोर न करना, अनावश्यक भीड़ न बढ़ाना, तीर्थाटन के भाव से यात्रा करना, सिर्फ रील्स या व्लॉग बनाने के लिए यात्रा करने से बचना, मोबाइल का कम से कम प्रयोग करना, घाटी में कूड़े का नियत निदान करना, बार-बार यात्रा करने की प्रतियोगिता से बचना, और जैसा गंतव्य को पाया है उससे बेहतर छोड़कर आना आदि कुछ ऐसे छोटे छोटे कदम हैं जो केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को ध्यान में रखने चाहिये ताकि भविष्य में केदारनाथ के अस्तित्व पर फिर से कोई ख़तरा पैदा न हो.