राजीव लोचन साह
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आ गया है। ‘जय श्री राम, हो गया काम’। दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद हिन्दू उग्रवादियों ने यही जयघोष किया था। ‘सौगन्ध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनायेंगे।’ सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी बात मान ली। मन्दिर वहीं पर बनेगा। मगर उन उग्रवादियों के चेहरे पर हवाइयाँ क्यों उड़ रही हैं ? वे जबरन, खिसियाये हुए से क्यों हँस रहे हैं ? इसलिये क्योंकि चालीस साल से जिसे वे विवादित ढाँचा कह रहे थे, दरअसल थी तो वह बाबरी मस्जिद ही। भले ही उसमें नमाज न पढ़ी जाती हो। उसे ध्वस्त कर इन उग्रवादियों ने कोई भला काम तो नहीं किया, यह भी अदालत ने उन्हें बतला दिया है साफ-साफ। अयोध्या में तो स्वाभाविक है, क्योंकि वहाँ के मुसलमानों की आजीविका का प्रमुख आधार तीर्थाटन ही है, अब वे निर्भय होकर अपने धंधे पर लग सकेंगे। मगर देश भर के मुसलमान राहत की साँस क्यों ले रहे हैं ? एक बहुत बड़े छद्म की हवा निकल गई है। इतने लम्बे समय से हिन्दुओं को बताया जा रहा था कि अयोध्या में जहाँ राम जी पैदा हुए थे, मुसलमान वहाँ राम जी का मन्दिर भी नहीं बनने दे रहे हैं। उनमें गुस्सा पैदा कर वोट बटोरे जा रहे थे। अब मुसलमानों ने मान लिया है कि उन्हें राम मंदिर से कोई लेना-देना नहीं था, उनके लिये यह जमीन की लड़ाई थी, जिसमें वे हार गये हैं। अब बने राम मन्दिर वहीं पर, उन्हें कोई शिकायत नहीं। उनसे तरीके से बात की जाती तो वे सालों पहले किसी भी सामान्य भूमि विवाद की तरह उसका निपटारा कर लेते। उदास है तो हिन्दी मीडिया, खास तौर से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया। अरे, इतना बड़ा फैसला आया। मगर कुछ हुआ ही नहीं। उनके एंकर अभी भी चिल्ला रहे हैं, अरे हिन्दुओं खूब खुशी मनाओ भाई। ढोल बजाओ, बम-पटाखे छोड़ो। अरे मुसलमानो, खूब गुस्सा दिखाओ। धमकियाँ दो। मगर सब शान्त हैं। मगर नहीं, स्थायी शान्ति अभी नहीं आयी है। साम्प्रदायिक राजनीति कोई नया गुल खिलायेगी, इसलिये चौकन्ना रहना बहुत जरूरी है।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।