डिस्कवरी चैनल पर लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मैन वर्सेज वाइल्ड’ के जानेमाने चेहरे बियर ग्रिल्स ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के प्रसिद्ध ढिकाला परिसर में किसी अन्य पर्यटक की ही तरह कुछ दिनों तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने का इंतजार किया.
बियर ग्रिल्स ठगा हुआ सा महसूस कर रहे होंगे. ऐसा होना भी चाहिए. यहां एक टीवी सेलिब्रिटी जिसने लाखों दर्शकों के बीच यह बताकर अपनी पहचान बनाई है कि सहज रहते हुए जंगल की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हालात से कैसे पार पाया जा सकता है. जब जंगल में आपके पास खाने को कुछ न हो तो कैसे एक सांप की गर्दन को मोड़कर उसे चाव से खाना है.
लेकिन जिम कॉर्बेट में उन्हें ढिकाला परिसर के अंदर रहना पड़ा. यहां पर्यटकों के लिए 33 कमरे हैं और जो जंगली जानवरों को दूर रखने के लिए बिजली के तारों से घिरा हुआ है.
निश्चित ही यहां की कच्ची सड़कों, दूर दूर तक फैले घास के मैदान और नदीतटों पर आप दिन के समय सैर कर सकते हैं लेकिन केवल अधिकृत खुले वाहनों में. लेकिन उन वाहनों से एक सेकेंड के लिए भी उतरने पर आपको भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है. तो आप बियर ग्रिल्स की बेबसी को समझ सकते हैं.
इस एपिसोड की शूटिंग के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यहां पहुंचने पर भी बियर ग्रिल्स की मुश्किलें ख़त्म नहीं हुईं. सुबह से ही ढिकाला और इसके आसपास जमकर बारिश हो रही थी, हालांकि यह बारिश का मौसम नहीं था. लेकिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में अप्रत्याशित रूप से ऐसा कभी भी हो सकता है.
मोदी कालागढ़ से एक स्पीड बोट से ढिकाला पहुंचे और जंगल के पुराने रेस्ट हाउस में बारिश रुकने तक इंतजार किया.
पुराना रेस्ट हाउस ढिकाला की सबसे बेहतरीन संरचना है. आप गूगल में ढूंढ सकते हैं जहां आपको जिम कॉर्बेट की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें मिलेंगी, इसमें वे अपने भूतल के बरामदे में बैठे उस गौरैये का स्वागत कर रहे हैं जो अभी अभी उड़कर ताड़ के पेड़ पर बैठी थी.
कैसे पड़ा जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का नाम?
जिम कॉर्बेट भारत का पहला टाइगर रिजर्व है. उत्तराखंड की प्राचीन तराई में कॉर्बेट गढ़वा और कुमाऊं दोनों ही इलाके में पड़ता है जो शाल के जंगल, घास के मैदान और पहाड़ियों का एक मनोरम मिश्रण है जहां सांप की तरह घुमावदार रामगंगा नदी बहती है.
रणथम्भौर में बाघों को देखना आसान हो सकता है, लेकिन असल सुंदरता में कॉर्बेट का दुनिया में शायद ही कोई सानी हो.
साल 1936 में तब के यूनाइटेड प्रॉविन्स के तत्कालीन गवर्नर मैल्कॉम हैली के नाम पर इसे हैली नेशनल पार्क घोषित किया गया.
लेकिन बाद में इस पार्क को जिम कॉर्बेट का नाम दिया गया जिन्हें आज भी उत्तराखंड में याद किया जाता है.
उन्होंने यहां के पहाड़ की आबादी को कई आदमखोर बाघों और तेंदुओं से छुटकारा दिलाया था. अपने बाद के जीवन में प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट ने वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम किया.
जिम कॉर्बेट ने न केवल अपने 16-एमएम कैमरे से वन्यजीवन की फ़िल्में बनाईं, बल्कि जंगल पर किताबें भी लिखीं जिन्हें आज क्लासिक माना जाता है.
उनकी किताबों में शीर्ष पर ‘मैन इटर्स ऑफ़ कुमाऊं’ का नाम आता है, इसके बाद ‘द टेंपलटाइगर’, ‘मोर मैन इटर्स ऑफ़ कुमाऊं’, ‘द मैन इटिंग लेपर्ड ऑफ़ रूद्रप्रयाग’, ‘माइ इंडिया’ और ‘जंगल लोर’ का नाम आता है.
साल 1955 में जिम कॉर्बेट की मृत्यु के बाद, रिजर्व का नाम जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया. लिहाजा तकनीकी रूप से और सौंदर्य की दृष्टि से जिम कॉर्बेट भारत के पहले और यकीनन बेहतरीन प्रकृति संरक्षणवादी थे.
यहीं से अप्रैल 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर का शुभारंभ किया.
जिम कॉर्बेट का ‘ढिकाला जोन’
चलिए फिर मैन वर्सेज वाइल्ड की तरफ एक बार फिर लौटते हैं.
बारिश कुछ समय के बाद धीमी हो गई जिससे बियर ग्रिल्स और मोदी को उन जगहों पर शूटिंग का कुछ मौका मिल गया जिसे बियर ग्रिल्स की टीम ने पहले से तय कर रखा था.
प्रधानमंत्री के साथ दो जगहों पर शूटिंग हुई. रामगंगा नदी के किनारे, जिसे गेथिया रो के नाम से जाना जाता है, और उस घास के मैदान पर जो तीन तरफ से ढिकाला परिसर को घेरे हुए है.
उत्तराखंड वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री के आने से पहले या उनकी यहां उपस्थिति से पहले बियर ग्रिल्स को सुरक्षा के बिना ढिकाला परिसर से बाहर अकेले जाने की अनुमति नहीं दी गई थी. यह बहुत जोखिम भरा होता.
दरअसल एक दशक पहले ढिकाला को बिजली के बाड़े से घेरना ज़रूरी हो गया था, जब एक बाघिन ने इस परिसर में घुस कर रेस्टोरेंट प्रबंधक को मार डाला. परिसर के अंदर जंगली हाथियों के आने की कुछ घटनाएं भी हुई हैं.
शूटिंग के लिए वन विभाग ने दो स्थान निर्धारित किए थे- ताकि किसी वन्यजीव को कोई नुकसान नहीं पहुंचे. कैमरों से कुछ दूर एसपीजी के अधिकारी और वन्य अधिकारी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात थे.
गेथिया रो इलाका कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की सबसे विख्यात उस बाघिन और उसके तीन छोटे बच्चों का घर है जो ‘पाड़वाली’ के नाम से प्रसिद्ध है.
लेकिन उस दिन बाघों का यह परिवार बाहर नहीं निकला. कॉर्बेट के इस इलाके में फ़रवरी के महीने में हाथी नहीं देखे जाते. आमतौर पर मध्य मार्च के बाद घास के इन मैदानों और झाड़ियों में हाथी बड़े झुंड में पहुंचते हैं, लिहाजा इस शूटिंग में उनसे राहत थी.
इसमें कोई शक नहीं कि इस कार्यक्रम से ठीक उसी तरह जिम कॉर्बेट को फायदा पहुंचेगा जैसे आमिर ख़ान की फ़िल्म थ्री इडियट्स से लद्दाख की पैंगॉन्ग झील को मिला.
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या ऐसी जगहों को वाकई कोई अतिरिक्त प्रचार की ज़रूरत है?
लद्दाख प्रशासन ने पर्यटकों के दबाव के ख़तरे को महसूस करते हुए पहले ही पैंगॉन्ग के पास कैंप लगाना प्रतिबंधित कर दिया है.
बियर ग्रिल्स के यहां आने से पहले भी जिम कॉर्बेट एक विश्व प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व था. जैसा कि एक वन्य अधिकारी व्यंग्य से कहते भी हैं, “आप ताज़महल को और अधिक लोकप्रिय नहीं बना सकते, क्या आप ऐसा कर सकते हैं?”
मुझे लगता है कि बियर ग्रिल्स थोड़ी निराशा के साथ वापस गये होंगे. उन्हें वो जंगल नहीं मिला जिसकी उन्हें तलाश थी.
फिर विशुद्ध निराधार विचार आया कि भारत में इस शूटिंग के लिए आदर्श जगह कौन-सी होती?
शायद चंबल के बीहड़. लेकिन यह बीहड़ बियर ग्रिल्स जैसे के लिए भी मुश्किल साबित हो सकता था.
बेहद जटिल चंबल के बीहड़ों में घुसने के बाद कई लोग इसके चक्रव्यूह से बाहर निकलने का रास्ता नहीं ढूंढ सके.
लिहाजा इसे इंसानों का भक्षक माना जाता है. और भला कोई कब तक सांप खाकर रह सकता है?
बीबीसी न्यूज़ हिन्दी वैब पत्रिका से साभार