-ओ.पी. पांडेय
अब कल का वाकया ही देखा तो समझ आया धन, दौलत, ताकत का नशा सबका चूर होता है और समय के आगे झुकना ही होता है। जब गर्दिश आती है तो बड़े से बड़ा ताकतवर घुटने टेक देता है और विनम्र हो जाता है। इसलिए जबर्दस्ती की फू-फां से बचना चाहिए यही सत्य है। इतिहास गवाह है जो जितना फू फां करता है उसका पतन भी उतनी ही जल्दी होता है ।
आसमाँ का सबसे ताकतवर जीव बाज एक झटके में 40 किलो वजनी जानवर को उठा के पलक झपकते फुर्र हो सकता है लेकिन जब जान के लाले पड़ते हैं तो सब बदल जाता है। अब कल का वाकया ही देखा तो समझ आया धन, दौलत, ताकत का नशा सबका चूर होता है और समय के आगे झुकना ही होता है। जब गर्दिश आती है तो बड़े से बड़ा ताकतवर घुटने टेक देता है और विनम्र हो जाता है। इसलिए जबर्दस्ती की फू-फां से बचना चाहिए यही सत्य है। इतिहास गवाह है जो जितना फू फां करता है उसका पतन भी उतनी ही जल्दी होता है ।
अल्मोड़ा से लौटते हुए कल सलड़ी—काठगोदाम के पास बाज को सड़क पर फड़फड़ाता देख गाड़ी रोकी जहाँ बाज सड़क पार कर किसी तरह जीवन बचाने की कोशिश कर रहा था। कई गाड़ियाँ तेजी से उसे बचाते निकली। दो बच्चे मोटरसाइकिल से आ रहे थे रुक गए। मुझे भी लगा एक बार उतरकर देखते हैैं। उसकी हालत ठीक नही है इसलिये मोटरसाइकिल वाले लड़के ने उसे उठाने की कोशिश की लेकिन वह डर गया। मैैंने सोचा अब खुद कुछ करना होगा। बाज हमलावर हो गया। उसका स्वभाव ही आक्रमक है लेकिन वह तकलीफ में है इसलिये अगर थोड़ा कोशिश और करूं तो शायद पकड़ में आ जाये।
मेरे मित्र ने मेरे सोचने से पहले उसे झट उठाकर पैराफीट पर रख दिया। मैैंने देखा उस ताकतवर पक्षी का स्वभाव तुरंत बदल गया। मानो वह मुझे गाड़ियों से बचाने का धन्यवाद कर रहा हो। उसकी आंख में संतोष है और शायद फिर से जीने की उम्मीद में उसने एक बार पुतली बंद कर मानो हमारा शुक्रिया किया। मैंने हिम्मत कर उसे वहीं पड़े एक सीमेंट के कट्टे से उठा लिया। मैं ताज्जुब में हूँ जो पक्षी अभी तक इतना हमलावर लग रहा था कितनी आसानी से मेरी गोद में आते ही शांत हो गया।
मैंने गाड़ी की पीछे वाली सीट में अपनी जैकेट का सहारा दे उसे एडजस्ट किया और घर ले आया। बेटे सहर्ष से कहा कि वह मेरे साथ उसे पकड़ के पशु अस्पताल ले चले। बेटे ने बिना डरे उसे गोद में पकड़ लिया और चलते—चलते डॉ विवेक पांडे कंजरवेटर फॉरेस्ट को फ़ोन लगाया। उन्होंने कहा वो हीरा नगर के किसी रेंजर साहेब को कहते हैं। पर मैंने खुद ही इंचार्ज गौला ध्रुव मर्तोलिया को फ़ोन किया। उन्होंने कहा मैं रेस्क्यू टीम को हॉस्पिटल भेजता हूँ। हम पिता—पुत्र बाज को लेकर अस्पताल में चले गए। डॉक्टर के पास मेरे से पहले बेटे ने जाकर बाज की सारी कहानी कह डाली। साहब ने कहा — अभी देखते हैं, लेकिन बेटा चाहता है जल्दी—जल्दी सब हो जाय। उसके लिए यह बहुत बड़ी इमरजेंसी का सवाल है।
वह जोर से बोला — भैया जल्दी करो कुछ करो। उसे क्या पता कि सिस्टम अपने हिसाब से काम करेगा। एक पर्ची बनी फिर डॉ साहेब के निर्देशानुसार फार्मासिस्ट ने एक इंजेक्शन बाज को लगा दिया शायद पेन किलर। बेटे ने फिर कहा — अंकल जल्दी इसका इलाज शुरू करिए। उसे लग रहा था बाज तुरंत ठीक हो जाएगा। डॉक्टर ने बताया — बाज का एक पंख टूट गया है और हालात ठीक नहीं है। आगे अब फारेस्ट वाले ही सम्हालेंगे। बेटा असहज होते हुए कहने लगा — अब क्या होगा ? आप जल्दी कुछ करो प्लास्टर या और कुछ से ठीक नहीं होगा क्या ? मुझसे हल्की नाराजगी के लहजे में कहता रहा — यहाँ कोई इसे ठीक से नहीं देख रहा। मैंने कहा — बेटा परेशान मत हो सरकारी सिस्टम में ऐसा ही होता है। जितना हुवा वह भी बहुत है। गनीमत की डॉक्टर साहब 3.30 बजे तक हैं यहाँ। इंसान वाले में तो दो के बाद सन्नाटा हो जाता है ? मैंने समझाया — फारेस्ट में कोई ना कोई व्यवस्था होगी ही, लेकिन वह माना नही बोला — वहाँ कोई डॉ थोड़े होंगे। इलाज तो यहीं होना चाहिए।
उसे लग रहा था कि सब कुछ ठीक हो जाय और एक पक्षी की जान बच जाए। तभी रेस्क्यू टीम आ गई। रेस्क्यू टीम, जिसमें एक कर्मचारी और चालक है, पूछा — कहाँ है बाज ? कर्मचारी ने बाज को पिछली सीट में डाला और गाड़ी चल पड़ी।
बेटा जिस बाज को गोद मे लेके एक घंटे से उसके लिए उसे बचाने की जद्दोजहद कर रहा था, गाड़ी में डालते ही उसका मानो दिल बैठ गया। उसका चेहरा जो अभी तक आशावनित था अब मानो कह रहा हो कि बाज को अपने पास रखके इलाज सामने करवाता तो ही अच्छा था। सिस्टम की समझ शायद उसे कल आये। उसने अभी तक तो टीवी में एनिमल प्लेनेट, डिस्कवरी में एनिमल रेस्क्यू देखे हैं।
उसे क्या पता जिस देश मे इंसान की जिंदगी बचाने के संसाधन नही हैं, वहां एक घंटे के लिए उसका दोस्त बना बाज को इतना भी काफी नसीब हो गया। किसी तेज रफ्तार गाड़ी से उसकी जान बची और एक मंदबुद्धि सब जानते हुए भी उसे ले आया कि क्या पता एक प्राणी बचा लिया जाय। यह सब जानते हुए की पूरे पहाड़ में ना जाने कितनी महिलाएं, कितने बच्चे, बड़े—बूढ़े इलाज के आभाव में दम तोड़ चुके हैं। बाज होगा ताकतवर पक्षी लेकिन सिस्टम से बड़ा ताकतवर तो कतई नही ?
जहाँ आदमी की कोई औकात नहीं पशु पक्षी को कौन पूछ रहा ? सिस्टम में बड़े पैसे वाले कुत्ते पालना बंद कर दें तो पशु अस्पताल और वेटेरनरी का कोर्स अप्रासंगिक समझिए। यह विभाग ही बंद हो जाय। अब बाज की अपनी किस्मत है जिये या मरे उसने भी अगर प्रकृति के खिलाफ काम किया होगा तो मरेगा।
जैसे इंसान भी अपनी किस्मत से ही जी रहा है। सिस्टम पर भरोसा करे तो चार दिन ना चले। जिस देश में इंसान का इलाज करने में पूरा सिस्टम नाकाम हो, बाज बेचारा क्या बेचता है ? यही समझाकर बेटे को घर ले आया। बेटे की जिद से दो दिन बाद जाऊंगा हालोकि मुझे तो पता है पर बेटे को सिस्टम से अवगत कराना भी जरूरी है। जल्दी ही फिर आपसे रू—ब—रू होता हूँ…