मनीष आजाद
8 मार्च 1971 को ‘मुहम्मद अली’ और ‘जो फ्रेजर’ के बीच ‘सदी का सबसे बड़ा’ मुक्केबाजी मुकाबला खेल जा रहा था। सभी अमरीकियों की आंखे टीवी पर चिपकी हुई थी।
‘डैनियल एल्सबर्ग’ और उनके साथ सात अन्य नौजवान इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लेकिन उनके दिमाग़ में कहीं से भी मुक्केबाजी नहीं था। उनके दिमाग मे वियतनाम युद्ध था।
जिस वक्त मुहम्मद अली और जो फ्रेजर एक दूसरे पर ताबड़तोड़ मुक्के बरसा रहे थे, और लोग सांस रोके इस ‘युद्ध’ को देख रहे थे, ठीक उसी वक़्त इन आठ नौजवानों का दल नज़र बचाते हुए FBI के दफ्तर में ताला तोड़कर घुसा और वहां से कई फ़ाइलें चुरा ली।
यह फ़ाइल उन्होंने ‘वाशिंगटन पोस्ट’ को पोस्ट कर दी। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने उसे धारावाहिक रूप में छाप दिया। यह इतिहास में ‘पेंटागन पेपर’ के नाम से दर्ज हो गया। इस पेंटागन पेपर से ही दुनिया को पहली बार पता चला कि अमेरिका ने कैसे वियतनामी जनता, महिलाओं, बच्चों पर कहर बरपाया है। कैसे नापाम बमों का इस्तेमाल किया है। गाँव के गाँव का कत्लेआम किया है।
इस रिपोर्ट के आने के बाद अमेरिका में वियतनाम के समर्थन में जनता सड़को पर उतर आई और अमेरिका को वियतनाम से सेना वापस बुलानी पड़ी।
ये आठ नौजवान गिरफ्तारी से बचने के लिए एक गुमनाम जिंदगी जीते रहे और 2000 में जाकर उन्होंने अपनी पहचान जाहिर की। (जब केस की समयावधि खत्म हो गयी।)
इस घटना के करीब 40 साल बाद 2010 में आस्ट्रेलिया के एक नौजवान जूलियन असांज ने अपनी वेबसाइट ‘विकीलीक्स’ पर अमेरिका द्वारा इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका के युद्ध अपराधों से सम्बंधित लाखों दस्तावेज अपलोड कर दिया।
जनता ने पहली बार अपनी आँखों से देखा कि किस तरह जानबूझकर कर बारात पर, पत्रकारों पर, निहत्थी आम जनता पर बम के गोले बरसाए जा रहे हैं।
यह दस्तावेज विकीलीक्स को अमेरिकी सेना में काम करने वाली ‘चेलसी मानी’ ने उपलब्ध कराया था। बाद के कुछ दस्तावेज ‘एडवर्ड स्नोडेन’ ने भी उपलब्ध कराया था।
अमेरिका ने चेलसी मानी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। एडवर्ड स्नोडेन को रूस भागना पड़ा और जूलियन असांज लंदन की कुख्यात ‘बेलमास’ जेल में हैं। जहाँ 24 में से 23 घंटे उन्हें तनहाई में रखा जा रहा है।
‘Ithaka’ डाक्यूमेंट्री जूलियन असांज के इस खतरनाक सफर को कवर करती है। जूलियन असांज के पिता और जूलियन असांज की पत्नी व दो खूबसूरत बच्चों को देखकर हम जूलियन असांज और उनके परिवार की यातना को समझ सकते हैं।’
यह डाक्यूमेंट्री यूरोप में जूलियन असांज की रिहाई के लिए लगातार हो रहे प्रदर्शनों और उसमें असांज के पिता व पत्नी की भागीदारी को बहुत असरकारक तरीके से पकड़ती है।
अमेरिका लगातार असांज का प्रत्यर्पण चाह रहा है, जहां उनपर इस बात के लिए मुकदमा चलाया जाएगा कि उन्होंने अमेरिका के युद्ध अपराधों को क्यों सार्वजनिक किया। और दोषी पाए जाने पर 173 साल की सजा होगी।
असांज के समर्थन में करीब 100 वकील प्रत्यर्पण के खिलाफ और असांज की रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
इस बीच असांज की मानसिक हालत बिगड़ती जा रही हैं। एक दिन कोर्ट में जज के पूछने पर वह अपना जन्मदिन भी नहीं बता पाए।
असांज का केस भारत में ‘भीमाकोरेगांव’ केस की याद दिलाता है। जहां एक्टिविस्टों को इसलिए जेल में रखा गया है क्योकि उन्होंने सत्ता को जनता के सामने बेनकाब किया है।
जूलियन असांज या भीमाकोरेगांव का केस हमे यही सिखाता है कि जब सच बोलने की सजा जेल हो तो सच बोलना हमारा बुनियादी कार्यभार बन जाता है। यानी जब एक जूलियन असांज को जेल हो तो हजारों लाखों जूलियन असांज पैदा हो जाना चाहिए।
जो लोग टेलीग्राम पर हैं, उन्हें यह डॉक्युमेंट्री सर्च करने पर मिल जाएगी।