समाचार डैस्क
प्रदेश के सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा 18 सितम्बर को अल्मोड़ा के गांधी चौक में एक धरना आयोजित किया गया। ये सेवानिवृत्त, वृद्ध कर्मचारी प्रदेश सरकार द्वारा अटल आयुष्मान गोल्डन कार्ड के माध्यम से की जा रही लूट से आक्रोशित थे। धरने के उपरांत नैनीताल समाचार द्वारा इन कर्मचारियों से बातचीत की गई।
बातचीत के दौरान अल्मोड़ा निवासी सी. एम. भट्ट ने बताया कि प्रदेश कोषागार की 1 मार्च 2021 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कुल कार्यरत सरकारी कर्मचारियों की संख्या 1,59,438 ( एक लाख उनसठ हजार चार सौ अड़तीस ) है। सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संख्या 1,45,133 (एक लाख पैंतालीस हजार एक सौ तैंतीस) है। इन दोनों को जोड़ने पर यह संख्या 3,06,571 (तीन लाख छः हजार पांच सौ इकहत्तर) हो जाती है। एक अनुमान से इन तीन लाख लोगों की आमदनी से लगभग अठारह करोड़ रुपये प्रतिमाह की कटौती गोल्डन कार्ड की एवज में की जा रही है।
सरकार द्वारा 2 जुलाई 2021 को बताये गये आँकड़ों के अनुसार विगत छः माह में 3,301 व्यक्ति इलाज के लिये विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हुए और 237 व्यक्तियों को ओ. पी. डी. में देखा गया। इस तरह एक अनुमान के अनुसार इन मरीजों पर लगभग 16 करोड़ 75 लाख रु. खर्च हुआ। वर्ष भर में अनुमानित 216 करोड़ रुपये वसूली वाले इस कार्यक्रम में बाकी पैसा कहाँ खर्च हुआ, इसका कोई स्पष्ट ब्यौरा प्रदेश सरकार द्वारा नहीं दिया गया है। अलबत्ता 14 सितम्बर 2018 के शासनादेश के अनुसार गोल्डन कार्ड के अन्तर्गत की गई कुल कटौती की राशि का 50 प्रतिशत ‘आयुष्मान उत्तराखण्ड’ के खाते में जाएगा। 35 प्रतिशत भाग चिकित्सालयों में रोगियों हेतु औषधि व अन्य सुविधाओं हेतु तथा शेष 15 प्रतिशत चिकित्सकों-कर्मचारियों के प्रोत्साहन हेतु दिया जाएगा। इस तथाकथित प्रोत्साहन में एक प्रतिशत चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक को, पाँच प्रतिशत चिकित्सक दल को, एक प्रतिशत चिकित्सालय के ओ.टी. टैक्नीशियन को, एक प्रतिशत लैब असिस्टैंट, एक प्रतिशत फार्मेसिस्ट को तथा तीन प्रतिशत नर्सिंग दल को दिये जाने का प्रावधान है। इस बन्दरबाँट पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कहना है कि यह सारे चिकित्सा तंत्र को हमारी लूट पर चलाए जाने की योजना है। पहले किसी भी सेवारत अथवा सेवानिवृत्त कर्मचारी को चिकित्सा में हुए खर्च के बिल प्रस्तुत करने पर इनकी प्रतिपूर्ति कर दी जाती थी। परन्तु अब प्रतिपूर्ति का क्या नियम है, कुछ पता नहीं।
एक उदाहरण देते हुए सी. एम. भट्ट बताते हैं कि श्रीमती लीला खोलिया का इलाज देहरादून के दो अलग-अलग निजी अस्पतालों में हुआ। कुल 4.5 लाख रुपये का खर्च हुआ है, परन्तु एक पैसे की भी प्रतिपूर्ति नहीं हुई है। जबकि उनकी पेंशन से 650 रु. प्रति माह कटता है। यही नहीं, विगत आठ माह से अल्मोड़ा जिले में एक भी चिकित्सा बिल की प्रतिपूर्ति नहीं की गई है। पता नहीं दूरस्थ इलाकों का क्या हाल होगा! सरकारी सेवा के दौरान वेतन से कटौती के लिये विभिन्न फॉर्मों के रूप में प्रत्येक कर्मचारी की सहमति ली जाती है। परन्तु गोल्डन कार्ड से की जाने वाली इस कटौती के लिये कोई सहमति ली ही नहीं गई। दूरस्थ इलाकों में पारिवारिक पेंशन प्राप्त कर रही कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को तो पता ही नहीं है कि उनका पैसा इस मद में कट रहा है। एक और सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हेम चन्द्र जोशी जी ने बताया कि समूह ‘क’ के 1000 रु, समूह ‘ख’ के 650 रु, समूह ‘ग’ के 450 रु., समूह ‘घ’ के 250 रु. प्रतिमाह इस मद में काटे जाते हैं। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिये इसमें कोई रियायत नहीं है। सरकार द्वारा राममूर्ति, विवेकानन्द आदि अनेक अस्पताल इलाज के लिये बताये जाते हैं, परन्तु इन अस्पतालों में जाने पर पता चलता है कि इन घोषित अस्पतालों के साथ सरकार द्वारा कोई एम.ओ.यू. हुआ ही नहीं है। तिस पर तमाशा ये कि हर बीमारी के लिये अलग-अलग अस्पताल । कोई ऐसा अस्पताल नहीं जिसमें सारी बीमारियों का इलाज एक ही स्थान पर हो सके।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कहना है कि जीवन भर सरकार की सेवा करने के उपरान्त क्या सरकार को चिकित्सकीय खर्च चलाने हेतु इस तरह सेवानिवृत्त कर्मचारियों की जेब खाली करनी चाहिये ? या उनकी चिकित्सा का इन्तजाम पूर्व की भांति प्रतिपूर्ति के आधार पर करना चाहिये। सरकार अपनी जिम्मेदारियों से मुकर रही है।