सलीम मलिक
अल्मोड़ा। नैनीताल जिले के रामनगर से पहाड़ की तरफ जाने वाली रानीखेत रोड नाम की एक सड़क पर 49 किमी. का सफर तय किया जाए तो एक दोराहे पर भतरोजखान से करीब बीस किमी. पहले ही भतरोजखान पुलिस का एक बोर्ड लगा दिखाई देता है। बोर्ड पर लिखा है “थाना भतरोजखान पुलिस द्वारा गोद लिए ग्राम पनुवाद्योखन गांव में आपका स्वागत है।” लोगों का स्वागत कर रहे इस बोर्ड पर प्रभारी निरीक्षक थाना भतरोजखान का मोबाइल और लैंडलाइन नंबर भी लिखा है। सड़क किनारे लगे एक बोर्ड पर इतने विस्तार से लिखना वैसे तो अजीब ही है। लेकिन पाठक दिमाग पर जोर डालेंगे तो पता चलेगा कि यह अजीब बात ही विशेष है। दरअसल पनुवाद्योखन उसी गांव का नाम हैं जहां के रहने वाले जगदीश चंद्र को पूरे जिले की पुलिस तमाम मिन्नतों के बाद भी कत्ल होने से नहीं बचा सकी।
जैसा कि मालूम ही है कि अल्मोड़ा जिले के भतरोजखान थाने की सीमा में पड़ने वाले पनुवाद्योखन गांव में रहने वाले युवा नेता जगदीश चंद्र की सवर्ण युवती से विवाह करने के कारण उसके सवर्ण ससुरालियों ने इतनी बेरहमी से हत्या कर दी कि जगदीश की लाश का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर तक लाश की स्थिति देखकर सकते में आ गए थे। जगदीश की लाश पर चोटों के 28 निशान थे। हथौड़े की चोट से बने इन निशानों में हर निशान जगदीश के शरीर की टूटी हड्डी का मूक गवाह था। हत्यारों ने जगदीश के सिर, मुंह, नाक, पसली, रीढ़, घुटने, टखने की हड्डियां तोड़ते हुए उसे दर्दनाक मौत दी थी।
जगदीश के साथ हुई यह बर्बरता एकाएक नहीं हुई थी। इसी भतरोजखान थाने की सीमा में आने वाले भिक्यासैण के एक सवर्ण परिवार की युवती गीता उर्फ गुड्डी से प्रेम-प्रसंग की वजह से जगदीश इनके निशाने पर पहले से ही था। गीता का सौतेला बाप जोगा सिंह जगदीश के कत्ल से कुछ ही दिन पहले पुलिस के इसी स्वागती बोर्ड के सामने से गुजरते हुए पनुवाद्योखन गांव में आकर खुलेआम चैलेंज करते हुए जगदीश को मौत के घाट उतारने की धमकी देकर गया था। 21 अगस्त को जगदीश और गीता ने विवाह करके अपने साथ अनहोनी की आशंका व्यक्त करते हुए 27 अगस्त को अल्मोड़ा पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी को चिट्ठी लिखकर अपनी हिफाजत की गुहार भी लगाई थी। लेकिन पुलिस द्वारा गोद लिए पनुवाद्योखन गांव के निवासी जगदीश की चिट्ठी को पुलिस ने हवा में उड़ा दिया। नतीजन 1 सितंबर को वही हुआ जिसकी आशंका व्यक्त की गई थी। जगदीश के ससुरालियों ने 1 सितंबर बृहस्पतिवार की सुबह जगदीश को भिक्यासैण से अपहृत कर शाम तक उसकी निर्मम हत्या कर दी।
जातिवादी ऐंठन की वजह से असमय ही इस दुनिया से जाने वाले जगदीश का पनुवाद्योखन गांव अपने आप में दो विशेषता लिए हुए है। दलित बहुल्य होने के कारण उसे अंबेडकर गांव का दर्जा प्राप्त है तो दूसरी पुलिस द्वारा गांव लेने की विशेषता का जिक्र पहले ही किया जा चुका है।
नौ तोक में फैले दो हजार की आबादी वाले पनुवाद्योखन के मल्ला तोक में जगदीश अपनी मां और छोटी बहन के साथ रहता था। उसके दो भाईयों का परिवार भी यहीं लेकिन अलग घर में रहता है। मां-बहन जगदीश के ही भरोसे थी। पुलिस के गोद लिए गांव तक के लोगों के प्रति जब पुलिस का यह रवैया है कि खुलेआम मौत के घाट उतारने की धमकी मिलने के बाद पुलिस आदमी की मौत के इंतजार के सिवा कुछ नहीं करती तो यह सोचकर ही सिहरन हो उठती है कि जिन गांवों को पुलिस ने गोद नहीं लिया होता है, वहां क्या नहीं हो सकता ?
जगदीश की मौत के चार दिन बाद सोमवार को उसके परिवार से मिलने के लिए सरकार ने समय निकाल ही लिया। कुमाउं मण्डल के कमिश्नर, पुलिस उपमहानिरीक्षक, जिलाधिकारी, एसएसपी सहित पूरा सरकारी अमला सोमवार को पनुवाद्योखन पहुंच गया। निजी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिलाधिकारी ने जगदीश के परिवार को दो लाख की आर्थिक सहायता का चेक भी दिया है।
अल्मोड़ा के जिला सूचना अधिकारी द्वारा दी गई सूचना के हिसाब से कुमाउं आयुक्त दीपक रावत, डीजीपी नीलेश आनन्द भरणें द्वारा जगदीश चन्द्र की माता भागुली देवी, भाई दिलीप कुमार, पृथ्वीपाल के घर जाकर शोक संवेदना व्यक्त की। इस दौरान आयुक्त ने पीड़ित परिवार को आश्वासन देते हुए कहा कि पुलिस इस मामले की गहनता से जॉच कर रही है। उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार के सदस्यों को सुरक्षा प्रदान की गयी है। उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा कि सुरक्षा को लेकर किसी प्रकार की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। आयुक्त के मुताबिक प्रदेश के मुख्यमंत्री घटना की जांच की कार्यवाही की समय-समय पर मानिटरिंग कर रहे है। इस दौरान पीड़ित परिवाजनों द्वारा आयुक्त महोदय को एक ज्ञापन सौंपा। इसी क्रम में जिलाधिकारी वन्दना द्वारा पीड़ित परिवार से मिलकर उन्हें जिला प्रशासन की ओर से आर्थिक चैक भेंट किया। इस दौरान संयुक्त मजिस्ट्रेट रानीखेत जयकिशन, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार राय, उप जिलाधिकारी भिकियासैंण गौरव पाण्डे सहित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।
जगदीश की मौत के चार दिन बाद जहां प्रशासन उसके घर पहुंच सका तो वहीं राजनैतिक लोगों में से किसी ने अभी तक गांव का रुख नहीं किया है। अलबत्ता कल रविवार को गांव में हुई शोकसभा में कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं ने जाकर सत्ता के खिलाफ तपिश की गर्मी भांपने की कोशिश जरूर की थी, जिसे ग्रामीणों ने इन नेताओं को लताड़कर विफल कर दिया था।
मालूम हो कि पनुवाद्योखन का यह जगदीश हत्याकांड देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। लेकिन स्थानीय विधायक, सांसद, मंत्री या मुख्यमंत्री किसी ने भी इस बारे में अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। क्षेत्र के विधायक महेश जीना हैं तो सांसद इसी अनुसूचित जाति के अजय टम्टा हैं। जिले से मंत्री भी अनुसूचित जाति की रेखा आर्य हैं। लेकिन इस सबके बाद सबने हत्याकांड को लेकर आश्चर्यजनक चुप्पी साध रखी है।
ग्यारह दिन पहले सुहागन बनी गीता सितंबर महीने की पहली तारीख को विधवा बन चुकी थी। लेकिन कहानी का दर्द आना अभी बाकी था। जिस घर से बगावत करके गीता ने जगदीश का हाथ थामा था, वह तो उसके खून के ऐसे प्यासे थे कि पति की मौत के बाद वहां जाने की कल्पना ही मुश्किल थी। बचा ससुराल, वहां अपने जवान बच्चे की मौत के बाद गांव में होने वाली कानाफूसी से बचने का सामाजिक संताप से बड़ी बात उसकी खुद की सुरक्षा थी। सुरक्षा की मांग किए जाने के बाद भी पति को खो चुकी गीता की जिंदगी की सुरक्षा का बड़ा सवाल प्रशासन के सामने खड़ा था। एक मुश्किल तरीका था कि गीता को खुली दुनियां में ही सिक्योरिटी मुहैया करा दी जाती। लेकिन प्रशासन को आसान रास्ता ज्यादा मुफीद लगा। कुल ग्यारह दिन में सुहागन से विधवा बनने वाली गीता ने बाहरवें दिन नारी-निकेतन में कदम रखा। जहां वह न जाने कब तक रहने को अभिशप्त हो, कहा नहीं जा सकता। घर की प्रताड़ना भरी कैद से खुले आसमान की परवाज करने के सपनों का सफर पति की मौत के बाद नारी-निकेतन की चौखट पर हुआ, जहां से उसके भविष्य की काली पटकथा को पढ़ने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत शायद न हो। यह उसी जातिवाद का यथार्थवादी किस्सा है, जिसके लिए सभ्य समाज के लोग आज भी पूछते हैं कि “जातिवाद है कहां ?”