डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला मंडुवा, झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खरीफ की मुख्य फसलों में शुमार मंडुवा व सांवा झंगोरा, मादिरा का रकबा घट रहा है। राज्य गठन... Read more
कमलेश जोशी उत्तराखंड में प्रधानी के चुनाव अब जाकर आए हैं लेकिन खीम दा को प्रधानी का बुखार पिछले साल से ही चढ़ने लगा था. वैसे तो खीम दा ने जिंदगी में कोई बड़ा तीर नही मारा ठैरा लेकिन लोगों द्... Read more
दया कृष्ण काण्डपाल पंचायत चुनावों के बाद दशहरा भी बीत गया। हजारों की भीड़ पुतलों के साथ नाच रही है। नाचने वालो में 90% नशेड़ी। इन पुतलों से क्या सीख मिली हमें ? नहीं मालूम। हर कोई निशाचर रूप... Read more
विनीता यशस्वी कुमाऊं अंचल में रामलीला के मंचन की परंपरा का इतिहास लगभग 160 वर्षों से भी अधिक पुराना है। यहाँ की रामलीला मुख्यतः रामचरित मानस पर आधारित है जिसे गीत एवं नाट्य शैली में प्रस्तुत... Read more
देवेश जोशी सळौ डारि ऐ गैना, डाळि बोटि खै गैना। फसल पात चाटि गैना, बाजरो खाणों कै गैना। सळौ डारि डांड्यूं मा, बैठि गैन खाड्यूं मा। हात झेंकड़ा लीन, सळौ डारि हांकी दीन। काकी पकाली पलेऊ, काका ह... Read more
चारू तिवारी आजकल पहाड़ में एक गीत ‘फ्वां बाग रे’ बहुत हिट हो रहा है। हमारे पत्रकार साथी महिपाल नेगी ने इस गीत से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी। यह गीत लिखा था विशालमणि ने और गाया और संगीतब... Read more
अशोक पाण्डे जब उनसे पहली बार मिला वे नैनीताल के लिखने-पढ़ने वालों के बीच एक सुपरस्टार का दर्जा हासिल चुके थे. उनकी कविताओं की पहली किताब ने आना बाकी था अलबत्ता मेरे परिचितों का एक बड़ा हिस्सा... Read more
विनीता यशस्वी ‘खतड़ुवा’ कुमाऊं का एक पारम्परिक त्यौहार जिसे आश्विन मास की प्रथम तिथि या १५ सितम्न्बर के आस पास मनाया जाता है। यह भी माना जाता है कि ‘खतडुवा’ से सर्दियों की शुरूआत हो जाती है।... Read more
डाॅ. अरुण कुकसाल ‘आ, यहां आ। अपनी ईजा से आखिरी बार मिल ले। मुझसे बचन ले गई, देबी जब तक पढ़ना चाहेगा, पढ़ाते रहना।’ उन्होने किनारे से कफन हटाकर मेरा हाथ भीतर डाला और बोले ‘अपनी ईजा को अच्छी तरह... Read more