डाॅ. अरुण कुकसाल ‘आ, यहां आ। अपनी ईजा से आखिरी बार मिल ले। मुझसे बचन ले गई, देबी जब तक पढ़ना चाहेगा, पढ़ाते रहना।’ उन्होने किनारे से कफन हटाकर मेरा हाथ भीतर डाला और बोले ‘अपनी ईजा को अच्छी तरह... Read more
डॉ. अरुण कुकसाल ‘गो-बैक मेलकम हैली’ ‘भारत माता की जय’ हाथ में तिरंगा उठा, नारे भी गूंज उठे, भाग चला, लाट निज साथियों की रेल में, जनता-पुलिस मध्य, शेर यहां घेर लिया, वीर जयानन्द, चला पौड़ी वाल... Read more
विनीता यशस्वी पूरे उत्तराखंड में भाद्रपद शुक्ल पक्ष में नन्दा देवी मेले का आयोजन बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ किया जाता है। नन्दा देवी हिमालय की एक चोटी होने के अलावा उत्तराखंड के लोगों की... Read more
देवेश जोशी उत्तराखंड में जनसामान्य गुलदार (लेपर्ड) को बाघ के नाम से ही जानता है। बोलचाल, गीत, कथा व अखबारों में भी इसी नाम का प्रचलन है। सामान्यतया बाघ इंसानों पर हमला नहीं करते पर विभिन्न... Read more
डॉ. उमाशंकर थपलियाल ‘समदर्शी’ खुशनुमा व्यक्तित्व, जीवन की जकड़ता से दूर, ‘जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह और शाम’ की तर्ज पर हर समय गतिशील एवं ऊर्जावान, जीवन के 75वें पायदान पर दुनिया स... Read more
डॉ. अरुण कुकसाल ‘किसी समय कहीं एक चिड़िया रहती थी। वह अज्ञानी थी। वह गाती बहुत अच्छा थी, लेकिन शास्त्रों का पाठ नहीं कर पाती थी। वह फुदकती बहुत सुन्दर थी, लेकिन उसे तमीज नहीं थी। राजा ने सोचा... Read more
डाॅ. अरुण कुकसाल प्रेमचंद, गोर्की और लू शुन तीन महान साहित्यकार, कलाकार और चिंतक। जीवनभर अभावों में रहते हुए अध्ययन, मनन, चिन्तन और लेखन के जरिए बीसवीं सदी के विश्व-साहित्य के युगनायक बने। ए... Read more
(‘जर्नल ऑफ़ एशियन स्टडीज’ मे प्रकाशित संजय जोशी के रिसर्च पेपर ‘जूलियट गौट इट रौंग –कन्वर्जन एंड द पॉलिटिक्स ऑफ़ नेमिंग इन कुमाऊं 1850-1930’ के आधार पर.) उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम और बीसवीं... Read more
त्रेपन सिंह चौहान के दो बेहद पठनीय उपन्यासों, ‘यमुना’ और ‘हे ब्वारी’ में उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की पृष्ठभूमि, 1994 के ऐतिहासिक राज्य आन्दोलन और उसमें हुए दमन, उत्तराखंड राज्य के गठन और राज्... Read more