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‘पार्वती , शिव की अर्धांगिनी नहीं , पार्वती का अर्थ पहाड़ों की ऊर्जा बनाए बचाए रखने वाली पहाड़ की महिलाओं से है। ‘पार्वती ‘ शेखर जोशी द्वारा रचित एक कविता संग्रह है। कौन शेखर जोशी? शेखर जोशी यानी जाने माने कहानीकार। शेखर जोशी कवि भी हैं यह जानना उतना आश्चर्यजनक नहीं है बल्कि आश्चर्य इस बात का है कि वो अपनी लिखी कहानियों की तरह ही बेहतरीन कविताएं भी लिखते आए हैं। आश्चर्य, कि गिरदा से भी ये जिक्र कभी सुनने में नहीं आया।
‘पार्वती’ का मुख पृष्ठ प्रसिद्धि चित्रकार अशोक भौमिक जी द्वारा डिजाइन किया गया है । जय मित्र सिंह विष्ट पहाड़ के सीढ़ीदार खेतों के मध्य पाथर वाले मकानों की बाखई वाले इस खूबसूरत मुखपृष्ठ के छायाकार हैं । पुस्तक का शीर्षक और मुखपृष्ठ का फोटो स्वयं ही पुस्तक की सामग्री का उल्लेख कर देता है।
इस कविता पुस्तक की पहली कविता है ‘पार्वती ‘
गिरि अधार पर देवी थान
सिर नवा , वह चढ़ गर्ई सीधी चढ़ाई
ऊपर — —
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भारी बोझ सिर पर ले संभल कर उतरना ओ पार्वती
तेरी राह तकते खैरा औ’ बसंती
तुझे आशीष देंगे जीभर
इस पूरी कविता में पहाड़ की मेहनतकश महिला यानी पार्वती का वर्णन है । जिसके लिये घास काटने के लिये जाना , घास काटना और घास लेकर नीचे उतरना मतलब जान की बाजी लगाना है। पर वह इस कठिन कार्य को भी संगीत में बदल देती है।
‘ओखल नृत्य ‘ में ओखली में धान कूटती दो महिलाओं वर्णन है। और कवि ने धान से चावल निकालने के इस श्रमसाध्य इस कार्य बहुत ही सुन्दर नृत्य प्रस्तुति के रुप में प्रस्तुत किया है।
दोलायमान है वेणी
दोलायमान है वेणी में गुंथे फुन्ने
दोलायमान है वक्ष
झूम रही है मूंगो की माला
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लयबद्ध चल रही है जुगलबन्दी
एक और कविता है ‘धानरोपाई ‘ । धानरोपने का अदभुद दृश्य अब पहाड़ों से लगभग विलुप्त हो गया है । पर अहा क्या वर्णन है।
हुड़के की थापों पर गीतों की वर्षा बरसी,
मूंगे – मोती की मालाओं से सजी
कामदारिनों ने लहंगे में फेटे मारे
आंचल से कमर कसी
नाक शीर्ष से माथे तक
रोली का टीका सजा लिया।
विदा की बेला , मुझे अपने में समेटे , नैनीताल के प्रति, प्रवासी का स्वपन , वसन्ताभास आदि सभी पह पहाड़ और उसकी प्रकृति का बेहतरीन वर्णन है । ‘वसन्ताभास ‘ में शेखर जोशी वसन्त ऋतु को महसूस करते हुए लिखते हैं-
घुंघराले बालों वाले
खुफिया दोस्त सी
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अनायास ही कमरे में चली आई
बिखरे पन्ने पलट गई
अध लिखे पत्रों को पढ़ गई
‘बाखई वाला गाँव ‘ तो पहाड़ के गांव और जिन्दगी की जरूरतों के कारण इससे बिछड़ने और पहाड़ में रहने की इच्छा को मन में दबाए रखने की मजबूरी का और पहाड़ के ग्रामीण जीवन का विस्तृत वर्णन है।
शेखर जोशी, ने मिलों को, कारखानों को और यन्त्रों के बहाने उसके पीछे की शोषण के ताने बाने को ‘अयान्त्रिक ‘ में काफी गहराई से कहा है। इन कविताओं में गजब की बात यह है कि शेखर जोशी यन्त्रों को ठीक पहाड़ की तरह ही गहराई से महसूस करते हैं । जैसे ‘ कारखाना – 1 ‘ में शेखर जोशी लिखते हैं –
पुर्जों की जिन्दगी का इतना परिचय है
पुर्जों की जिन्दगी भी अभिनय ही अभिनय है
‘विश्वकर्मा पूजा ‘ में औजारों का वर्णन इस तरह है –
फिटरों ने अपने टूलकिट खाली कर लिये हैं
एक-एक औजार चमका रहे हैं
प्लास , पेचकस, छेनी , हथौड़ी, स्पैनर, … हैकशा, रेतियां छोटी बड़ी बर्में और पंच
‘आंदोलित जन ‘ यह तीसरा विषय है जिसे शेखर जोशी ने छूआ है । छूआ ही नहीं बल्कि साबित किया है कि कविता नारेबाजी नहीं एक गम्भीर विधा है।
‘ मुजफ्फर नगर ‘ 94 ‘ में कवि लिखता है-
नहीं सुनाई देती उनकी आवाज
नहीं स्पष्ट होता आशय
दरवाजे पर खड़ी -खड़ी
बतियाती हैं दोनों ।
माचिस लेने गई थी औरत
आग दे आई है।
इस कविता पुस्तक में ‘अस्पताल की डायरी ‘ के बहाने आधुनिक चिकित्सा और आम आदमी की मजबूरी का वर्णन कवि ने बिल्कुल निराले ढंग से किया है –
आकर वार्ड में, लौटी चेतना
धन्य हो हमारी विज्ञान सम्पन्न सदी
तूने कितना भर दिया हममें आत्मविश्वास !
कितनी शक्ति!
लेकिन, साथ ही बनाया कितना निरीह
ये चेर्नोबिल , ये फुकोशिमा और ये अपना भोपाल!
‘विविधा’ में विभिन्न विषय समेटे गए हैं । जैसे ATM पर कविता के रूप में दी गई प्रतिक्रिया बहुत ही जबरदस्त है –
शीर्षक है ‘ ए.टी.एम. के प्रति’ ATM को सम्बोधित करते हुए शेखर जोशी लिखते हैं-
ओ कुबेर की बेटी
ओ लक्ष्मी की लाड़ली
— — — …
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झेलनी पड़ती है लू
कटखना चिल्ला जाड़ा
चपेट मारती बौछार काम पर जाने के लिए
तब मिलती है पगार
सेठ की तिजोरी से मुश्किल से
निकलता है पैसा ।
पर्ची में यह सब लिखना जरूर
ओ कुबेर की बेटी ,
ओ लक्ष्मी की लाड़ली !
अन्त में ‘जुनून : एक काव्य पाठ की रोमांचक स्मृति’
भी एक दिलचस्प प्रसंग है जिसका अन्त स्टालिन की मृत्यु पर लिखी गई एक रोचक कविता से किया गया है। हिन्दी साहित्य को एक बेहतरीन किताब देने के लिए शेेखर जोशी का धन्यवाद।
नवारुण प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य 225 रुपया है । इस पुस्तक को प्राप्त करने के लिए –
navarun.publication@gmail.com को mail किया जा सकता है।
फोन : 9811577426