139 एंबुलेंसों में से लगभग 75 एंबुलेंस तो बिल्कुल खराब हालत में हैं और ये अब तक लगभग 5 लाख किमी. तक चल चुकी हैं। बाँकी बची हुई एंबुलेंस भी अच्छी हालत में नहीं हैं। हालांकि 61 नई एंबुलेंस को इस बेड़े में शामिल होना है पर वो कब तक संभव हो पायेगा यह अभी पता नहीं है।
वर्ष 2008 में 108 एंबुलेंस सेवा जब शुरू हुई तो सब को खासकर दूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को इस बात की राहत हो गयी थी कि उनको भी अब इलाज समय से मिल पायेगा और इसमें कोई संशय नहीं है कि 108 एंबुलेंस ने लोंगों के इस भरोसे को जीता भी।
2008 में जब यह सेवा शुरू की गयी थी उस समय इन एंबुलेंसों की संख्या 90 थी। 2010 में इनकी संख्या बढ़ा कर 108 कर दी गयी और 2011 में फिर इनकी संख्या में इजाफा करके 139 कर दिया गया। इनकी बढ़ती हुई संख्या से आमजन में खुशी भी थी और ये उनके काम भी आने वाली सेवा थी इसलिये खासी प्रसिद्ध भी हो गयी। पर समय के साथ-साथ अब इस सेवा के खस्ताहाल होने के दिन शुरू होने लगे हैं। आये दिन ये एंबुलेंस खराब ही रहती हैं और लोगों के अपनी सेवायें देने में असमर्थ हो गयी हैं जिससे लोगों में रोष और निराशा दोनों ही हैं।
139 एंबुलेंसों में से लगभग 75 एंबुलेंस तो बिल्कुल खराब हालत में हैं और ये अब तक लगभग 5 लाख किमी. तक चल चुकी हैं। बाँकी बची हुई एंबुलेंस भी अच्छी हालत में नहीं हैं। हालांकि 61 नई एंबुलेंस को इस बेड़े में शामिल होना है पर वो कब तक संभव हो पायेगा यह अभी पता नहीं है।
108 की सेवा का लाभ अब तक बहुत लोगों की मिल चुका है। अब यह सेवा तकरीबन 4 लाख 72 हजार से अधिक गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचा चुकी है, 9,900 बच्चों का जन्म एंबुलेंस में हुआ है और करीब 1 लाख 24 हजार से अधिक सड़क हादसे में घायल लोगों को अस्पताल तक पहुंचाया है। जो सेवा लोगों के लिये इतनी जरुरी बन गयी है उसकी इस तरह नजरअंदाजी करना समझ से परे है।