नवीन जोशी
पिथौरागढ़ की इस बार की यात्रा में युवाओं द्वारा संचालित ‘आरंभ’ अध्ययन केन्द्र को करीब से देखने का अवसर मिला। पहले सिर्फ सुना ही था। दो कमरे के एक छोटे से ‘आरंभ’ केन्द्र में साहित्यिक पुस्तकों का संग्रह है जो खरीदने के लिए और वहाँ बैठकर पढ़ने के लिए भी उपलब्ध हैं। खरीदने के पाठकों के आग्रह पर किताबें घर भी पहुँचा दी जाती हैं। नई-पुरानी किताबें पढ़कर यहाँ उन पर नियमित चर्चा होती है। इसी केन्द्र में बैठकर युवा साथी लैपटॉप पर दुनिया भर की अच्छी फिल्में देखते हैं और उन पर चर्चा करते हैं। ‘आरंभ’ ने हाल के महीनों में धारचूला, डीडीहीट और टनकपुर जैसे कस्बों में पुस्तक मेले भी लगाए हैं। पहले ‘नन्हीं कलम’ नाम से बच्चों के लिए एक बुलेटिन भी निकाला गया था जो शायद नियमित नहीं हो पाया है।
‘आरंभ’ की इन गतिविधियों का परिणाम यह है कि पिथौरागढ़ शहर और आस-पास बहुत उत्साहजनक साहित्यिक-सांस्कृतिक वातावरण बन गया है। मेरा पिथौरागढ़ जाना बिल्कुल अचानक ही हुआ था। एक दिन पहले ही मैं चर्चित कवि महेश पुनेठा जी को सूचना दे पाया था। उनसे जानकारी पाकर ‘आरंभ’ के साथियों ने बातचीत का एक शानदार आयोजन कर डाला। सोमवार का दिन होने के बावजूद कोई पचास लोग नगरमहापालिका के सभागार में जुट गए थे। सूचना न मिल पाने या छुट्टियों में बाहर होने के कारण कई लोग आ नहीं पाए। तीन घंटे सवाल-जवाब का सिलसिला चला। वहाँ उपस्थित कई लोगों ने मेरे उपन्यास, कहानियाँ और संस्मरण पढ़ रखे थे जिन पर अच्छे और विचारोत्तेजक प्रश्न पूछे गए। मेरी जो पुस्तकें ‘आरंभ’ के पास थीं वे हाथोंहाथ बिक गईं।
एक लेखक के लिए यह गौरव की बात है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी गतिविधियों से पिथौरागढ़ में बहुत रचनात्मक हवा बहती है। बड़े-बड़े शहरों में ऐसा साहित्यिक वातावरण आज नहीं दिखाई देता। इससे पठन-पाठन और बातचीत का माहौल बना है जो जमीनी बदलाव के लिए बहुत जरूरी है। मुझे पता चला कि आरंभ का एक सक्रिय सदस्य डिग्री कॉलेज छात्र संघ के चुनाव में विद्यार्थी परिषद और एनएसयूआई के प्रत्याशियों को हराकर अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गया। यह बहुत बड़ी बात है और दूरगामी प्रभाव के संकेत देता है।
‘आरंभ’ के पीछे हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि महेश पुनेठा जी की प्रेरणा रही है। पुनेठा जी ने विद्यालयों में ‘दीवार पत्रिका’ की जो शुरुआत करवाई थी आज वह राज्य के कई स्कूलों में विद्यार्थियों की रचनात्मक प्रतिभा निखार रही है। इससे कई नई प्रतिभाएँ सामने आई हैं। पुनेठा जी ‘शैक्षिक दखल’ पत्रिका का सम्पादन भी करते हैं जो अपनी विशेष जगह बना चुकी है। पेशे से शिक्षक पुनेठा जी ने पिथौरागढ़ और आस-पास समर्पित शिक्षकों, संस्कृतिकर्मियों और रचनाकारों की अच्छी टीम खड़ी कर दी है। युवाओं द्वारा युवाओं के बीच सक्रिय ‘आरंभ’ का काम लेकिन अनोखा ही है। पिथौरागढ़ से मैं बड़ी ऊर्जा और उम्मीद लेकर लौटा हूँ।