राजीव लोचन साह
आज बहुत तड़के इलाहाबाद से अंशु मालवीय का संदेश मिला कि रवि किरण जैन नहीं रहे. मैं स्तब्ध रह गया. वे बहुत लम्बे समय से बिस्तर पर थे, मगर कुछ लोगों का होना ही आपके लिये शक्ति का स्रोत होता है. वे हमारे लिये सम्बल थे. एक शाश्वत उम्मीद थी कि हम किसी कठिन परिस्थिति में भी फँस जायेंगे तो वे हमें सुरक्षित निकाल ले जायेंगे. अतीत में अनेक बार ऐसा हुआ भी था. वर्ष 2003 में जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मुजफ्फरनगर कांड के आरोपी अनन्त कुमार सिंह को दोषमुक्त किया था तो उनकी ही मदद से हमने अदालत के खिलाफ खड़े होने का दुस्साहस किया था. अदालत को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था.
उन्होंने मुझे गांधी के ग्राम गणराज्य और 73वें-74वें संविधान संशोधनों का मर्म इतनी अच्छी तरह समझाया कि मैं उनका पैरोकार बन कर डट कर इन विषयों पर लिखने लगा था, बोलने लगा था इस अमिट विश्वास के साथ कि इन्हीं के माध्यम से देश की हर समस्या का समाधान किया जा सकता है. विकास का अधिकार मानवाधिकार है और यह समुदाय का अधिकार है कि वह तय करे कि उसे कैसा विकास चाहिए और पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से वह अपना विकास खुद करे, इस बारे में उन्होंने मुझे एक स्पष्ट दृष्टि दी थी.
कई बार हमने अदालत का दरवाजा खटखटाया. वर्ष 2002 में जब एन. डी. तिवारी की, उत्तराखंड की पहली निर्वाचित सरकार ने नगरपालिकाओं को भंग कर प्रशासक बैठा दिये तो हम कोर्ट गये थे कि इससे तो प्रदेश में सांवैधानिक संकट पैदा हो गया है. कोर्ट के नोटिस जारी करते ही तिवारी जी ने तत्काल नगरपालिकाओं के चुनाव करवा दिये. इस बार तो हमारी याचिका पर भी अदालत ने सख़्ती नहीं अपनायी और चुनाव पंद्रह महीने पिछड़ गये.
मानवाधिकारों के वे प्रबल प्रवक्ता थे और डट कर इनके लिये संघर्ष करते थे. कुलदीप नैयर और राजेन्द्र सच्चर के बाद पी.यू.सी.एल. (पीपल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज) का झण्डा उन्होंने ही मज़बूती से थामे रखा था और हाल-हाल तक इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उनकी ही देखरेख में हमने उत्तराखंड में में पी.यू. सी. एल. की इकाई गठित कर राजेंद्र धस्माना को उसका अध्यक्ष बनाया था. ज़ाहिर है कि उनके जाने के बाद इस क्षेत्र में जबरदस्त शून्य आ जायेगा.
आज तमाम-तमाम बातें जैन साहब को लेकर याद आ रही हैं. नैनीताल आने पर सुधांशु धूलिया को उनकी व्यवस्थायें देखनी होती थीं और फिर हम लोग अपनी बहसों में व्यस्त हो जाते थे. इन्हीं से कई जन हित याचिकाओं का रास्ता खुलता था.
हम आपको हमेशा याद रखेंगे जैन साहब. आपको हमारा अन्तिम सलाम.