त्रिभुवन बिष्ट
दिनांक 16/11/2023 को सुबह सुबह शोक समाचार प्राप्त हुआ कि ताऊ जी श्री केशर सिंह रौतेला जी का स्वर्गवास हो गया. इस बात से मैं बड़ा ही स्तब्ध और भावुक था. अचानक से उनका चेहरा मेरे आँखों के सामने आ गया. दिवाली से एक दिन पहले जब में घर में था उस दिन सुबह-सुबह मालूम चला कि ताऊ जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. मैं तुरंत बिना देर किये उनसे मिलने गया, उनका हालचाल जाना तभी उनको हल्द्वानी इलाज़ के लिए ले जाने कि तैयारी चल रही थी. उत्तराखंड में स्वास्थ सेवाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है बहरहाल उन्हें सुशीला तिवारी से हायर सेंटर रेफर कर दिया घर से जाते समय मैं बोला ठुल बाज्यू सही हो के आ जाओगे. अच्छे से दिखा के आना. बोले “होय, ठीक है बेर आ जुल “!! फिर उसके बाद वो निकल आये हल्द्वानी को.
जब से मैंने होश संभाला मैंने ताऊ जी के व्यक्तित्व को गौर से देखा. उनमे एक चीज बहुत जगजाहिर थी वो थी निस्वार्थ भाव से “प्राकृतिक न्याय की अवधारणा“. अर्थात जब भी गांव में कोई घर परिवार या गांव में किन्ही दो लोगों के बीच कहासुनी होती थी वो बिना पक्षपात के ’न्याय’ की विचारधारा के साथ वहां पर मौजूद हो जाते थे और दोनों पक्षां को समझा बुझाकर राजीनामा करवाते थे. दूसरी महत्वपूर्ण चीज होली में उनका सबसे पहले तैयार हो के सभी को दयोखान (गांव का मुख्य जनमिलन केन्द्र)से बुलाना -“आओ, आओ जल्दी आओ“. वो शब्द आज भी मेरे कानो में गुंजते हैं. क्या ज़िंदादिली थी और क्या सचेतता और जागरण था अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवंत बनाये रखने के लिए. ताऊ जी ने कितनी पढ़ाई की थी मुझे ये तो नहीं पता लेकिन उनमें ऐसे गुणों का होना किसी सामाजिक संस्कृति के प्रहरी होने जैसा था.
ताऊ जी का जो मौलिक विचार था की गांव में सभी लोग एक समान हैं. किसी के खेत में बंदर, लंगूर कुछ आये उसको भगाने का प्रयास स्वयं ऐसे करते थे जैसे उनके खुद के खेत में आया होगा. अपनी जोरदार दहाड़ जैसी आवाज से वो बंदरों को भगाने का प्रयास करते थे और बन्दर भाग भी जाते थे, ये मेरे सामने कई बार हुआ है. इसके अलावा वो सभी को एक नजर से और एक सामान भाव से देखते थे. जिसके घर में भी कुछ अप्रिय होता था सबसे पहले पहुँच जाते थे.
सामाजिक समरसता और सद्भाव को समाज में जीवंत रखने के लिए ताऊ जी ने अद्भुत प्रयास किये थे. अगर कोई उनसे कुछ अपशब्द भी बोलता था तो उसे वो समझा बुझाकार बिल्कुल सामान्य कर देते थे और ना समझने पर स्वयं उसकी बात को अनसुना कर वहां से चले जाते थे, किसी डर के कारण नहीं बल्कि दूसरे को नासमझ समझकर। इससे उनमें हमें गांधीवादी विचारधारा की झलक भी देखने को मिलती है.
उनकी समाज में सक्रिय भूमिका, 15 अगस्त, 26 जनवरी को स्कूल में भागेदारी कर अपने विचार साझा करना, लोक परंपराओं को जीवंत रखना और अन्य को भी प्रेरित करना और साथ में इस बात की भी चिंता करना की भविष्य में इन परंपराओं को कौन अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करेगा। दशकों तक गांव में एकमात्र दुकान भी उन्होंने की। दुकान से लोगों को चीज़ें महीनां तक उधार देना, चलते फिरते राहगीरों से बैठो कहना और उन्हें चाय पानी पीने के लिए पूछना। दुकानदारी के दौरान अक्सर लोग बच्चों से बीडी तम्बाकू जैसी कोई सामान मंगाते थे पर उन्होंने बच्चों को कभी भी नहीं दिया उल्टा घरवालों को बुलाकर खूब सुनाते थे। ऐसे गुण थे जो उन्हें मेरी नज़र में एक आदर्श और “उदारवादी व्यक्तियों की श्रेणी में रखते हैँ.
जब से मैं टीचर बना ताऊ जी मुझे “मास्टर साहब“ कहके ही पुकारते थे. मुझे उनसे ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं रही कभी, लेकिन ये उनका प्यार और अपनापन और सम्मान का भाव था जिसकी वो हमेशा दूसरों से भी अपेक्षा रखते थे. गंगानाथ धाम (टकुरिया) में लगने वाले जागर हों या हरज्यू मंदिर की बैसी, सभी जगह वह अभूतपूर्व तरीके से सबसे पहले पहुंचकर सक्रिय हो जाते थे और सारे कामों की जिम्मेदारी लेकर गंभीर हो जाते थे और अन्य लोगो को भी प्रेरित करते थे.
छोटे बच्चों को बीड़ी-गुटखा पीता देख बहुत जबरदस्त गरियाते थे. कुल मिलाकर समाज में फैली बुराइयों को दूर करने का निश्वार्थ जतन करते थे. यूँ तो आज की पीढ़ी बहुत पढ़ लिख गयी है, पर हम सब में इन गुणों का ह््रास होते जा रहा है और हमसे बाद वाली पीढ़ी का तो हाल ही ग़ज़ब है. यूँ तो समाज का हर अच्छा व्यक्ति किसी के शब्दों का मोहताज़ नहीं होता लेकिन कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो स्वतः ही किसी व्यक्ति के किरदार की गहरायी का मूल्यांकन कर हमें उन पर चर्चा करने को स्वतः प्रेरित करती हैं. उपरोक्त सारी बातें ताऊ जी के व्यक्तित्व का बखूबी बखान स्वयं करती हैं और ये बातें किसी से भी छुपी नहीं हैं.
समाज के किसी भी व्यक्ति को उस समाज द्वारा जिस समाज की मिट्टी में उसका कृतित्व और रचनात्मकता बसी हो, शब्दों के माध्यम से श्रद्धांजलि देने का यह चलन बदस्तूर जारी रहना चाहिए क्यूंकि किसी के अच्छे गुणों के बीज अगली पीढ़ी में बोना अनिवार्य है ताकि जो अगली फसल निकले वो उन गुणों से लबालब भरी हो.
मेरा ताऊ जी के समस्त उन गुणों को लिखने का उद्देश्य व्यक्तिगत न होकर सामाजिक हैं, और वो इन शब्दों के वास्तविक हक़दार हैं. ताऊ जी का जीवन एक विशाल वट वृक्ष की तरह रहा जिसकी छाँव में उदारता, परोपकार, सदाचार और मानवता से परिपूर्ण गुण फले फुले और आज छोटे-छोटे वृक्षों के रूप में हमें चारों ओर उनकी छाँव देखने को मिलती हैं. एक शिक्षक होने के नाते में अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझता हूं की हर व्यक्ति जिसको में करीब से जानता हूं उनके व्यक्तित्व को कलममबद्ध कर समाज के सामने लाऊँ. यही मेरी ओर से उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी. ताऊ जी का जीवन हमारे सब के लिए एक प्रेरणा है. उनकी सारी अच्छाईयों से हम सबको सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए.
ये शब्द बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा मेरे मन में उनके लिए सम्मान का भाव है. और शायद हम सभी का होगा. ताऊ जी की अंतयेष्टि में, मैं शामिल ना हो पाया, लेकिन जब से मुझे ये समाचार मिला तब से लेकर लगातार उनसे जुडी कोई न कोई घटना मुझे स्वतः याद आ रही है. उनके किरदार की जो भी खुबियाँ रही वो वास्तव में अनुकरणीय हैं और हम सब को उन गुणों को आत्मसात कर जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक कलम के माध्यम से किसी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को ज्यों का त्यों लिखना असंभव सा है लेकिन जितना भी संभव है मैंने उनके व्यक्तित्व के हर पहलू को उजागर करने का भरसक प्रयास किया है।