देवेश जोशी
मेरी पढ़ाई-लिखाई का माध्यम हिन्दी था। ज़ाहिर है विचार-प्रक्रिया भी हिन्दी में ही चलती है। साहित्य भी सर्वाधिक हिन्दी का ही पढ़ा है तो अभिव्यक्ति की भी सबसे सहज भाषा हिन्दी ही है। किंतु मेरे हिन्दी-लगाव ने किसी और भाषा से दूरी पैदा नहीं की। दूसरी भाषाओं को इसकी शाखाएँ जहाँ-जहाँ भी स्पर्श करती हुई देखी वहीं से उनके अंतःस्थल में झांकने का प्रयास हमेशा बना रहा।
हिन्दी भाषा की भले ही कोई एक सर्वमान्य परिभाषा हो पर व्यवहार में हिन्दी के अनेक रूप देखे जाते हैं। फिल्मों की हिन्दी और विश्वविद्यालयों की हिन्दी में दूर-दूर तक भी कोई रिश्ता नहीं दिखता। आँचलिक बोलियों से समृद्ध हिन्दी (जिसमें सूर और तुलसी ने क्लासिक्स लिखे) और महानगरों में व्यवहृत हिन्दी में भी बहुत-बड़ा फासला दिखता है। दूसरे वाले पहली को गंवारू कहने से नहीं चूकते तो पहले वालों के लिए भी दूसरी परदेशिया-सी ही रहती है। एक हिन्दी शुद्धतावादियों की है जिसमें कदम-कदम पर संस्कृत हो जाने की अनुभूति होती है तो एक हिन्दी हिंदुस्तानी समर्थकों की है जिनके यहाँ कोई भेदभाव नहीं है, किसी शब्द और मुहावरे के लिए दरवाजे बंद नहीं हैं।
दरअसल भाषा किसी आदमी को नहीं बनाती, आदमी भाषा को बनाता है। हर हिन्दीभाषी चाहता है कि उसकी भाषा में संस्कृत का लालित्य हो, अंग्रेजी की समृद्धि हो और उर्दू का अंदाज़े-बयां भी। ये भाषा, हर भाषा से प्रेम करके पनपती है। हर भाषा की बुनियादी खूबसूरती को समझ कर विकसित होती है। इस भाषा को पाने के लिए जीते-जागते इंसानों को बोलते हुए सुनना पड़ता है। उनके लिखे हुए को पढ़ना पड़ता है। पढ़े हुए और सुने हुए को जज़्ब भी करना होता है।
मातृभाषा सबसे महत्वपूर्ण इसलिए होती है कि वो संप्रेषण का हमारा पहला हथियार होती है। आगे चल कर इस हथियार को धार भी दी जाती है और बहुभाषिकता के रूप में बहुगुणित भी किया जाता है।
सबसे खतरनाक भाषा, गढ़ी हुई भाषा होती है। इसमें न कोई महक होती है न प्राकृतिक स्वाद। कहीं की ईंठ कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा वाली कहावत के जरिए भी इस गढ़ी हुई भाषा को समझा जा सकता है। गढ़ी हुई भाषा में प्रवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती और प्रभाव तो सिरे से ही गायब होता है।
इस गढ़ी हुई भाषा के दर्शन कई जगह हो सकते हैं। एक सुलभ-दर्शनालय बैंकों का वो पट्ट भी होता है जिस पर ‘आज का हिन्दी शब्द’ लिखा होता है। मैं जब भी किसी बैंक में जाता हूँ तो इस पट्ट की ओर नज़र अवश्य डालता हूँ। क्योंकि बैंक के भीतर रुपए-पैसों की दुनिया में यही वह जगह होती है जहाँ भाषा के लिए जगह होती है, आरक्षित ही सही।
इस पट्ट पर लिखे शब्द को पढ़ कर मैं ऊपर वाले का शुक्र भी अदा करता हूँ कि चलो ये भी हिन्दी शब्द अपने शब्दकोश में नहीं। ऐसा भी सोचता हूँ कि अगर इन हिन्दी शब्दों का प्रयोग मैं बोलचाल में करने लगूं तो लोग मुझे पक्का अंग्रेज समझेंगे। फिर सुकून मिलता है उनका अंग्रेजी पर्याय देख कर जिन्हें कोई ठेली-पटरी वाला भी समझने में कठिनाई महसूस नहीं करता।
बैंक में जब भी गया, उनके भाषापट्ट से आज का हिन्दी शब्द जरूर नोट किया। आप भी देखिए और ईमानदारी से कहिए कि क्या सिर्फ हिन्दी के नाम पर इन शब्दों को आप पचा पा रहे हैं और अगर पच रहे हों तो क्या इन्हें संवाद में प्रयोग करने की स्थिति में हैं।
अशोध्य ऋण – Dead Loan
विकलन – Debit
विलेख – Deed
अभिकल्प – Design
चुकौती पत्र – Discharge Certificate
निपटान – Disposal
प्रतिदेय अग्रिम – Advance Repayable
प्रत्याभूति – Guarantee
परिसमापनाधीन – Under Liquidation
निधीकरण – Funding
जावक साझेदार – Outgoing Partner
पुनर्बट्टा – Rediscounting
बैंक भाषापट्टों पर ही कुछ बेहतरीन हिन्दी शब्द भी देखे हैं जैसे Closing Balance के लिए इतिशेष। एक बैंक शाखा में इसी की हिन्दी, रोकड़ बाकी लिखी हुई थी। कोई पूछे कि भाई, आज का रोकड़ बाकी बता तो पीठ पर कोड़े पड़ने की सी अनुभूति हो। इसी तरह Opening Balance के लिए अथशेष भी सुंदर हिंदी शब्द है।
दूसरी समस्या, हिन्दी की मानक पारिभाषिक शब्दावली विकसित करने में असफलता है। अब Hospital की वर्तनी तो सारी दुनिया में एक जैसी रहती है पर उत्तर प्रदेश में ये चिकित्सालय हो जाता है और हरियाणा में हस्पताल। मध्यप्रदेश में औषधालय और महाराष्ट्र में रुग्णालय। यमुना नदी के इस तरफ, उत्तराखण्ड में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का मतलब हाईस्कूल होता है और उस तरफ हिमांचल में इण्टरमीडिएट। सरकारी, ही कुछ हिन्दी राज्यों में जहाँ राजकीय है तो वही दूसरे राज्यों में शासकीय। जब छात्र था तो रिडक्शन की हिन्दी अपचयन पढ़ी और जब शिक्षक बना तो वही किताबों में अनॉक्सीकरण के रूप में मिला। डारेक्टर फिल्म का हो तो निर्देशक और किसी संस्था या विभाग का हो तो निदेशक। एयर हॉस्टेस के लिए परिचारिका, सत्कारिणी और व्योमबाला शब्द गढ़े गए पर जनता की जुबान से एयर हॉस्टेस को हटा नहीं पाए। टेलीविजन के लिए दूरदर्शन पूरी तरह शाब्दिक अनुवाद है तो ऑल इंडिया रेडियो के लिए आकाशवाणी, खूबसूरत हिन्दी शब्द जिसे आत्मसात करने में किसी को कोई दुविधा नहीं हुई।
सभी हिन्दीभाषियों, हिन्दीप्रेमियों और हिन्दी पाठकों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ इस भावना के साथ कि हिन्दी का शिरातंत्र उसकी बोलियाँ हैं और पेशीयतंत्र उसकी सम्पर्क भाषाएँ। इन सब से अलग करके गढ़ी हुई हिन्दी किसी के भी दिल की भाषा नहीं हो सकती। हिन्दी भारत के हृदय की भाषा है, सर्वाधिक लोगों द्वारा व्यवहृत भाषा है। हमें अपनी हिन्दी पर गर्व है। उस हिन्दी पर जिसमें सभी के लिए जगह है और जिसने सभी से ताकत पायी है।