हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार शेखर जोशी विगत कुछ वर्षों से कवितायें लिखने में रुचि ले रहे हैं। यह कविता उन्होंने कथाकार/पत्रकार नवीन जोशी के माध्यम से विशेष रूप से ‘नैनीताल समाचार के लिये भिजवाई है।’ — सम्पादक
शेखर जोशी
(हरीश चंद्र पाण्डे और नवीन जोशी के लिए)
सुनाई देने लगी है
मंदिर की घण्टियों की अनुगूंज
पूरा सरगम स रे ग म
छोटी और बड़ी घण्टियों का समवेत स्वर
लौट आए होंगे बच्चे स्कूल से
लीक छोड़, पैदल बटिया से नहीं
पिरुल1 की फिसलन से जूझते हुए
कभी हम भी
ऐसे ही आते थे
घण्टियों का सरगम बजाने के लिए
घण्टियां छोटी और वृहदाकार
जो ढली होंगी मुरादाबाद, लुधियाना में
या और कहीं
और पहुंच गई होंगी
रामनगर, कोटद्वार, हल्द्वानी
और चंबा की मण्डियों में
वहीं छुट्टियों में घर जाते हुए
फौजियों मे खरीदा होगा उन्हें
टंकित कराए होंगे, अपना पद
रेजिमेण्टल नम्बर, वल्दियत, गांव
और पट्टी के नाम
अर्पित करने के लिए कुल देवता पैथल जी को
सिपाही से लांस नायक
लांस नायक से नायक
नायक से हवलदार
हवलदार से नायब सूबेदार
या और तरक्की पाने
या कोई शौर्य पदक पाने की खुशी में
पूंछ उठाए बछड़ों की तरह
पीठ पर बस्ता लादे
धड़धड़ाते हुए ढलान पर
चले गए हैं बच्चे
बच्चे को गोद में लिए
थका मांदा मैं भी पहुंच गया हूं
पहाड़ की चोटी पर
मंदिर के परिसर में
तेज हवा से हिलती हुई
घण्टियों की टकराहट में
मुझे सुनाई दे रही है
अफसर द्वारा पदोन्नति या शौर्य के चिह्न लगाए हुए
सैल्यूट मारते फौजी के बूटों की खनक
अपने बचपन को याद करते
मैं भी बजाता हूँ
घण्टियों का सरगम
मेरी बाईं बांह में बैठा हुआ
बच्चाभी मचलता है
बड़े घण्टे को बजाने को
थोड़ी असावधानी हो गई
घण्टे की कोर से टकराते हुए
आघातक पिण्ड ने
दबा दी बच्चे की कोमल अंगुलियां
बच्चा रो रहा है जार-जार
मैं उसे मनाता हूं
चुप हो गया है नन्हा बालक
पर सिसक रहा है रह-रह कर
मुझे उसकी सिसकियों में
सुनाई दे रही है
गाय के गोठ2 के एकान्त में
जंगल में घास काटती
खेत में अकेली गोड़ाई करती
उन हजारों-हजार पहाड़ी वार विडोज3 की सिसकियां
जिनके फौजी पति मारे गए थे
पहले-दूसरे विश्व-युद्धों में
या बाद की अनेकों बड़ी लड़ाइयों में
इस शहादत में केवल राजभक्ति नहीं थी
केवल देशभक्ति नहीं थी
इसमें शामिल थी
इन पिछड़े पहाड़ों की पेट की आग भी, भुला!4
- चीड़ के सूखे सींकिया पत्ते
- गौशाला
- युद्ध के कारण वैधव्य भोगती महिलाएं
- अनुज के लिए प्यार भरा सम्बोधन