सम्भवतः इस बार संसद के शीतकालीन सत्र में ‘मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन आॅफ राइट्स आॅन मैरिज) बिल’ पारित होकर जल्दी ही कानून का रूप ले ले। इस कानून के लागू होने के बाद सरसरी तौर पर तीन बार तलाक-तलाक कह कर किसी मुस्लिम महिला को उसके पति द्वारा छोड़ दिया जाना कानूनन दंडनीय अपराध हो जायेगा।
यदि यह कानून लागू हो गया तो यह लगभग तीस साल के बाद राजनीति के 360 डिग्री घूमने जैसा होगा। आज बहुत से लोगों की स्मृति में वह नहीं होगा। पर घटनाक्रम इस तरह का रहा कि इसी तरीके से तलाकशुदा एक मुस्लिम महिला शाहबानो के मामले में मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय खंडपीठ ने उसके पति को हर्जाना देने का आदेश दिया तो कट्टरपंथी मुसलमान भड़क उठे।
तब अपनी ही पार्टी के आरिफ मोहम्मद खान जैसे प्रगतिशील मुसलमान नेताओं के प्रबल प्रतिरोध को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में अपने अपार बहुमत की मदद से 1986 में एक कानून बना कर अदालत के आदेश को निष्प्रभावी कर दिया।
यह तथाकथित मुस्लिम तुष्टीकरण का सबसे बड़ा उदाहरण था, जिसे लेकर हिन्दुत्ववादी ताकतों ने तूफान खड़ा कर दिया। तब धार्मिक संतुलन साधने के लिये प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उ.प्र. की वीर बहादुर सिंह सरकार से कह कर बाबरी मस्जिद पर लगभग चालीस साल से लगा ताला खुलवा दिया और कुछ वर्षों के बाद विश्व हिन्दू परिषद् को उस स्थान पर प्रतीकात्मक शिलान्यास करने की अनुमति भी दे दी। उसके बाद जो कुछ घटा, वह इतिहास में शर्मनाक तरीके से दर्ज है।
भगवा ताकतों ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा और आज वे अपने चरमोत्कर्ष पर हैं। तीस साल पहले की गई एक बड़ी गलती इस बार शायद ठीक तो हो जायेगी, किन्तु इसके लिये देश को किस धर्मान्धता, जातीय विद्वेष और विवेकशून्यता से होकर गुजरना पड़ा है, उसका मूल्यांकन सुदूर भविष्य में ही संभव हो पायेगा।