ज़हूर आलम
फोटो : विनीता यशस्वी
युगमंच होली महोत्सव : एव सार्थक पहल तमाम मंचो से पहाड़ के गीत-संगीत और लोक संस्कृति को बचाने के लिए बड़े-बड़े भाषण दिये जाते हैं। पर हमारी कलाओं को बचाने और कलाकारा का संरक्षण देने के लिए वास्तव में क्या कुछ ठोस हो रहा है यह बताने की जरूरत नहीं है। पहाड़ की अनूठी होली के संरक्षण और होली गायन-नर्तन की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाने और इस थाति को नई पीढ़ी को सौंपने व इस ओर रूझान पैदा करने के लिए नैनीताल की चर्चित संस्था युगमंच ने ‘एक प्रयोग’ के रूप में जो एक ईमानदार प्रयास किया, उसकी अनुगूँज आज चारों ओर सुनाई दे रही है और इस पहल से पहाड़ में होली को फिर से संजीवनी मिली है और अपने पूर्व स्वरूप में लौटने की ओर अग्रसर है। पूर्व की स्थिति पर राजीव लोचन साह जी ने होलियों पर गिरदा द्वारा संकलित-संपादित पुस्तक ‘रंग दारि दियो हो अलबेलिन में’ के प्रकाशकीय में गहरी चिन्ता के साथ कुछ यूं लिखा है :- ”सन 1977 तक नैनीताल में होली की परम्परा काफी क्षीण हो चुकी थी। होली बैठकों इक्का-दुक्का घरों तक सीमित रह गई थीं।…….. यहाँ तक शारदा संघ जो नैनीताल में संगीत का बड़ा केन्द्र है, थक गया था। छलड़ी के दिन होर्मोनियम गले में टांगे बाजार में जनता को होली की आशीष देने वाले बुजुर्ग अब घर से बाहर नहीं निकलते थे।’’
होली महोत्सव की आवश्यकता : ढाई दशक पूर्व जब युगमंच ने होली महोत्सव की परिकल्पना की तो उस समय स्थिति बहुत ही बदतर हो चुकी थी। तमाम बाहरी व भौतिक दबाव, पलायन, नशे व हुड़दंग की प्रवृति का बढ़ना और धीरे-धीरे अपनी जड़ों व संस्कृति से दुराव इसके कुछ कारण थे। गीत-संगीत से शराबोर मस्ती वाली पहाड़ी होली कहीं बिला गई थी। डीजे का शोर, कीचड़ उछालना, गालियां देना, मुंह काला करना, कपड़े फाड़ना और साल भर के फस्ट्रेशन होली में निकालने की कलुषित प्रवृति बढ़ती जा रही थी। लड़कियों और महिलाओं ने तो हुड़दंग के कारण निकलना ही कम कर दिया था। पहले नैनीताल में होलियों में खूब टूरिस्ट आते थे और निर्भय होकर घूमते थे। पर यह स्थिति भी बदल गई थी। यानी हमारी महान और शशक्त सांस्कृति धरोहर होली का स्वरूप ही बदल गया था।
इन असांस्कृतिक गतिविधियों और चन्द बबाली लोगों की वजह से अधिकांश शान्तिप्रिय जन और होली के रसिया, सभी दु:खी थे। लेकिन केवल दु:खी होने भर से तो काम चलने वाला नहीं था। हालांकि शारदा संघ, राम सेवक सभा, नैनीताल समाचार या व्यक्तिगत रूप से कुछ छुट-पुट बैठ होली के आयोजन हो रहे थे। भारत सरकार के गीत और नाटक प्रभाग के नैनीताल केन्द्र ने भी कुछ आयोजन किये। अन्ततः उपरोक्त सभी स्थितियों को मद्देनजर रखते हुए नैनीताल में युगमंच संस्था ने वैचारिक रूप से परिपक्व समझ रखने वाले लोगों के साथ बहुत सोच विचार के बाद 1996 में ठोस पहल कदमी ली। तय पाया कि युगमंच परम्परागत बैठ होली का एक बड़ा आयोजन करेगा जिसमें तमाम व्यक्तियों, संस्थाओं, होलीयारों ओर होली रसिकों को बड़े पैमाने पर जोड़ा जाएगा। इससे पूर्व युगमंच मुख्यतः नाटक व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए ही जाना जाता था योजना के अनुसार बैठ होली का एक बड़ा आयोजन नैनीताल नगर पालिका भवन में आयोजित किया, गया और इसे नाम दिया गया ”होली महोत्सव’’। यह आयोजन बेहद सफल रहा और सुधीजनों व होल्यारों की बहुत अच्छी भागीदारी रही। बधाइयाँ भी खूब मिलीं।
अगला कदमः होली महोत्सव के इस प्रथम सफल आयोजन से युगमंच टीम बहुत उत्साहित थी और अगले वर्ष की योजना की परिकल्पना बनने लगी। अगले वर्ष होली आने से पहले तमाम सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों सुधी जनों की वृहद मीटिंग बुलाई गयी। सबके सामने प्रयोग रूप में एक पूर्ण होली महोत्सव का खाका विचार विमर्श के लिए प्रस्तुत किया गया जिसमें बैठी होली, खड़ी होली, महिला होली, होल्यारों का (होली गायक/नर्तक) सम्मान समारोह, कवि सम्मेलन आदि कार्यक्रम होने प्रस्तावित थे। इस महत्वपूर्ण बैठक के भागीदारों में सर्व श्री डा0 विजय कृष्ण, गिरदा, राजीव लोचन साह, बटरोही जी, गिरधारी लाल साह, गंगा प्रसाद साह, विश्वम्भर नाथ सखा, शेखर पाठक, के0के0 साह, मोहन चन्द्र जोशी, प्रमोद साह, धर्मवीर परमार, जसी राम आर्य, राजेन्द्र लाल साह, नवीन चन्द्र साह आदि तमाम विद्वान और युगमंच परिवार के सदस्य व होल्यार और होली रसिक मौजूद थे।
गहन मंथन के बाद तय पाया कि युगमंच होली महोत्सव का यह प्रयोग 18, 19, 20 मार्च तीन दिवसीय आयोजन के रूप में होगा। इसमें उत्तराखण्ड तथा बाहर के अधिक से अधिक होली कलाकारों, गायकों को सम्मिलित करने का प्रयास होगा। इसमें पहाड़ की होली के सभी स्वरूप गायन, नर्तन, बैठी व खड़ी, महिला होली, स्वांग और होली जुलूस सहित तमाम आयोजन होंगे। यह हमारी परम्परागत कुमाऊंनी होली का एक पूरा पैकेज होगा और इसके माध्यम से लोगों को बताया जाएगा कि हमारे पहाड़ की थाति समृद्धशाली और ‘असली होली’ का स्वरूप क्या और कैसा है। जिसे भौतिकवादी अप संस्कृतिक हमले और चकाचौंध के कारण हम भूलते जा रहे हैं।
इस दूसरे बड़े और अनोखा होली महोत्सव ने खूब धूम मचायी। प्रयोग को आशा से अधिक सफलता मिली। नैनीताल के अलावा दूर-दूर तक चर्चा थी। होली के ऐसे पैकेज की इस से पूर्व कभी किसी ने परिकल्पना नहीं की थी। पूरा नगर होली के रंगों-गीत-संगीत से शराबोर था। जनता ने भी भरपूर स्वागत किया। लोगों को एक साथ बड़े पैमाने पर सलीके से सजाए गये होली के तमाम अंगो और रंगो से रूबरू होने का मौका मिल रहा था। जनता और होल्यार दोनों खुश थे। सबसे मजे की बात होली के रंगो से भीगे और घूम के इस माहौल में कहीं कोई हुडदंग या बदतमीजी नहीं हुई। बहुत उत्साह भरी शांति से सबकुछ निपट गया था। एक और मजे की बात कि छलड़ी (दुलहंडी) के दिन प्रशासन के अधिकारियों द्वारा युगमंच परिवार को मिठाई के साथ बधाई प्रेषित की गई इस टिप्पणी के साथ कि ”युगमंच ने कमाल कर दिया और प्रशासन ने भी इस बार बड़ी शांति से होली मनाई’’।
इस अनूठे होली महोत्सव को मीडिया ने भी हाथों हाथ लिया इसकी कलात्मक सुन्दरता देखकर सभी प्रभावित थे। कई अखबारों ने एक पूरा पेज तक इस आयोजन को दिया। नेशनल इलेकट्रानिक मीडिया यानी दूरदर्शन, एन0डी0टीवी और जी टीवी ने भी भरपूर कवरेज दी, फिर सालदर साल इस रंगारग कार्यक्रम को कवर करने के लिए चैनल्स का जमघट लगने लगा। बी0बी0सी0 और जर्मन रेडियो दाइर्च वेले ने भी इसका संज्ञान लिया और अपने संवादाता भेजे। कुमाऊंनी होली की रंग बिरंगी इस भव्यता को देखते हुए एनडीटीवी और जी0टीवी ने तो इस पर अपने चैनल पर प्रोग्राम भी किया, जिससे एक क्षेत्राविशेष तक सिमटी अनजानी सी इस अद्भुत और समृद्धशाली होली के तमाम आयामों को दुनिया जमाने ने पहचाना। इस से पहले यह विधा केवल एक सीमित दायरे तक ही सिमटी थी। होली महोत्सव की सफलता को देखते हुए उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग ने अपने वार्षिक कलेन्डर में भी इस इवेन्ट को स्थान दिया।
यहाँ पर हम होली की राग-रागनियों और इतिहास भूगोल पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उस पर काफी कुछ कहा जा चुका है। तमाम विद्वानों गिरदा, डॉ0 प्रयाग जोशी, डॉ0 चन्द्रशेखर तिवारी, शिवचरण पाण्डे, नलिन धोलकिया, सखा जी आदि ने विस्तार से अपने लेखों में इस पर चर्चा की है। नैनीताल समाचार तो प्रति वर्ष नियमित रूप से होली विशेषांक ही निकालता है। यहाँ हम इस पर चिन्तन कर रहे हैं कि किसी विलुप्त हो रही किन्तु बहुत ही समृद्ध और महत्वपूर्ण कला को एक सोच और योजना के तहत गम्भीर प्रसास करके कैसे संजीवनी दी जा सकती है।
इन पचीस वर्षों में होली महोत्सव के जरियो युगमंच ने ऐसे क्या काम किये या पहलकदमियां लीं कि पहाड़ी होली को पुर्नस्थापित करने में मदद मिली और काया पलट हो गई। असल में योजना के तहत हमने उसी प्रकार कुछ प्रयोग किये जिस प्रकार कोई वैज्ञानिक किसी विशाल और बेहद सुन्दर वृक्ष को बचाने के लिए करता है, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और जिसकी फलों भरी शाखें हवा के साथ झूमती हुई खुशबू और स्वर लहरियां बिखेरती हैं। किन्तु उसके तने को दीमक लग गई है। हमने बस एक प्रयोग के रूप में होली रूपी इस सुन्दर और खुशबूदार वृक्ष का ट्रीटमेंट करने का इमानदार प्रयास भर किया।
हम सभी जानते है कि कुमाऊँ की होली रूपी इस गुलदस्ते में कई रंगो के खुशबूदार फूल अपनी मनमोहक छटा बिखेरते हैं। अब हम इस मुद्दे यानी होली के उन फूलों पर अलग-अलग चर्चा कर लेते हैं कि युगमंच ने एक योजना के तहत क्या-क्या प्रयोग किये।
नैनीताल से बाहर सम्पर्क : जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि नैनीताल नगर में तमाम सम्बन्धित लोगों से होली प्रोजेक्ट पर पूरी बातचीत हो चुकी थी यह भी हम जानते है कि होली के रंग पहाड़ी समाज में देश में दूर-दूर तक बिखरे हुए है इस प्रोजेक्ट से जोड़ने और इस पर चिन्तन के लिए युगमंच के कुछ सदस्यों ने जिनमे डॉ0 विजय कृष्ण, विशम्भर नाथ साह, गिरदा व जहूर आलम सम्मिलित थे। कई सम्बन्धित लोगों और संस्थाओं से योजना पर फोन पर लम्बी वार्ता हुई। जहाँ तक सम्भव हुआ दूर पास के नगरों तक यात्राएं की और लोगों होल्यारों को होली महोत्सव में शिरकत और सहयोग के लिए आमंत्रित किया जिसके बहुत अच्छे नतीजे सामने आए और बाहर से भी उत्साह जनक भागीदारी हुई।
खड़ी होली : खड़ी होली कुमाऊंनी होली का मुख्य अंग है जो लोक के ज्यादा करीब है और मुख्यतः ग्रामीण अंचल में गोल घेरे में ढोल और मंजीर की ताल पर और झूम झूम कर नृत्य करते हुए सामूहिक रूप से गायी जाती है। नगरों में इसका प्रचलन बहुत कम है। नैनीताल नगर बाजार वालों ने तो यह होली एक प्रकार से नहीं ही देखी थी। पहले होली महोत्सव में हमारे मित्र और युगमंच से जुड़े रहे अध्यापक होल्यार संतोष लाल साह पिथौरागढ़ से खड़ी होली के कलाकारों की टीम बस भर कर नैनीताल पहुंचे। नैनीताल भर में इस टीम की खड़ी होली की कला का जादू सिर चढ़कर बोला। नैनीताल वाले पहली बार खड़ी होली की भव्यता और रंगत देखकर अचंभित और उत्साहित थे। तब से आज तक खड़ी होली, युगमंच होली महोत्सव का मुख्य आकर्षण बन गया है। प्रतिवर्ष एक से चार खड़ी होली दलों ने सुदूर अंचलों से नैनीताल आकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई है।
युगमंच का होली महोत्सव शुरू होने से पहले खड़ी होली के होल्यार कलाकार अपने घर गांव तक ही सीमित रहते थे। लेकिन अब नैनीताल आने के कारण और प्रचार-प्रसार के कारण इन्हें एक नई पहचान और सम्मान मिला है, और दिल्ली देहरादून तक इन्हें सरकारी, गैर सरकारी आयोजनों में बुलाया जाने लगा है। अब खड़ी होली के ये कलाकार पूरी छाज-बाज, प्रेक्टिस और सम्मान के साथ इन महोत्सव में सम्मिलित होते हैं।
युगमंच होली महोत्सव के माध्यम से पिथौरागढ़, चम्पावत पाटी, प्रचार, लोहाघाट, थुवामौनी, कानीकोट, गेवाड़ पट्टी, सतराली, गंगोलीहाट, देवीधूरा, अल्मोड़ा, खेतीखान, लड़़ीधूरा बालाकोट, थारू होली खटीमा के साथ ही गंगोलीहाट के महिला ख़ड़ी होली दलों ने अपनी एक पहचान बनाई है।
खड़ी होली क्योंकि मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित रही है। होली महोत्सव के बहाने युगमंच ने प्रथम प्यास किया कि इस अदभुत होली विधा को नैनीताल शहर में भी प्रारम्भ किया जाए इसकी शुरूआत हमने स्कूलों से की। ताकि किशोर और युवा पीढ़ी तक हमारी यह समृद्ध थाति पहुंचे। इसकी जिम्मेदारी गिरादा ने ली और डॉ0 बीसी0 शर्मा को साथ ले स्कूलों के अध्यापकों की सहायता से खड़ी होली की कार्यशालाए लगानी प्रारम्भ की। जिसके सुखद परिणाम सामने आए और विद्यार्थियों की खड़ी होली की टीमें भी महोत्सव में भागीदारी करने लगीं और महोत्सव का मकसद भी इस प्रकार पूरा होने लगा।
बैठी होली : जिस प्रकार खड़ी होली कुमाऊँ के लोक में समाई हुई है और मुख्यतः ग्रामीण अंचलो में खुले में एक गोल घेरे में बड़ी संख्या में सामूहिक रूप से प्रस्तुत की जाती है, वहीं बैठ होली मुख्यतः नगरों कस्बों में बैठकर बन्द कमरों में इसे गाया जाता है। शास्त्रीय राग रागिनियों पर आधारित (शुद्ध राग नहीं) इस होली को नागर होली भी कहा जाता है। इसे एक मुख्य होली गायक द्वारा गाया जाता है और गम्मज में मौजूद लोग इसके बीच -बीच में भाग या आवाज लगाते हैं। इसी लिए इसे सामूहिक एकल गायन भी कहा गया है।
अन्य नजरों की भांति नैनीताल में भी बैठ होली गायन की परम्परा बहुत मजबूत रही है। होली के एक से एक घुरंधर गवैये यहाँ मौजूद थे। अल्मोड़ा आदि से भी वहाँ के दिग्गज होल्यारों का आदान-प्रदान होता था। कई संस्थान और गाने सुन्ने के शौकीनों के घरों पर रात-रात भर की महफिलें जमती थीं। धीरे-धीरे होली के शौकीनों में कमी आने लगी बुजुर्ग होल्यार अपनी गति को प्राप्त हो रहे थे। नई पीढ़ी का अपनी इस गौरवशाली गायन परम्परा से जुडा़व नहीं हो पा रहा था। इस ह्रास और विचलन के कई सामाजिक और भौतिक कारण थे। अपनी परम्परा से अनुराग का कम होना, होली सीखने सिखाने का अभाव, कई प्रकार के अन्य आकर्षण और बढ़ रहे नशे के जहर ने भी होली को बहुत नुकसान पहुंचाया।
युगमंच ने होली होली महोत्सव शुरू करने से पूर्व ही इन सभी बातों पर गहनता से विचार किया था बैठ होली परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए हमने जो प्रयोग किया उनमें से मुख्य बिन्दुओं पर यहाँ विचार कर लेते है।
होली महोत्सव में हमने पास दूर के तमाम होल्यारों को आग्रह पूर्वक और सम्मान के साथ आमंत्रित किया और इसके मकसद पर भी लम्बी बातचीत की। यह तजवीज सभी को पसंद आयी और पहले ही वर्ष बैठ होली में तमाम स्थानीय कलाकारों के साथ ही बाहर से होली गायक बड़ी संख्या में एक स्थान, एक मंच पर एकत्र हुए। तमाम होल्यारों ने बड़े ही उत्साह से भागीदारी की और होली महोत्सव की शामें और रातें होली के रंगो में डूबी रहीं।
होली कार्यशालाः तमाम कलाकारों को एक मंच पर लाने में हम सफल हो गये थे लेकिन अब हमारी सबसे बड़ी चिन्ता यह थी कि अपनी जड़ों से कट चुकी नई और युवा पीढ़ी को इतनी समृद्ध और अनूठा होली की। इस गौरवशाली परम्परा से कैसे जोड़ा जाए? यहाँ बाकायदा होली सिखाने की कोई परम्परा नहीं थी जिज्ञासु एकलव्य की तरह होली के रसिया बुजुर्गों से बैठकों में लगातार होली सुनसुनकर या भाग (आवाज) लगाते-लगाते होली सीख लिया करते थे। पर अब किसी के पास ऐसी दीवानगी कहाँ? बुजुर्ग होल्यारों से हमने होली सिखाने पर बात की हमारे आग्रह पर अग्रज होली गायक गिरधारी लाल साह जी के नेतृत्व में राजा साह जी आदि ने नवयुवकों और किशोरो को होली सिखाने का बीड़ा उठाया। नई पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए बाकायदा प्रमाण पत्र और पारितोषिक की घोषणा की गई। इसके बहुत सुखद परिणाम सामने आए। बोए गये बीज अंकुरित होकर खिलने लगे। होली कार्यशाली का आयोजन तब से होली महोत्सव का एक जरूरी अंग बन गया है। नैनीताल के नई पीढ़ी के जो लोग होली गा रहे हैं वे ऐसी ही कार्यशालाओं की देन हैं। युगमंच कार्यशाला की सफलता को देखकर अन्य स्थानों पर भी होली सिखाने की ऐसी ही कार्यशाला लगने लगी है और हमारी होली परम्परा आगे बढ़ रही है, और तो और लड़कियां भी होली सीखने आगे आ रही हैं जो बेहद सुखद है। कार्यशालांए लगाकर होली सिखाने की नई परम्परा शुरू करना होली महोत्सव की एक और बड़ी सफलता रही है।
महिला होली : पहाड़ी होली का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग महिला होली भी है, जिसमें स्वांग भी शामिल है। पच्चीस वर्ष पूर्व तक महिलाएं होली गायन के लिए अपने घर पटांगण तक ही सीमित रहती थीं। हमने होली महोत्सव की पूरी रूपरेखा पर महिलाओं और कई महिला संगठनो से बात की। काफी चर्चा के बाद महिलाएं घर की देहली लांघ कर होली महोत्सव के खुले मंच पर गाने और स्वांग करने के लिए तैयार हो गईं। महिलाएं न केवल तैयार हुई बल्कि खुले मंच पर उन्होंने ऐसी धूम मचाई कि लोग फटी आंखों देखते ही रह गये। खुले मंच पर महिला होल्यारों का यह सुन्दर रूप लोगों ने पहली बार देखा था। रोपे गये इस बीज की पुष्पित बेल बहुत ऊँचाई तक पहुँच चारों ओर अपनी सुगन्ध फैला रही है। सारे प्रदेश में आज महिला होली की धूम मची हुई है। महिला होली के बीसियों संगठन बन गये हैं। जगह-जगह नगर कस्बों में महिला होली की प्रतियोगिताएं आयोजित हो रही है। कभी संकोच करने व देहरी न लांधने वाली महिलाएं बेधड़क अब हर मंच पर स्वांग और होली की शानदार प्रस्तुति दे रही हैं। मैं निसंकोच कह सकता हूँ की अब होली मंच प्रस्तुति के मामले में महिलाओं ने पुरूषों को पीछे छोड़ दिया है, यह कोई मामूली बात नहीं है। यह प्रयोग भी सफल रहा।
सम्मान समारोह : होली महोत्सव से पूर्व पहाड़ में होल्यारों को वह सम्मान नहीं मिल सका था जिसके वे हकदार थे। अगर वे अन्य गायकी में निपुण नहीं होते तो केवल होली गायक को शौकिया या चन्द रोज का मेहमान मानकर दरकिनार कर दिया जाता था। कहा जाता था कि ”पूस के पहले इतवार से ये जागेंगे और होली छलड़ी खेलकर ये फिर सो जाएंगे’’। संगीत परिवार और समाज में होल्यारों की गायक के रूप में कोई मान्यता नहीं मिलती थी। इसी कारण होली का ह्रास हो रहा था, क्योंकि कलाकार इज्जत का भूखा होता है। उसे मान्यता और सम्मान मिलना बहुत जरूरी है। इसी को ध्यान में रखते हुए युगमंच ने होली महोत्सव के दौरान होली के हर अंग यानी बैठी, खड़ी और महिला होली कलाकारों के सम्मान के लिए बकायादा एक सम्मान समारोह आयोजित करना प्रारम्भ किया, जिसमें प्रति वर्ष कुछ चुनिन्दा बजुर्ग होल्यारों को बहुत ही गरिमापूर्ण ढंग से खुले मंच पर जनता के बीच सम्मानित किया जाने लगा। यह होल्यारों के सार्वजनिक सम्मान की एक बिल्कुल नई और अनूठी परम्परा प्रारम्भ की गई और होल्यारों को मान्यता दिलवाने में गहन प्रयास किये गये। कई बड़े कलचरल फेस्टीवल में होली गायकों को भेजने में भी सफलता पाई। जिससे हमारी इस कला और कलाकारों की एक व्यापक पहचान बन सकी। ज्ञातव्य है कि गिरदा और राजीव दा के नेतृत्व मे नैनीताल समाचार की बैठ होली के अवसर पर, बैठ होली के बुजुर्ग होल्यारों को पूर्व से ही सम्मानित करने की महत्वपूर्ण परम्परा प्रारंम्भ कर दी थी। युगमंच ने होली के सभी अंगो के बुजुर्ग कलाकरों यानी बैठ, खड़ी व महिला होली के कलाकारों को समानित करने की नई परम्परा प्रारम्भ की।
नशे से दूरी : यह सर्व विदित है कि हमारी संस्कृति विशेषकर होली को बिगाड़ने में प्रचलित नशे के जहर की बड़ी भूमिका रही है। नशे ने बड़ी बड़ी होली महफिलों को बिगाड़ा, भले लोग होली से दूर होने लगे। नशे ने होली का बहुत नुकसान किया है। युगमंच ने पूरी दृढ़़ता के साथ इस बुराई का सामना किया। कई लोग नाराज भी हुए लेकिन इसकी चिन्ता नहीं की। इससे सही लोग जुड़ने लगे और होली को इसका फायदा हुआ।
प्रतिस्पर्धा : होली महोत्सव का एक और फायदा ये हुआ कि खड़ी होली और महिला होली की टीमों में एक दूसरे से और बेहतर करने की एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न हुई इससे होली को और बढ़ाने में भरपूर सहायता मिली। नई पीढ़ी और छात्रों में रूचि पैदा करने के लिए हमने प्रतियोगिताएं आयोजित और महिलाओं की ओर परितोषिक व प्रमाण पत्र आदि की भी व्यवस्था की गई जो होली के आकर्षण का मुख्य केन्द्र बन गई, इससे होली का विस्तार भी हुआ इसी को देखते हुए अब तमाम जगह होली प्रतियोगिताएं होने लगी हैं।
संस्थागत सहयोग : होली के उत्थान के लिए हमारे इस मिशन में जिन स्थानीय और बाहरी संस्थाओं ने हमें सहयोग दिया यहाँ उनका नाम लेना हम अपना कर्त्तव्य समझते हैं। इनमें नैनीताल समाचार, नयनादेवी अमर उदय ट्रस्ट, शारदा संघ, राम सेवक सभा, हुक्का क्लब अल्मोड़ा और पर्यटन व संस्कृति विभाग, गीत और नाटक प्रभाग आदि हैं।
उपर्युक्त सभी पहल कदमियों के अलावा होली को और आकर्षक व व्यापक बनाने के लिए युगमंच ने लगातार प्रयास किये हैं। होली महोत्सव के अन्तर्गत सेमिनार भी आयोजित किये गए। जिसमें विद्वानों की सिफारिश को लागू करने का प्रयास या संस्तुतियों को सरकारों तक भेजा गया। सिफारिशों के कारण ही बैठ होली की इस उपशास्त्रीय विधा को कुमाऊं विश्वविद्यालय के संगीत करिकुलम में सम्मलित करने के प्रयास हुए।
युगमंच ने खड़ी होली गीतों को पिथौरागढ़ जाकर रिकार्ड किया और फिर उसके कैसेट भी जारी किये। हमने केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के लिए बैठ होली को क्रमानुसार रागों के क्रम में विभिन्न स्थानों पर जाकर होली गायकों को डाक्यूमेंट किया और यह महत्वपूर्ण 4 घंटे की डाक्यूमेंटरी संगीत नाटक अकादमी की आर्काइव के लिए निर्मित करके जमा की है।
होली महोत्सव के रूप में युगमंच ने एक बिल्कुल नया कन्सेन्ट दिया जो बेहद सफल रहा है। पच्चीस साल से इस महत्वपूर्ण आयोजन को हम लगातार कर रहे है। यह सुखद है कि पूरे पहाड़ और सारे प्रदेश में इसका विस्तार हुआ है। युगमंच ने तो बस एक कैटेलिस्ट की तरह काम किया है। हमें लगता है कि इसी प्रकार हमारी अन्य लोक विघाओं को आगे बढ़ाने या पुनर्जीवित करने के लिए ईमानदार प्रयास किये जाने चाहिंए, तभी हमारी खूबसूरत थाति बच पाएगी। आगे और कठिन समय है। इस से पार पाने की हम सभी की जिम्मेदारी है।