विवेकानंद माथने
सर्वोदय याने सबका भला। यह भलाई केवल अहिंसा के रास्ते ही प्राप्त की जा सकती है, ऐसी महात्मा गांधी की आस्था थी। सार्वजनिक जीवन में अहिंसा के प्रयोग के लिये महात्मा गांधी ने समाज को प्रेरित किया। आजादी के आंदोलन में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक परिवर्तन के लिये सत्य और अहिंसा के मार्ग पर अनेक प्रयोग किये। समाज को अहिंसा का रास्ता अपनाने के लिये प्रशिक्षित किया। उनकी आस्था थी कि शुद्ध साध्य के लिये साधन भी शुद्ध होना चाहिये। अहिंसा का सार्वजनिक प्रयोग महात्मा गांधी की दुनिया को देन है।
‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’, कहनेवाले महात्मा गांधी कभी अपनी महत्वाकांशा की पूर्ति करने के लिये इंग्लैंड में पढाई के लिये गये थे और जीवनभर अपनी महत्वाकांक्षा को शुन्य बनाने के लिये साधना करते रहे। सत्य अहिंसा के कसौटी पर जो टिका उसे आत्मसात करते हुये काम करते रहे। उन्होंने भारत के समक्ष आत्मत्यागका पुराना आदर्श रखनेका साहस किया है। गांधी ने अहिंसात्मक आंदोलन के लिये सत्याग्रह, सविनय कानून भंग, उपवास जैसे आत्मशुद्धि के नये हथियार दिये।
सर्वोदय समाज निर्माण के लिये एकतरफ रचनात्मक कार्य और दूसरी तरफ अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिये कौमी एकता और सर्वधर्मसमभाव के लिये वह जीवन भर प्रयासरत रहे। गांधी की अहिंसक समाज रचना में सभी को अन्न, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य की बुनियादी जरुरतों पूरा करना तो था ही, उसीके साथ मानव विकास के लिये ऐसे रोजगार कि रचना की कल्पना थी कि हैंड, हार्ट और हेड उन्नत्ति के लिये अवसर प्राप्त हो सके।
भारत के लोगों की गरीबी के लिये वह चिंतित थे। उन्होंने आजीवन अंतिम आदमी के सन्मान पूर्वक जीवन के लिये प्रयास किये। भारतीयों की गरीबी से तादात्म पाने के लिये उन्होंने स्वैच्छिक गरीबी का स्वीकार किया। अमीर घर में पैदा हुये मोहनदास ने अपने वस्त्र त्यागकर एक पंचा पहनना स्वीकार किया। महात्मा गांधी शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे। पूंजीवादी व्यवस्था को जब साम्यवाद, समाजवाद चुनौति दे रहे थे, तब गांधी ने अहिंसक समाज रचना के लिये खुद को सबसे बडा साम्यवादी, समाजवादी घोषित करके उससे भिन्न स्व से शुरुवात करनेवाला सर्वोदय दर्शन दुनियां के सामने रखा।
आज जब पूरे दुनियां सर्वत्र हिंसा व्याप्त है, असत्य और हिंसा पर विश्वास करनेवाली विचारधारा सत्तारुढ है। तब गांधी विचारों की जरुरत और भी बढ जाती है। आज दुनियां के विचारवान लोगोंको गांधी के अहिंसा विचारों की सबसे ज्यादा जरुरत महसूस हो रही है।
महात्मा गांधी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रुपमें मनाया जाता है। यह तभी सार्थक होगा जब हम सर्वोदय के लिये और अन्याय के विरुद्ध निर्भयता से संघर्ष करेंगे। गांधी के जीवन को पूर्ण बनानेवाली कस्तुरबा को विनम्र अभिवादन। मानवजाती के इतिहास के इस अद्भूत महामानव को विनम्र अभिवादन।
गांधी उवाच – अहिंसा
अहिंसा का धर्म केवल ऋषियों और संतो के लिये नही है। यह सामान्य लोगों के लिये भी है। अहिंसा उसी प्रकार से मानवों का नियम है जिस प्रकारसे हिंसा पशुओं का नियम है। मानव की गरिमा एक उच्चतम नियम आत्मा के बल का नियम के पालन की अपेक्षा करती है। भूतकालमें युगों तक भारत को यानी भारत की आम जनता को जो तालीम मिलती रही है, वह हिंसा के खिलाफ है।
मै अहिंसा को केवल व्यक्तिगत सद्गुण नही मानता। यह एक सामाजिक सद्गुण भी है जिसका विकास अन्य सद्गुणों की तरह किया जाना चाहिये।
मै केवल एकही मार्ग जानता हूं – अहिंसा का मार्ग, हिंसा का मार्ग मेरी प्रकृति के विरुद्ध है। मै हिंसा का पाठ पढानेवाली शक्ति को बढाना नही चाहता। मै अहिंसा और उसकी संभावनाओं को लगातार पिछले पचास से भी अधिक वर्षों से वैज्ञानिक परिशुद्धता के साथ अमल में ला रहा हूं। मैने इसे घरेलू, संस्थानिक, आर्थिक और राजनीतिक, जीवन के हर क्षेत्र में लागू किया है।
अहिंसा पर आधारित समाज गांवों में बसे ऐसे व्यक्ति समूह के रुपमें ही हो सकता है जिनमें स्वैच्छिक सहयोग, गरिमामय और शांतिपूर्ण सहास्तित्व की शर्त हो।
‘पाप से घृणा करो, पापी से नही, एक ऐसा नीतिवचन है’ जिसे समझना तो काफी आसान है, पर जिसपर आचरण शायद ही किया जाता है। इसीलिये दुनियां में घृणा का विष फैलता जा रहा है। अहिंसा का अर्थ अन्यायी की इच्छाके आगे दबकर घुटने टेकना नही है; उसका अर्थ यह है कि अत्याचारी की इच्छा के खिलाफ अपनी आत्मा की सारी शक्ति लगा दी जाये। अहिंसा का अर्थ बुराई करनेवाले की इच्छा के समक्ष विनीत बनकर आत्मसमर्पण कर देना नही है, बल्कि उसके विरुद्ध अपना पूरा आत्मबल लगा देना है।
मानव जाति के इस नियम के अनुसार आचरण करते हुये, अकेला इंसान भी अपने आत्मसम्मान, अपने धर्म या अपनी आत्मा की रक्षा के लिये किसी भी अन्यायी साम्राज्य की पूरी शक्ति का मुकाबला कर सकता है और उस साम्राज्य के पतन अथवा पुनरुद्धार की नींव रख सकता है।