वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
सच कटु है पर सच्चाई यही है कि पिछले पांच-छः माह में देश दुनिया की मीडिया में उत्तराखंड की चर्चा उसके कुप्रशासन की छवि देती निन्दनीय खबरों के लिये हुई है। राज्य के अंदर कुछ शगूफे छोड दिये जायें तो बांकि ध्यान भटका कर इन निंदनीय खबरों को नेपथ्य में डलवा सकते हो परन्तु बाहर ऐसा करना मुश्किल होगा। हालांकि राज्य के भीतर भी इनसे उपजा आक्रोश गुबार लाता ही है। जन प्रतिनिधियों को घटनास्थलों पर पहुंचने में जनविरोध झोलना पड़ता है। हर संवेदनशील व प्रजातांत्रिक मूल्यों को सम्मान देने वाले के लिये विषाद के क्षणों में भी उत्सवी आयोजन घृणाकारी होंगे। आज आकंठ अपराधों की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी है कि स्मैक्स, शराब, काल गर्ल रैकेटों के पकड़े जाने की खबरें उतनी ही आम हो गई हैं जितनी किसी प्रसूता का अस्पताल की देहरी तक पहुंच कर दम तोड़ देना या किसी बच्चे या बुजुर्ग का जंगली जानवर का निवाला बन जाना। हालांकि अपराध राजनीति के कोख से पैदा हो रहे हैं किन्तु प्रयास यही रहते हैं कि आंच राज नेताओं तक न पहुंचे। समस्याओं का समाधान के नहीं बल्कि उनसे ध्यान भटकाने के तरीके ढूंढे जाते हैं। स्थितियों का आंकलन व जनक्षेभ लोक गीतकार गायक नरेन्द्र सिंह नेगी जी के शुरू सितम्बर 2022 में लिखी गई इन पंक्तियों में हो जाता है – हम त प्रजा का प्रजा ही रैगया लोकतंत्र म तुम जनसेवक राजा होई ग्या। लोकतंत्र म जनता सडकियों म भ्रष्टाचारियों से लड़नी छ तुम भ्रष्टाचारियें से साझा होय गया। फल लगी नी तुम काचा खैगी लोकतंत्र मा।
हालिया चार पांच माह की ऐसी खबरों की शुरूआत 18 जुलाई 2022 की हेलेंग क्षेत्र की घसियारी महिलाओं से पुलिसीया दुराचार, उनके अपने ही पारम्परिक गौचर भूमि से लाये गये घास गठ्ठर छीन कर कई किलोमीटर दूर जोशीमठ थाने ले जाने से हुई। विष्णुगाड जलविद्युत्त परियेजना के साथ दिखते प्रशासन ने व साकार ने करीब पांच छः रोज तक चुप्पी साधी हुई थी किन्तु पूरे राज्य में भड़के आक्रोश से घबरा कर 24 जुलाई 2022 को हेलंग कमिश्नर वहां पहुंचे और न्यायिक या प्रशासकीय जांच की बात की।
फिर खबर आयी आर्थिक तंगी से गुजरते परिवार की उन्नीस वर्षीय बहादुर बेटी अंकिता के साथ हुए जघन्य हत्याकांड की। अंकिता अपने पिता को सपोर्ट करने के लिये 28 अगस्त 2022 को ऋषिकेश के वनन्तरा रिसोर्ट में नौकरी शुरू की। रिसोर्ट मालिक पुल्कित आर्या ने 18 सितम्बर को अन्य षड़यंत्रकारियों के साथ मिल कर अंकिता को चीला नहर में फेंक दिया। राज्य सरकार से न्याय की आशा न होने पर अब मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। अंकिता के लापता होने के बाद रिसोर्ट पर तत्काल ही गैरजिम्मेदाराना ढंग से बुलडोजर चलवाया गया और आगजनी की गयी। माना गया कि यह कार्यवाही अधिकांश अपराध सबूतों को मिटाने की सोची समझी रणनीति के तहत की गयी। हत्या आरोपी पुलकित आर्या के हरिद्वार निवासी परिवार को भाजपा ने दो-दो दर्जाधारियों से नवाजा था। 30 अक्टूबर को उसी राजनैतिक रसूक वाले मालिक परिवार के कारखाने में भी आग लगने के समाचार आये। हाईकोर्ट ने रिसोर्ट में बुलडोजर चलाने व आग लगने की घटना को गंभीरता से लिया। 20 अक्टूबर को हाईकोर्ट की एकल पीठ अंकिता हत्याकाण्ड में तब तक की एस आई टी जांच से असंतुष्ट दिखी। उसने रिसोर्ट तुड़वाने के परिपेक्ष केस डायरी व स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी। इस पूरे मामले में जनता उस वी वी आई पी का नाम जानना चाहती है जिसको खुश करने के लिये अंकिता पर दबाव डाला जा रहा था।
इसके बाद कई सौ करोड़ के उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाओं के पेपर घोटाला या पेपर लीक काण्ड सुर्खियों में रहा। स्नातक स्तरीय इस रोजगार परीक्षा घोटाले को उत्तराखंड का व्यापम भी नाम दिया गया। इससे हजारों उत्तराखंड के शिक्षित बेरोजगारों को भारी झटका लगा। फिर तो परत दर परत उत्तराखंड की सालों से हुई लगभग सारी परीक्षाओं में भ्रष्टाचार नजर आया। लाखों रूपयों के लेन-देन से पेपर लीक किये गये या आन्सर शीटें ठीक की गईं या नौकरियां दी गईं। इसमें भी आरोपी लचर पैरवियों के कारण जमानत पा गये। भर्तियां निरस्त हुईं व टलीं। उत्तराखंड का मुख्य आरोपी हाकम सिंह रावत जिसकी एक दल के नेताओं से काफी नजदीकी रही है जरूर अभी जेल में है किन्तु आर एम एस कम्पनी, टैक्नो सल्यूशन प्रिंटिंग प्रेस, लखनऊ का मालिक राजेश चौहान समेत लगभग आधे गिरफ्तार किये गये लोग जमानत पा चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों के नजदीकी अधिकारी कर्मचारी जरूर कैद में हैं किन्तु राजनेता अभी बचे हैं ।
सितम्बर माह में ही विधान सभा सचिवालय में बैकडोर भर्तियों का मामला चर्चा में रहा। दो पूर्व विधान सभा अध्यक्षों पर चर्चित भर्तियों में उनकी स्वीकारोक्तियों के बाद भी उन पर किसी भी तरह की कार्यवाही न करने से ध्यान भटकाने के लिये कर्मचारियों को हटा दिया गयाऔर अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था। परन्तु बैक डोर भर्ती के मामले में फिलहाल नैनीताल उच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुये 27, 28 व 29 सितम्बर की बर्खास्तगी आदेश पर 15 अक्टूबर को अगले आदेश तक रोक लगा दी। विधान सभा सचिवालय को चार सप्ताह जबाब देने का समय दिया गया अगली सुनवाई 19 दिसम्बर है।
इस मामले में ध्यान भटकाने व कुछ करता हुआ दिखने के लिये ही 17 सितम्बर 2022 को अपने विभाग में 74 अधिकारी कर्मचारियों का तबादला कर जब पूर्व विधान सभा अध्यक्ष व वर्तमान शहरी विकास व वित्त मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल अगले दिन कुछ अधिकारियों के साथ जर्मनी रवाना हो गये तो इन तबादलों पर बढ़ती चर्चा व कानाफूसी के बीच मुख्यमंत्री धामी द्वारा तत्काल प्रभावों से सभी तबादले निरस्त कर देने के समाचार ऐसे उछाले गये जिससे लगा कि अब तो विधान सभा भर्तियों व इन तबादलों के बाद मंत्रीयों पर गाज गिरेगी पर यह सब ध्यान भटकाने के लिये ही था। सवाल यह है कि यदि राज्य का विधान इस तरह की अनैतिक भर्तियों व बाद में उन्हें स्थाई करने की भी विधान सभा अध्यक्षों को अनुमति देता रहा है तो उसको बदलने की दिशा में अब तक चुप्पी क्यों है। यह कैसे मान लिया गया कि इन सभी की या पहले की भर्तियों या प्रोन्नतियों को करने में किसी स्तर पर भर्ती करने वालों व करवाने वाले को किसी किस्म का गैर कानूनी लाभ नहीं मिला है। विधान सभा के भीतर भी यह कम क्षोभकारी नहीं था जब 13 अप्रैल 2021 के करीब परिसर में गंदगी के अम्बार में खाली शराब की बोतलें भी पाई गईं।
जिस हरिद्वार जिला पंचायत में अपनी सत्ता बनाने को सितम्बर-अक्टूबर 2022 में भाजपा अपनी उपलब्धि बता रही है वहीं चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा धर्मनगरी से सटे क्षेत्र में शराब बांटना सरकारी निगरानी में चुनावों के दौरान भी जारी रहा। सितम्बर माह में उसी चुनाव में पथरी क्षेत्र में बांटी गई जहरीली शराब से सात लोगों की मौत हुई थी परन्तु जीत की खुशी में राजधर्म अवहेलना में या अमृत महोत्सव काल में भी बापू को भुलाये जाने पर राज्य सरकार को कहीं आत्मग्लानी नहीं हुई। बापू के ग्राम पंचायतों में चुनावों व शराबों को लेकर कुछ मानक थे जो ऐसी घटनाओं से तार-तार होते हैं। उसके पहले भगवानपुर रूड़की टिहरी देहरादून पथरिया पीर में भी गत वर्ष अवैध शराब कांड हुये थे।
उत्तराखंड के पौड़ी जिले में सिमड़ी में 4 अक्टूबर को यात्रियों से भरी बस खांई में गिर गई थी जिसमें भारी संख्या में बरातियों की मृत्यु हुई। यहां भी विधायक को विरोध झेलना पड़ा। मुख्यमंत्री जरूर वहां पहुंचे पर उससे पहाड़ी सड़कों के रखरखाव में सरकार की उपेक्षा पर व्याप्त आक्रोश में कोई कमी नहीं आई। 12 अक्टूबर 2022 को एक और चिंताजनक खबर आयी कि उ प्र पुलिस के लोग सादी वर्दी में रूद्रपुर कुण्डा थाना क्षेत्र के एक गांव में घुसक और गोलीबारी की जिसमें जसपुर के ज्येष्ठ ब्लाक प्रमुख की पत्नी की मौत हो गयी। तब उ प्र व उत्तराखंड की पुलिस आमने-सामने आ गई थी।
18 अक्टूबर 2022 को केदारनाथ से लौटते हुये एक निजी हेलीकोप्टर गरूड़चट्टी पहाड़ी से टकरा कर क्रैश हो गया जिसमें सात लोग मारे गये। इस हेलीकोप्टर हादसे पर 22 अक्टूबर को ‘आज तक’ चैनल ने अपने रात 9-10 बजे के कार्यक्रम में उद्घाटित किया कि केदारनाथ यात्रियों को ढोते हेलीकोप्टर ऑटो या बस की तरह उड़ रहें हैं। केदारनाथ में न ही एटीसी है और न ही मौसम बताने की वैज्ञानिक व्यवस्था। सब भगवान भरोसे चल रहा है।
इसके अलावा सितम्बर में ही दलित दुल्हे की हत्या की खबर ने भी राज्य को कलंकित ही किया। चर्चा में भाजपा के राजाध्यक्ष व मंत्री रहे जिन्होंने एक आयोजन में कहा कि – हमारे यहां अलग-अलग देवियों को आप पटा सकते हैं। पुरोधा संगठनों की ऐसे बयान पर सोची समझी चुप्पी रही। 22 अक्टूबर को पैनगढ़ गांव थराली ब्लाक में दिवाली की तैयारी एक समय एक मकान पर बोल्डर गिरने से एक ही परिवार के चार लोग मर गये और दो घायल हो गये। गांव वालों का कहना हैं -यहां 70 परिवार रहते हैं व गांव में कई बार बरसाती आपदा आई है व भूस्खलन हुये हैं।
चूंकि मैं इधर के चार- पांच माह का ही कुछ उल्लेख कर रहा हूं इसलिये त्रिवेन्द्र सरकार के भूकानून संशोधनों के विरोध से उपजे आक्रोश की बात नहीं कर रहा हूं और न ही उस आक्रोश से ध्यान भटकाने के लिये गठित समिति की बात और न ही उसकी दंत नखविहिन संस्तुतियों की बात। जनता की निगाह में अक्टूबर माह के आखिर में लैंसडाउन का नाम बदलना भी घ्यान भटकाना ही है। ईमानदारी से आत्मविश्लेषण करें कि पहले क्या किसी ने सार्वजनिक किया था कि लैन्सडाउन नाम से उसमें हीनता का बोध हुआ था या लज्जा पनपी थी। यदि थी तो इसको व्यक्त करने में रूकावट कहां थी ? यदि नही यूं तो ध्यान भटकाव वाली राजनीति के बजाये खुद ही तय करें कि लैन्सडाउन का नया नाम क्या हो।
सितम्बर 2022 में चंपावत में एक प्राइमरी स्कूल के टायलेट के छत गिरने से एक छात्र की मौत हुई थी व तीन घायल हुये थे तब बड़ा शोर किया गया कि अब सारे जर्जर स्कूलों का सर्वे किया जायेगा और स्कूलों को नये सुरक्षित स्थान दिये जायेंगे पर अब तक क्या हुआ ? अब जब गुजरात के मौरबी में बड़ा झूला पुल हादसा हुआ तो यहां भी चर्चा हुई कि उत्तराखंड में भी झूला पुलों का आंकलन होगा। आपदाओं में तो बीसियों झूला पुल टूटे उनमें से आपने कितनों को नया बना दिया ? पुलों की ही बात कर रहे हैं तो अवैध खनन के कारण जो पुल खतरनाक स्थिति तक पहुंच रहे हैं उनको ही दुरूस्त करा दीजिये।
हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर को दिल्ली, उप्र व उत्तराखंड के राज्यों की सरकारों से ये जानना चाहा कि अपने-अपने राज्यों में हेट स्पीचों के मामलों में उन्होंने अब तक क्या कार्यवाहियां की हैं ? अपने क्षेभ व आक्रोश को व्यक्त करते हुये न्यायपीठ ने कहा कि हमने धर्म को किस निम्न स्तर तक पहुंचा दिया है। सुप्रीम कोर्ट न इन राज्यों के पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिये कि बिना किसी औपचारिक शिकायत का इन्तजार किये उन्हें हेट स्पीच के मामलों में तुरंत ही आरोपियों पर आपराधिक मामले दर्ज करने चाहिये। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की हेजीटेशन को न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना व कौन्टेम्पट माना जायेगा। गलती करने वाले अधिकारियों पर कानूनन कड़ी कार्यवाही होगी। उत्तराखंड में भी हरिद्वार हेट स्पीच का मामला महीनों पुराना हो गया है।
आम जनता व पर्यावरण प्रेमी जब सड़कों के लिये सरकार द्वारा पेड़ काटने के आरोप लगाते हैं तो सरकारें उनकी अनसुनी कर देती हैं। अब तो वनवैज्ञानिकों ने ही राज्य की वन कार्यप्रणाली व निगरानी तंत्र को कटधरे में खड़ा कर दिया है। टाइगर सफारी में दो सौ से कम पेड़ों को काटने की अनुमति थी पर पेड़ इससे कहीं ज्यादा काटे गये हैं। इन आरोपों के बीच वास्तविक स्थिति जानने के लिये राज्य के वन विभाग ने एफ एस आई को काम सौंपा था। उन्होंने केन्द्र सरकार व राज्य सरकार को रिपार्ट दी है कि 6 हजार से ज्यादा पेड़ काटे गये हैं। छीछालेदरी देख राज्य वन विभाग ने ही रिपोर्ट पर सवाल खड़ा कर दिया था। भारतीय वन सर्वेक्षण ने भी उन्हें तीखा जवाब दिया कि बजाये उनके वैज्ञानिक प्रोफेशनल काम की प्रशंसा करने के वन विभाग उनके सख्त मानकों पर किये गये काम की आलोचना कर रहा है। केन्द्र व राज्य के वन मंत्रियों को इसमें सरकारी आधिकारिक पक्ष प्रस्तुत करना चाहिये। मामला न्यायालय में है। ये काम वो सरकार ही कर रही है जो कहती है कि हम पर्यावरण और आर्थिकी में सन्तुलन मिलाकर काम कर रहें हैं।
नवीनतम तो यह है कि देहरादून स्मार्ट सिटी के मामले में तो सरकारी सत्तारूढ़ दल में ही असंतोष गहरा रहा है। नाकामियों या जन सरोकारों के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये यदि नॉन इस्यूज को इस्यूज बनाया जायेगा और साक्ष्यों को मिटाया जायेगा तो इनसे किसी को भी कोई लाभ नहीं होगा। दलीय प्रतिबद्धता से हटकर यदि सोचेंगे, काम करेंगे तो आंखों में धूल झोखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।