राजीव लोचन साह
नैनातील. राज्यपाल ने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में 25 प्रोफेसरों समेत विभिन्न पदों पर हुई नियुक्तियों में धांधली की जांच के आदेश दिये हैं. विश्वविद्यालय की कुलाधिपति और राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने एक टेलीविज़न चैनल सेकहा है कि नियुक्तियों में गड़बड़ी पाये जाने पर उन्हें निरस्त कर दिया जाएगा. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या उनके इस आदेश का हश्र भी उनके पुराने आदेश की तरह होगा, जिसमें उन्होंने सरकार से धांधली रोकने के लिए उचित कदम उठाने के लिए कहा था और सरकार जांच की फाइल दबा के बैठ गई थी.
जब राज्य सरकार के शिक्षा मंत्री ही आरोपी हों तो सरकारी जांच का क्या मतलब?
विश्वविद्यालय के कुलपति और आरएसएस कार्यकर्ता ओम प्रकाश नेगी ने अब तक के अपने ढाई साल के कार्यकाल मेंक़रीब पांच दर्जन नियुक्तियां की हैं. सभी नियुक्तियों में नियम-कानूनों की खुलेआम अनदेखी की गई. कुलपति ने विश्विद्यालय में आते ही पहले असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर (एआरडी) के आठ पदों पर भर्तियां की थी. इन सभी पर मंत्री के क़रीबी और भाजपा के लोगों की नियुक्तियां की गईं. इन नियुक्तियों में तब भी भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे थे. इस बात की शिकायत राज्यपाल से की गई थी.
राजेश कुमार सिंह की तरफ़ से राज्यपाल को लिखे गये शिकायती पत्र में एआरडी की भर्ती के अलावा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के 37 विभिन्न पदों पर होने वाली भर्ती में भ्रष्टाचार की तैयारी की बात भी की गई थी. यह पत्र कुलपति के भ्रष्टाचार की कई परतें खोलता है.
राज्यपाल के पास पहले से ही उन 9 लोगों के नाम की सूचना थी जिनकी नियुक्ति सात महीने बाद प्रोफेसर के विभिन्न पदों पर हुई. देश के किसी भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों की नियुक्ति राष्ट्रीय स्तर के विज्ञापन के बाद होती है. ऐसे में कुलपति और मंत्री के क़रीबी 9 लोगों का नाम पहले ही सामने आ जाना अपने आप में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण है.
राज्यपाल ने इस मामले में जांच के लिए शिक्षा मंत्रालय को कहा लेकिन आख़िरकार उन्हींलोगों की भर्ती कर ली गई.इस पत्र से पता चलता है कि राज्यपाल ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिये लेकिन इससे किसी के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. जब दोषी को ही जांच के लिए कहा जाए तो हश्र यही होना था.
सूचना के अधिकार के तहत राज्यपाल ऑफिस से मिला पत्र इस बात को भी सामने लाता है कि कई लोगों की कुर्बानी के बाद बने उत्तराखंड में चंद भ्रष्ट लोग कैसे मौज़ काट रहे हैं. उन्हें रोकने वाला कोई नहीं. नौकरशाही समेत राज्य की सारी मशीनरी उनके साथ खड़ी हो जाती है. यह मामला संवैधानिक पद पर बैठी राज्यपाल की अनदेखी करने का भी है.
अब यह बात अच्छी तरह सामने आ चुकी है कि कुलपति नेगी ने मंत्री की सह पर सोची समझी रणनीति के तहत नियुक्तियों को अंजाम दिया. उन्होंने पदों के विज्ञापन निकालने से पहले ही विश्वविद्यालय के आरक्षण रोस्टर से छेड़छाड़ की. अपने उम्मीदवारों के मुताबिक़ पदों को आरक्षित या अनारक्षित कर दिया.
कुलपति ने पूरी नियुक्ति की प्रक्रिया को बहुत की चालाकी से अंजाम दिया. उन्होंने अपनी सुविधा के अनुसार रोस्टर कमेटी बनाई. जिसने पहले से चले आ रहे उत्तराखंड की महिलाओं के लिए लागू 30 फीसदी आरक्षण को ख़त्म करने की आपराधिक कार्रवाई की. नियुक्तियों को निरस्त करने के लिए एक ये मामला ही काफी है.
इसके बाद उम्मीदवारों की छंटनी के लिए मनमानी स्क्रीनिंग कमेटी बनाई. लेकिन स्क्रीनिंग कमेटी में अपने लोगों को रखवाने के बाद भी कुछ लोगों ने हाथ खड़े कर दिये कि जो हो ही नहीं सकता वह नहीं किया जा सकता. इस प्रक्रिया में कुलपति के कई उम्मीदवार स्क्रीनिंग में बाहर हो गए. तब कुलपति ने नियमों के विरुद्ध जाकर एक शिकायत निवारण समिति बनाकर स्क्रीनिंग में बाहर लोगों को इंटरव्यू के लिए बुला लिया. बाद में इन सभी को प्रोफेसर के विभिन्न पदों पर बिठा दिया.
कुलपति के भ्रष्टाचार का एक और नमूना ये है कि कई उम्मीदवारों ने अपने नकली दस्तावेज़ विश्वविद्यालय में जमा किये थे. जंतु विज्ञान में एसोसिएट प्रोफेसर बने पीके सहगल और पत्रकारिता में राकेश रयाल ऐसे ही उदाहरण हैं. दोनों के पास ही एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए आठ साल न्यूनतम असिस्टेंट प्रोफेसर का अनुभव नहीं था. ठीक इसी तरह लॉ और समाजशास्त्र में प्रोफेसर पद के उम्मीदवारों को स्क्रीनिंग कमेटी ने बाहर कर दिया था. लेकिन इन्हें भी बुलाकर इनका चयन करवा लिया गया. कई लोगों पर राज्य का फर्जी स्थाई निवास प्रमाण पत्र और आर्थिक रूप से कमजोर तबके का नकली सर्टिफिकेट बनाने का भी आरोप है.
विश्वविद्यालय ने शिक्षकों के कुल 25 पदों पर नियुक्तियां की हैं. इनमें से अधिकांश भाजपा नेताओं के रिश्तेदार, आरएसएस के कार्यकर्ता या कुलपति के चहेते हैं. इसके अलावा बाक़ी अनियमित पदों पर जो नियुक्तियां हुई हैं उनकी भी सबसे बड़ी योग्यता सत्ताधारी पार्टी से किसी ना किसी तरह का जुड़ाव है. सबसे बड़ी बात, इन नियुक्तियों में ज़रूरी योग्यताओं के संबंध में भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की खुलकर धज्जियां उड़ायी गईं.
मामला मीडिया में आने के बाद एक बाद फिर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने विश्वविद्यालय के कुलपति के कार्यकलापों पर नाराज़गी जतायी है और मामले की जांच के आदेश दिये हैं. क्या इस बार दोषियों पर कोई कार्रवाई हो पाएगी? कुलपति इस भ्रष्टाचार के सबसे संगीन एआरडी और प्रोफेसर भर्ती मामले से ध्यान हटाकर मीडिया में छपे 56 पदों के मामले की बात कर रहे हैं और ख़ुद को पाक-साफ़ बता रहे हैं. सरकारी जांच को टालने में माहिर लोग जानते हैं कि उन्हें ऊपर से बचा लिया जाएगा.
कुलपति नेगी के पास अब लगभग पांच महीने का कार्यकाल बचा है. लेकिन उनकी पूरी कोशिश है कि उनके भ्रष्टाचार का मामला यूं ही दब जाए. इसके लिए वे चारों तरफ़ हाथ-पांव मार रहे हैं. राज्य के चुनाव भी करीब हैं. शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत पर भ्रष्टाचार के आरोप लगना पुष्कर सिंह धामी की सरकार के लिए एक नई चुनौती है. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सरकार को इस मामले में घेरा है. राज्य में कई जगहों पर प्रदर्शन भी हुए हैं. आम आदमी पार्टी ने भी भाजपा के इस भ्रष्टाचार पर हमला बोला है. लेकिन असली सवाल यही है कि क्या उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्याय में कुलपति ओपीएस नेगी के कार्यकाल में हुई सभी अनियमितताओं की जांच हो पाएगी.
क्या शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दे आने वाले चुनावों में केंद्रीय रूप ले पाएंगे? या मुख्य राजनीतिक दल जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर बांटने वाले गैरज़रूरी मुद्दों पर सवार होकर चुनाव लडेंगे? मुक्त विश्वविद्यालय का मुद्दा भी राज्य की राजनीति का एक संकेतक होगा.
कुलाधिपति के आदेशों के बावजूद भी जब तक न्यायिक जांच नहीं होगी तब तक मंत्री और कुलपति के कारनामे जारी रहेंगे. उत्तराखंड के आंदोलनकारी इस मामले में क्या करते हैं या विपक्षी दल कितना गंभीर रुख अख़्तियार करते है ये भी इस मामले में निर्णायक साबित होगा.
मुक्त विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में भ्रष्टाचार राज्य के हजारों शिक्षित नौजवानों के साथ खिलवाड़ है जो रोजगार पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और प्रतियोगी परीक्षाएं देते हैं. जब तक भ्रष्ट तरीक़े से की गई प्रोफ़ेसरों की सभी नियुक्तियां रद्द नहीं होती और दोषियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होता तब तक उत्तराखंड की उच्च शिक्षा भ्रष्ट गुरुओं के हवाले रहेगी.