गोविन्द पंत ‘राजू’
सैनिक बनकर देश की सेवा करने का जज्बा रखने वाले बहुत सारे युवा इन दिनों पुलिस के चक्कर में फंसे हैं, कुछ हिरासत में हैं तो कुछ के खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज है और सरकार बहादुर ने साफ ऐलान कर दिया है कि इन सबके लिए अब फौज के दरवाजे हमेशा के लिए बंद। कानूनी कार्रवाई होगी सो अलग। युवाओं के भविष्य के सपनों पर अग्निपथ ने किसी जहरीले नाग की तरह फन फैला दिया है और इस नागपाश में उत्तराखंड के भी हजारों युवाओं के सपने दम तोड़ते दिखाई दे रहे हैं। उत्तराखंड हमेशा से ही देवभूमि के साथ-साथ वीरभूमि भी रहा है।राजशाही के दौर में भी उत्तराखंड के वीरों की एक अलग पहचान थी और अगर ब्रिटिश काल की बात की जाय तो दोनों विश्व युद्धों में उत्तराखंड के बहादुर सैनिकों ने शौर्य और विश्वसनीयता के अनेक प्रतिमान गढ़े थे। आजाद हिंद फौज में भी उत्तराखंड के सैनिकों की बड़ी संख्या थी।
1815 में ब्रिटिश गोरखा युद्ध के बाद गोर्खों की बहादुरी से प्रेरित होकर अंग्रेजों ने गोरखा रेजिमेंट की स्थापना की और इसमें उत्तराखंड के लोगों को भी भर्ती किया जाने लगा। इसी गोरखा रेजीमेंट की दूसरी बटालियन से गढ़वाल बटालियन बनाई गई और 4 चार नवंबर 1887 में कालो डांडा यानी आज के लैंसडाउन में इसके लिए छावनी स्थापित की गई। मगर उत्तराखंड की सैन्य परंपरा की दूसरी सबसे बड़ी प्रतीक गढ़वाल राइफल्स की शुरुआत प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद 1881 में हुई जब 39वीं गढ़वाली रेजिमेंट ऑफ बंगाल इन्फेंट्री का गठन किया गया। अपनी पहली ही लड़ाई में बर्मा के मोर्चे पर इस पलटन ने बेहद बहादुरी का परिचय दिया और 44 जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। 1945 में इसे रॉयल गढ़वाल राइफल्स का नाम दिया गया जो आजादी के बाद गढ़वाल राइफल्स बनी। आजादी से पूर्व इसने तीन विक्टोरिया क्रॉस, 25 मिलिट्री क्रॉस, 53 इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट और 283 अन्य सैन्य सम्मान हासिल किए। 6 अशोक चक्र, 13 महावीर चक्र, 29 कीर्ति चक्र, 100 वीर चक्र, 169 शौर्य चक्र तथा 745 सेना मेडल प्राप्त किए हैं। वर्तमान में 22 बटालियनों वाली गढ़वाल राइफल्स से गढ़वाल स्काउट, टेरिटोरियल आर्मी, इकोलॉजिकल बटालियन और मेकेनाइज्ड इन्फेंट्री भी जुड़ी हुई हैं।
उत्तराखंड ने भारतीय सेना को एक सीडीएस, दो थल सेना अध्यक्ष और एक नौसेना अध्यक्ष देने का श्रेय हासिल किया है। उत्तराखंड के पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी हिस्सेदारी से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक हासिल करने में कामयाबी पाई है।
आई. एम. ए. से निकलने वाला हर बारहवां अफसर उत्तराखंडी होता है। उत्तराखंड के आज लगभग 75 हजार से अधिक नागरिक भारतीय सेनाओं में सेवारत हैं और सेवानिवृत्त सैनिकों की संख्या इस से लगभग तीन गुना अधिक है। एक अनुमान के मुताबिक देश के हर 100 सैनिकों में से एक सैनिक उत्तराखंड से आता है। अब सरकार की अग्निपथ योजना ने एक ही झटके में उत्तराखंड के युवाओं के पर कतर दिए हैं। नया भर्ती सिस्टम उत्तराखंड के युवाओं के लिए भी बहुत नकारात्मक संदेश लेकर आया है। पिछले दिनों दिल्ली की सड़कों पर दिन भर काम करने के बाद रात घर जाते वक्त दौड़ते हुए जिस उत्तराखंडी नौजवान का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था शायद उत्तराखंड के गांव, कस्बों और शहरों में उसी तरह भर्ती होने के लिए जी जान से जुटे युवाओं के कदम अग्निपथ की झुलसा देने वाली आंच में अपनी जगह पर ही जड़वत हो गए हैं। एक ओर उत्तराखंड सरकार देहरादून में उत्तराखंड के शहीदों की स्मृति में उत्तराखंड के पांचवें धाम के रूप में सैन्य धाम की स्थापना करवा रही है। इस पांचवें धाम के लिए उत्तराखंड के 1734 शहीदों के घरों की मिट्टी लाई जा रही है। दूसरी ओर सरकार की अग्निपथ योजना हजारों युवाओं के सपनों को जन्म से पहले ही अकाल मृत्यु की ओर धकेलती दिखाई दे रही है। नई पीढ़ी को शायद फौजियों को लेकर गीत बनाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
आधुनिक सैनिकों के रूप में उत्तराखंड के वीरों की गाथाएं 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में सुनी जाने लगी थीं। देश की सबसे पुरानी सैन्य टुकड़ी के रूप में जानी जाने वाली वर्तमान कुमाऊँ रेजीमेंट का इतिहास 1788 से शुरू माना जाता है। तब हैदराबाद में इसकी स्थापना हुई थी और नवाब सलाबत खां की रेजिमेंट के रूप में 1794 में इसे रेमट कोर् और बाद में निजाम कॉन्टिजेंट कहा जाने लगा। 1903 मैं इसे भारतीय सेना में शामिल किया गया। 1922 में इसे हैदराबाद रेजिमेंट का नाम दिया गया। 27 अक्टूबर 1945 को इसे द कुमाऊँ रेजीमेंट का नाम मिला और आगरा में इसका मुख्यालय बनाया गया। आजादी के बाद 1948 में रानीखेत में स्थानांतरित हुआ।
पराक्रमो विजयते की पहचान के अनुरूप ही कुमाऊं रेजिमेंट की शौर्य और पराक्रम की गाथाएं भी हैं। देश को जनरल एस एम श्रीनागेश, जनरल के एस थिमैया और जनरल टी एस रैना के रूप में 3 थल सेना अध्यक्ष देने वाली रेजीमेंट है। इसके अलावा गोरखा राइफल्स ने सैम मानेकशाॅ, दलबीर सुहाग और बिपिन रावत तथा सिख लाइट इन्फैन्ट्री ने वेद प्रकाश मलिक,बिक्रम सिंह और मनोज नरावणे के रूप में भी तीन तीन सेनाप्रमुख दिये हैं। वर्तमान में 21 बटालियनों वाली कुमाऊं रेजीमेंट को 1970 में नगा रेजीमेंट को स्थापित करने का भी श्रेय प्राप्त है। कुमाऊं रेजिमेंट का विस्तार कुमाऊं स्काउट्स, तीसरी बटालियन पैराशूट रेजीमेंट और मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री आदि तक भी है। इसके हिस्से अब तक देश के पहले परमवीर चक्र सहित दो परमवीर चक्र, 4 अशोक चक्र, 13 महावीर चक्र, 10 कीर्ति चक्र, 2 उत्तम युद्ध सेवा मेडल, 82 वीर चक्र, 43 शौर्य चक्र और 298 से अधिक पदक व मेडल आए हैं।
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