जगमोहन रौतेला/हरीश पन्त
उत्तराखण्ड में शराब का नशा सरकारों की राजस्व कमाने की होड़ के कारण तेजी से फैल रहा है । हर वर्ष प्रदेश सरकार द्वारा इससे प्राप्त किए जाने वाले राजस्व के लक्ष्य को बढ़ाने का दबाव जिला प्रशासन पर रहता है । यह दबाव सरकार की ओर से इतना ज्यादा है कि उत्तराखण्ड के जिन सुदूर क्षेत्रों में बच्चों के पढ़ने के लिए प्राथमिक विद्यालय व लोगों के बीमार पढ़ने पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक नहीं हैं , वहॉ प्रदेश की अब तक की सरकारों ने अपनी प्रशासनिक ताकत शराब पहुँचाने में लगाई है । पिछले कुछ वर्षों में तो जब लोगों ने सुदूर गॉवों में शराब की दुकानें खोलने का विरोध किया तो जिला प्रशासन ने ऐसे स्थानों में चलती – फिरती गाड़ियों ( मोबाइल वैन ) से तक शराब बेची है । एक ओर सरकारें उत्तराखण्ड को हर बात में ” देवभूमि ” कहलाते हुए इतराती हैं , वहीं दूसरी ओर उत्तराखण्ड को शराब के नशे में डूबो देने को अपनी पूरी ताकत भी लगा रही हैं । उसका ध्यान लोगों के स्वास्थ्य व शिक्षा की बजाय उन्हें शराब परोसने पर ज्यादा है ।
शराब का नशा जहॉ सरकार लोगों को स्वयं उपलब्ध करवा रही है । वहीं दूसरी ओर स्मैक की तरह का नशा भी बहुत ही तेजी के साथ राज्य की किशोर व युवा पीढ़ी को अपनी गिरफ्त में ले रहा है । इस नशे के शिकार युवक तो हो ही रहे हैं , बल्कि अब युवतियॉ तक उसकी गिरफ्त में फँस रही हैं । शराब के नशे से एक बार को लोगों को दूर किया जा सकता हैं , लेकिन स्मैक जैसे खतरनाक नशे की गिरफ्त में फँसे युवाओं को इससे बाहर निकालना बहुत ही कठिन है । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि शराब का नशा करने वाला व्यक्ति अपनी हरकतों के कारण सबकी नजरों में आ जाता है , लेकिन स्मैक जैसा नशा करने वाले शुरुआत में एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करते हैं , उनके नशे की गिरफ्त में होने के बारे में बहुत आसानी से पता नहीं चलता है । जब इस बारे में पता चलता है , तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।
किशोर व युवा पीढ़ी के स्मैक जैसे नशे की चपेट में आने और उनकी मनोवैज्ञानिक दशा के बारे में जब हल्द्वानी के मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग के डॉ. युवराज पंत से बातचीत की गई तो बहुत ही चिंताजनक बातें सामने आई । डॉ. पंत के अनुसार , इस तरह का नशा करने वाले लोगों की औसत आयु पहले की अपेक्षा बहुत ही तेजी के साथ कम हो रही है । पहले जहॉ स्मैक का नशा करने वाले लोगों की औसत आयु 30 से 40 साल से ऊपर होती थी , वहीं यह अब घटकर 15 से 25 वर्ष तक पहुँच चुकी है । इस तरह का नशा स्मैक , इंजक्शन , गोलियों , सूघँने , आयोडैक्स के रुप में खाने आदि कई तरह से प्रयोग किया जाता है । ये नशे शुरूआती तौर पर शौक व उत्सुकतावश प्रयोग में लिए जाते हैं । इसमें संगी – साथियों का बहुत बड़ा हाथ होता है । अगर साथ के दोस्तों व परिचित में कोई भी इस तरह के नशे का शिकार है तो उसे देखकर या फिर उसके द्वारा थोड़ा बहुत उकसाने पर ही नशे की ओर पहला कदम बढ़ता है । वह भी तब जब ऐसे लोगों का खुद पर नियंत्रण नहीं होता । वैसे भी यह उम्र बहुत ज्यादा सोच – विचार व अपना अच्छा – बुरा समझने वाली नहीं होती है ।
डॉ. पंत आगे कहते हैं कि किशोरवय वाले बच्चे जब अपने साथी को नशे के बाद कथित तौर पर आनन्द में डूबा हुआ , चिंतामुक्त व बेपरवाह सा पाते हैं तो आज के तनाव भरे पढ़ाई के माहौल व घर की किसी भी तरह की तनावयुक्त जिंदगी से मुक्त होने के लिए किशोर बच्चों को अपने साथी को देखकर यह नशा ही उस सब से मुक्त होने का सबसे सरल और आसान तरीका समझ में आता है । यही आसान तरीका उन्हें कब नशे के दलदल में धकेल देता है ? उन्हें पता ही नहीं चलता । डॉ. पंत अपने चिकित्सकीय अनुभव के आधार पर कहते हैं कि स्मैक जैसे नशे की लत की चपेट में हर तरह की आर्थिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि के युवा आ रहे हैं । इसके लिए अशिक्षित व शिक्षित होना कोई मायने नहीं रखता है । कमजोर आर्थिक स्थिति के किशोर व युवा जब इसके शिकार होते हैं तो अपनी लत को पूरा करने के लिए वे फिर दूसरे लोगों को स्मैक बेचने का काम करने लगते हैं । इन बच्चों का आमतौर पर कोई अपराधिक इतिहास पुलिस के पास नहीं होता , इसी कारण ये लोग नशे का जहरीला धंधा करने वालों के चंगुल में आसानी से फँस जाते हैं । ये किशोर व युवा आर्थिक तौर पर मजबूत किशोरों व युवाओं को स्मैक जैसे नशीले पदार्थ बेचते हैं और इसके बदले में मिलने वाले रुपयों से अपने लिए नशे का जुगाड़ करते हैं । इस तरह नशे का कारोबार अबाध गति से चलता रहता है । स्मैक जैसे पदार्थों का नशा करने वाले कुछ समय बाद इस तरह के नशे पर निर्भर हो जाते हैं ।
स्मैक जैसे नशीले पदार्थ बहुत ही महंगे हैं । अगर हम स्मैक की ही बात करें तो एक ग्राम स्मैक में लगभग 20 पुड़िया बनती हैं और एक पुड़िया स्मैक का वजन सौ रुपए के नोट के बराबर होता है । एक पुड़िया स्मैक की कीमत नशे के बाजार में 200 से 300 रुपए तक है । इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नशे के इस धंधे से जुड़े लोग किस बड़े मैपाने पर अपना धंधा चला रहे हैं । कमजोर आर्थिक स्थिति वाले व स्कूल – कॉलेज के बच्चे इसी वजह से अपने नशे की पूर्ति के लिए छोटी – मोटी चोरियॉ , चैन स्केचिंग , दुपहिया चोरी जैसे अपराध करने लगते हैं । आए दिन इस तरह की घटनाएँ सामने आने लगी हैं । इस तरह के अपराध में किशोरों व युवाओं के सम्मलित होने के पीछे नशे की लत एक बहुत बड़ा कारक बन रहा है । एक बार जब नशे की पूर्ति के लिए किशोर व युवा अपराध के दलदल में धँसते हैं तो वे आगे जाकर उम्र बढ़ने के साथ ही बड़े – बड़े अपराधों को भी अंजाम देने लगते हैं ।
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि उनके पास लगभग हर रोज ही स्मैक जैसे नशे में फँसे किशोर व युवाओं के माता – पिता अपने बच्चों को लेकर आते हैं । ये वे लोग होते हैं जो नशे के रोगी बन चुके हैं । अपने नशे की लत के कारण ऐसे बच्चे अपना सामान्य जीवन जीना भूल चुके होते हैं । उनका पढ़ाई तक में मन नहीं लगता। वे समय से खाना , नहाना तक छोड़ देते हैं । परिवार के लोगों के साथ बोलना तक उन्हें अच्छा नहीं लगता । बिना नशे के वे ठीक से चल तक नहीं पाते हैं । उन्हें चक्कर आने लगते हैं । जी मिचलने लगता है । एक तय समय पर नशा करने को न मिले तो वे उसको प्राप्त करने के लिए हिंसक तक हो जाते हैं । इसके लिए वे अपने ही घर में चोरी व लूट करने से भी नहीं हिचकते हैं ।
डॉ. पंत के पास नशे की लत से छुटकारा पाने के मनोचिकित्सक उपचार के लिए उत्तराखण्ड के सभी जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश के निकटवर्ती पीलीभीत , बरेली , मुरादाबाद , रामपुर व बिजनौर जिलों से भी नशे के शिकार मरीज आते हैं । डॉ. पंत के अनुसार , उत्तराखण्ड में स्मैक जैसे नशे के मरीजों की सबसे ज्यादा संख्या ऊधमसिंह नगर , हरिद्वार व देहरादून जिलों में हैं । उत्तर प्रदेश के निकटवर्ती जिलों में सबसे ज्यादा प्रभावित बरेली जिला है । उसके बाद रामपुर , मुरादाबाद व पीलीभीत जिलों का नम्बर आता है । बरेली के सबसे ज्यादा प्रभावित होने का कारण डॉ. पंत वहॉ होने वाली अफीम ( डोडे ) की खेती को मानते हैं । उल्लेखनीय है कि बरेली जिले में अफीम की खेती सरकार द्वारा प्राप्त लाइसेंस के आधार पर होती है । अफीम के डोडे का उपयोग कई तरह की दवाओं को बनाने के लिए किया जाता है । सरकारी संरक्षण में होने वाली अफीम की खेती का एक बहुत बड़ा हिस्सा नशे के काले कारोबार का हिस्सा बन जाता है ।
डॉ. पंत के पास हल्द्वानी में नशे से पीड़ित पहला मरीज 1999 में आया था । जो गौला नदी में खनन करने वाला एक मजदूर था । उसके बाद से हर वर्ष स्मैक जैसे नशे से पीड़ित मरीजों की संख्या हर वर्ष बढ़ती रही है । एक दशक पहले जहॉ साल भर में 50 लोग नशे की बीमारी का इलाज करवाने के लिए उनके पास पहुँचते थे , वहीं अब यह संख्या साल भर में 350 से ऊपर पहुँच गई हैं । मतलब ये कि अब औसतन हर रोज एक नया मरीज नशे की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए डॉ. पंत के पास पहुँच रहा है । जो बेहद चिंताजनक व भविष्य की भयावह तस्वीर दिखाता है । डॉ. पंत कहते हैं कि इसके लिए हर माता – पिता को अपने बच्चों पर गहरी नजर रखनी चाहिए । उन्हें बच्चों के व्यवहार में होने वाले किसी भी तरह के परिवर्तन पर ध्यान देना चाहिए । साथ ही यह भी देखना चाहिए कि उनका स्कूल , कॉलेज जाने वाला बच्चा कहीं अचानक से गुमसुम , उदास , एकाकी , कम बोलने वाले , सामान्य से अधिक चिड़चिड़ा व गुस्सेबाज तो नहीं हो रहा है ?
अगर वे अपने बच्चे में कुछ इस तरह के परिवर्तन देखें तो उन्हें विश्वास में लेकर उनके मन की थाह लेने की कोशिस करनी चाहिए । यह नशे में फँसने के प्रारम्भिक लक्षण हो सकते हैं । समय पर इसका पता चलने पर उनका आसानी से मनोवैज्ञानिक उपचार किया जा सकता है और वे बहुत जल्द ही एक नशे से छुटकारा पाकर एक सामान्य जीवन की ओर लौट सकते हैं ।