ज़ुबैर अहमद
‘बीबीसी’ से साभार
उत्तरकाशी के सिलक्यारा गांव में एक सुरंग में फंसे क़रीब 40 मज़दूरों को बाहर निकालने की कोशिश लगातार जारी है. शुक्रवार को रेस्क्यू ऑपरेशन का छठा दिन रहा लेकिन सफलता नहीं मिली.
गिरिडीह के रहने वाले एक मज़दूर ने बताया कि उसके कई साथी मज़दूर सुरंग में फंसे हुए हैं जिसके कारण वे तनाव में है.
वे कहते हैं, “मैं भी उन्हीं के साथ इस टनल में काम करता हूँ. रविवार को वो रात की शिफ़्ट में थे. मैं दिन की शिफ्ट में काम करता हूँ लेकिन उस दिन दिवाली के कारण मेरी छुट्टी थी. अगर हादसा न होता, अंदर फंसे लोग भी रविवार को दिवाली की छुट्टी करते. लेकिन साथियों की रात की शिफ़्ट के ख़त्म होने से पहले ही 5 बजे सुबह सुरंग के 200 मीटर अंदर ऊपर का एक बड़ा हिस्सा नीचे आ गिरा और लगभग 70 मीटर तक मलबा फैल गया.”
गिरिडीह के इस मज़दूर ने बताया कि उनके राज्य झारखंड के 15 मज़दूर अंदर फंसे हैं.
वे कहते हैं, “अधिकारी उम्मीद तो दिलाते हैं लेकिन हमें मायूसी हो रही है.”
ज़्यादातर मज़दूर इतने डरे हुए थे कि उन्होंने कैमरे के सामने बात नहीं की और जिन लोगों ने बात की उन्होंने अपने नाम नहीं ज़ाहिर किए. उनका कहना था कि उनकी कंपनी ने मीडिया वालों से बात करने से उन्हें मना किया है.
बिहार के आरा के रहने वाले नफ़ीस अहमद के चचेरे भाई सबा अहमद टनल के अंदर फंसे हैं.
नफ़ीस कहते हैं, “हमारे एक और भाई ने सबा अहमद से गुरुवार को बात की थी और वो ठीक हैं. लेकिन उनका परिवार बहुत परेशान हैं. उनकी बीवी और बच्चे रो रहे हैं. वो आरा से यहाँ नहीं आ सकते. इसलिए उन्होंने मुझे भेजा है.”
नफ़ीस अहमद ने बीबीसी से कहा, “अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि सबा और सभी दूसरे मज़दूर सही सलामत बाहर निकाल लिए जाएंगे. हम अब आए हैं तो उन्हें लेकर ही घर जाएंगे, चाहे जितना समय लगे.”
उत्तरकाशी के एसएसपी ने क्या बताया?
सुरंग के बाहर मज़दूरों, रेस्क्यू टीम के सदस्य, मीडिया वालों और पुलिसकर्मियों की भीड़ है. उसपर से कई तरह के वाहनों और क्रेनों को रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाया गया है.
उत्तरकाशी के एसएसपी अर्पण यदुवंशी ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि अंदर फंसे मज़दूर ठीक हालत में हैं.
बीबीसी ने जब उनसे पूछा कि मज़दूरों को बाहर निकाले जाने का कोई समय बता सकते हैं तो उनका कहना था कि टाइमलाइन देना मुश्किल है क्योंकि अंदर मलबा कितनी दूर तक फैला है वो इस समय बताना आसान नहीं है.
लेकिन वहां मौजूद दूसरे अधिकारियों के अनुसार शुक्रवार की देर रात और शनिवार दोपहर के बीच मज़दूरों का निकलना संभव है अगर कोई और बाधा न आए.
टनल एक विवादित परियोजना का हिस्सा
सुरंग के अंदर फंसे मज़दूर और बाहर बैठे मज़दूर जिनसे हमने बात की वो सब सुरंग और हाइवे को बनाने वाली कंपनी, नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (एनइसीएल) के लिए काम करते हैं.
सुरंग बनाने वाली कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (एनइसीएल) के दो सुपरवाइज़रों ने हमें बताया कि इस टनल पर काम 2018 में शुरू हुआ था.
उनमें से एक ने कहा, “सुरंग में काम होने से थोड़ा पहले एक लैंडस्लाइड (भूस्खलन) में उसी जगह पर नुकसान हुआ था जहाँ रविवार को भूस्खलन के कारण टनल का एक हिस्सा ढह गया. तब इसे बनाने में छह महीने लगे थे. लेकिन शायद इसे मज़बूती से नहीं बनाया गया.”
हमने इसकी पुष्टि कंपनी के साइट ऑफ़िस के अधिकारियों से करने की कोशिश की लेकिन उनके अनुसार वो मीडिया से बात नहीं करते.
निर्माणाधीन सुरंग महत्वाकांक्षी चारधाम परियोजना का हिस्सा है, जो हिंदुओं के तीर्थस्थल बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा पहल है.
ये एक विवादित प्रोजेक्ट है और पर्यावरण के विशषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना से अचानक बाढ़ और भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है जो पहले से ही यहां एक बड़ी समस्या है.
ये हादसा रविवार की सुबह दिवाली के दिन हुआ. शुक्रवार को मज़ूदरों को टनल से बाहर निकालने के ऑपरेशन का छठा दिन था. पहले चार दिनों की कोशिशें नाकाम रहीं क्योंकि मलबे के ढेर को हटाने में वहां इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें मलबा नहीं निकाल सकीं.
क्या किया जा रहा है?
अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि इंदौर से एक नई मशीन मंगाई जा रही है. दिल्ली से जिस मशीन को बुधवार से लगाया गया था उसके बॉल बेअरिंग ख़राब हो गये हैं. लेकिन ये अभी भी काम कर रही है. अधिकारियों के अनुसार, नई मशीन को केवल स्टैंड बाई में रखा जाएगा और ज़रूरत पड़ने पर इसे रेस्क्यू के काम पर लगाया जायेगा.
अधिकारियों ने ये स्वीकार किया कि मशीन का काम धीरे-धीरे हो रहा है. ये मशीन मलबे में छेद करती है और फिर छह मीटर वाली एक पाइपलाइन को अंदर किया जाता है.
यह पाइपलाइन 900 एमएम डायमीटिर या व्यास का है जिसके अंदर से हो कर सुरंग में फ़ंसे मज़दूर बाहर निकल सकते हैं.
एक पाइपलाइन को दूसरे से जोड़ने में तीन घंटे का वक़्त लग रहा है. अब तक चार ऐसे पाइपलाइन अंदर फिट किए जा चुके हैं. अधिकारी कहते हैं छह से आठ पाइपलाइन और फिट किए जाने हैं. अगर ये काम बिना बाधा के चला तो शुक्रवार की आधी रात से शनिवार दोपहर तक मज़दूरों की निकासी काम शुरू हो जाएगा.
साढ़े चार किलोमीटर लंबी इस सुरंग को बनाने वाली कंपनी के कुछ अधिकारियों ने बताया कि सुरंग को बनाने का काम 2018 में हुआ. सुरंग बनाने का काम दोनों तरफ़ से शुरू किया गया. अंदर 400 मीटर पहाड़ अभी भी काटे नहीं गए हैं. जहाँ हादसा हुआ है वो सुरंग के एंट्री द्वार से 200 मीटर पर है.
इसके आगे मलबा 70 मीटर में फैला है और उसके बाद 2,500 मीटर तक सुरंग बना हुआ है. यानी मज़दूर 2500 मीटर तक टहल सकते हैं. सुरंग में बिजली मौजूद है, पानी और ऑक्सीजन एक पाइप से पहुँचाया जा रहा है. खाने के पैकेट भी इसी पाइप से उन्हें भेजे जा रहे हैं.
अंदर फंसे ज़्यादातर मज़दूर बिहार, ओडिशा, झारखंड और बंगाल के हैं.