राजीव लोचन साह
दृश्य एकः (नवम्बर 2000, समय 11 बजे पूर्वाहृ: देहरादून के हर्रावाला में एक बंगाली परिवार बतलाता है कि हरिद्वार से एक टाटा सुमो किराये पर लेकर वे देहरादून और मसूरी घूमने जा रहे थे. देहरादून से पहले ही पुलिस ने रोक लिया कि गाड़ी आप हमें दे जाइये और किसी बस में चले जाइये. बटमारों से बचते-बचाते से बेचारे, भागते हुए आ रहे थे. गाड़ियाँ ‘एक्वायर‘ करने का क्या शानदार तरीका है और पर्यटन नीति पर क्या सुन्दर टिप्पणी !)
(आठ नवम्बर के ‘इंडियन एक्सप्रेस‘ का शीर्षकः बी. जे. पी. गिव्स उत्तरांचल टु अ हरियाणा ब्राह्मिन.)
दृश्य दोः ( 8 नवम्बर 2000, समय 6 बजे संध्या)ः विधायक निवास में बदल दिये गये द्रोण होटल, में बहुत भीड़ है नेता चुनने के लिये उत्तरांचल के विधायक दल की बैठ चल रही है। उत्तराखंड का सारा लम्पट तत्व अपने चमकते चेहरों और मोबाइल फोनों के साथ मौजूद है लम्बे जनसंघर्ष में सक्रिय रहा कोई साधारण व्यक्ति वहाँ नहीं न ही चादर या फटी पंखी लेकर नई सरकार का उद्धाटन देखने ग्रामीण देहरादून पहुँचा है। साइरन वाली पाइलट गाड़ी के साथ धड़धड़ाती हुई लालबत्ती एम्बैसेडर आती हैं दो सरदार जी, शायद पंजाब सरकार के मंत्री हो, उतर कर होटल के अन्दर जाते हैं। भीड़ के एक हिस्से से नारे उठते हैं, ‘‘जो बोले सो निहाल, राज करेगा खालसा. ‘‘
दृश्य तीनः ( 8 नवम्बर 2000, समय 7 बजे संध्या)ः देहरादून के मधुबन होटल मे हरियाणा और पंजाब के नम्बर प्लेटवाली गाड़ियों की भीड़ लगी है. होटल की लाॅबी में पंजाब और हरियाणा के पुलिस के जवान गश्त कर रहे हैं। एक खूबसूरत लड़की को किसी वी.वी. आई. पी. के स्वागत के लिये पारम्परिक पंजाबी पोशाक में सजा कर बैठाया गया है…..उत्तराखण्ड का विधिवत गठन होने में अब पाँच घण्टे से भी कम समय है.
जो राजधानी गैरसैण……..गैरसैण….गैरसैण के अनवरत् नारों तथा मंच में तोड़पोड़ के बीच 8/9 नवम्बर की रात नया राज्य बन ही गया. जब सारी दुनिया सो रही है, हम अपनी नियती से साक्षात्कार कर रहे हैं…..वाह! ) भारतवर्ष का 27 वाँ राज्य!
‘उत्तराखण्ड ‘ नहीं, ‘उत्तरांचल‘ जनता को तो क्या खुशी मनानी थी, उसने सियापा नहीं किया, यही गनीमत राज्य के लिये लड़ते रहे आन्दोलकारी सिर्फ औपचारिकता के लिये राज्य का स्वागत करने के लिये निकले. शासक दल भारतीय जनता पार्टी प्रकाशोत्वस मनाने का आह्वान फ्लाॅप रहा. भाजपा के सामान्य कार्यकत्र्ता के चेहरे पर मुर्दनी छायी रही और भाजपा के बड़े नेता खिसियानी हँसी हँसते रहे.
उत्तराखण्ड की जनता को जलील करने की शुरूआत एक महीना पहले से ही हो गई थी. जनाकांक्षाओं का परे ठेल कर देहरादून को राजधानी बनाया गया. फिर तराई की भूमि समस्या को हमेशा हवा देने और उत्तराखण्ड के गठन में लगातार बाधा उत्पन्न करने वाले अकाली दल के एक व्यक्ति, सुरजीत सिंह बरनाला, को राज्यपाल बना दिया गया, फिर जिन्दगी भर देहरादून में खेले-खाये, पहाड़ का एक सामान्य टूरिस्ट से बेहतर न जानने और कमजोर शरीर के नित्यानन्द स्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया,….अब क्या होगा? अब जनसंख्या के आधार विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होगा, 70 सदस्यीय विधानसभा में 40 सदस्य हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर से आयेंगे और 30 सदस्य बाकी के 10 जनपदों से मिल गया उत्तराखण्ड अब तो खुश! इसी के लिये न मरे जा रहे थे. बोल पहाड़ी हल्ला बोल…….राज करेगा खालसा!
दो साल पहले जब कल्याण सिंह ‘उत्तर प्रदेश‘ पुनर्गठन विधेयक 1998 में 26 संशोधन रख उत्तराखण्ड को उत्तर प्रदेश का चिर उपनिवेश बनाने का षड्यंत्र रच रहे थे, उस वक्त भी यहाँ के किसी विधायक के जनाकांक्षाओं के अनुरूप विरोध करनपे का साहस नहीं हुआ, इसीलिये भाजपा से निकाल बाहर कर दिये गये कल्याण सिंह ने पिछले दिनों कहा था कि उत्तराखण्ड के विधायकों में कोई भी मुख्यमंत्री बनने योग्य नहीं है। जब आपस में मिलकर नेता चुनने की बात आई तो एक रोटी के टुकड़े के लिये झगड़ते कुत्तों की टोली की तरह आपस किंकियाते और झगड़ते रहे। जब के. सी पंत को मुख्यमंत्री बनाने की बात हुई तो उसी तरह झपटे जैसे कुत्तों का झुण्ड बाहर के किसी अजनबी कुत्ते के आने पर झपटता है। जब केन्द्र ने नित्यानन्द स्वामी को थोप दिया तो थोड़ा नाज-नखरा कर उसी तरह चुप हो गये, जैसे किसी हंटरवाले को देखकर कुत्ते चुप हो जाते है। सुना है, वाजपेयी जी ने धमकाया था कि तुम आपस में बातचीत से किसी को नहीं चुन सकते हो। अब हम जिसे भेज रहे हैं, उसे स्वीकार करो, अन्यथा राष्ट्रपति शासन लगा दिया जायेगा।
देहरादून में सत्ता के गलियारों ( अब ये गलियारे लखनऊ की सचिवालय एनेक्सी से देहरादून खिसक आये है। ) में यह चर्चा थी कि गढ़वाल के आयुक्त बी. एम. वोहरा का भी स्वामी को लाने में खासा हाथ रहा गढ़वाल भूकम्प के दौरन अनियमितता के आरोप में हटाये जाने पर चार दिन में और पिछले महीने राजधानी की तैयारी में अनियमितता की शिकायत पर हटाये जाने पर सिर्फ चार घण्टे में वापस लौट आने वाले वोहरा ने अपने भांजे विनोद खन्ना के माध्यम से स्वामी का नाम आडवाणी के पास पहुँचाया था, दिल्ली में एक पंजाबी लाॅबी स्वामी के पक्ष में पहले से ही सक्रिय थी।जब वाजपेयी की ‘पसन्द‘ के.सी पन्त पर विधायक रूठे ( सुना मुरलीमनोहर जोशी भी पंत जी को लेकर बहुत उत्सुक नहीं थे………..पहाड़ में सब बाहर से आये हैं, पंत जोशी, पांडे, बहुगुणा ), तो आडवाणी की पसन्द नित्यानन्द स्वामी को आना ही था।
बहरािल राज्य गठित हुआ। राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी बन ही गये नित्यानन्द स्वामी की उम्र तो कम से कम उनके पक्ष में जाती ही है। अब वे गैरसैण को कमला पंत के नेतृत्व में जलूस निकालने वाली दस-पन्द्रह महिलाओं का मुद्दा न समझें, इस भ्रम उबर जायें कि पहाड़ में बच्चे स्कूल नहीं जाते और इतना समझ लें कि पहाड़ देहरादून नहीं, बल्कि वहाँ से बहुत दूर हैं, जो शायद उत्तराखण्ड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में वे कुछ कर ही जायें जैसा कि हम बार-बार कहते रहते हैं, उत्तर प्रदेश के संस्कारों से म्ुाक्त होकर ही उत्तराखण्ड को खुशहाली के रास्ते पर ले जा सकता है। मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी भी यदि यह समझ सकें और अपने आपस में लड़ते-भिड़ते रहने वाले विधायकों का नियंत्रित कर
सकें तो शायद आम पहाड़ी के रास्ते पर जमा पाला पिघले।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।