बाघ के हमले मारा गया पंकज
आदमखोर बाघ की कीमत पर सरकार ने 6 महिलाओं समेत 7 लोगों की बलि लेकर भी बाघ को नहीं दिया था मारने, 3 महिलाओं को निवाला बनाने के बाद गर्जिया गांव की महिला कांति देवी का बाघ ने बनाया था अपना चौथा शिकार…
रामनगर के जिम कार्बेट इलाके से मुनीष कुमार की रिपोर्ट
आप देश में 3 हजार बाघों को लेकर इतरा रहे हो। अमेरिका में 5 हजार से भी ज्यादा बाघ हैं। अमेरिका में लोग बाघों को कुत्तों की तरह पालते हैं, उन्हें बाढ़ों में बंद रखते हैं। उनके साथ खेलते हैं, सोते हैं। यदि हमारी बात पर यकीन नहीं है तो विश्व प्रकृति निधि (डब्लूय. डब्लूय. एफ.) से मालूम कर लीजिए, गूगल पर सर्च कर देख लीजिए। इस झूठ से बाहर आने की जरूरत है कि दुनिया के सबसे ज्यादा बाघ भारत में हैं।
देश में बाघों की संख्या 8 वर्षों में 2010 के मुकाबले दोगुनी हो जाने पर कुछ लोग हर्ष-उल्लास से भर गये हैं। इन हर्ष-उल्लास से भरे लोगों को बाघ के शिकार हुए लोगों की लाशों पर भिनभिनाती मक्खियां नजर नहीं आतीं, उन्हें उनके बच्चों को रुदन-क्रंदन सुनाई नहीं देता।
इन बाघ प्रेमियों को उन लोगों के घरों में जरूर जाना चाहिये, जिनके अपनों का जीवन बाघों ने व जंगली जानवरों ने लील लिया है, जिन्हें जीवनभर के लिए अपाहिज बना दिया है। इनको पता होना चाहिए जब एक व्यक्ति को बाघ मार देता है तो क्या होता है? वन विभाग के अधिकारी उसे तत्काल अंतिम संस्कार के लिए कुछ पैसा देते हैं और कुछ दिन बाद 3 लाख रुपए का चैक। इस देश में एक गरीब इंसानी जान की कीमत इतनी ही है। बाघ द्वारा मारे जाने पर मृतक को ही दोषी ठहरा दो, फरमान सुना दो कि उसने बाघ के प्राकृत वास में अतिक्रमण कर लिया है।
हमें याद है कि कार्बेट नेशनल पार्क की बाह्य पूर्वी सीमावर्तीं सुन्दरखाल, गर्जिया आदि गांवों में 2010-2011 में एक बाघ आदमखोर हो गया था। तब इस आदमखोर बाघ की कीमत पर सरकार ने 6 महिलाओं समेत 7 लोगों की बलि लेकर भी बाघ को मारने नहीं दिया था। 3 महिलाओं को निवाला बनाने के बाद गर्जिया गांव की महिला कांति देवी का बाघ ने अपना चौथा शिकार बना लिया था।
कांति देवी के बेटे ने लाश को मौके से उठाने से इंकार कर दिया तथा कहा कि रात को जब बाघ इसे खाने आएगा तो बाघ को गोली मार दी जाए, ताकि बाकि लोगों को बाघ के आतंक से छुटकारा मिल सके। जंगल के किनारे मौके पर मचान लगायी गयी। रात को बाघ मृतक महिला को खाने के लिए मौके पर पहुंचा और उसने महिला का छाती वाला हिस्सा खा लिया, इसके बावजूद भी मौके पर मौजूद वनाधिकारियों/शिकारियों ने जान—बूझकर बाघिन को गोली नहीं मारी, हवाई फायर कर उसे मौके से भगा दिया गया। और बाघ द्वारा ग्रामीणों को मारकर खाने का सिलसिला जारी रहा।
बाघों की संख्या दोगुनी करने के आपके लक्ष्य की बड़ी कीमत चुकाई है देश ने मोदी जी
26 जनवरी, 2011 को मालधन गांव से अपने ननिहाल सुन्दरखाल गांव पहुंचे नौजवान पूरन को बाघ गांव से घसीटकर ले गया और अगले दिन उसका अधखाया शरीर गांव के समीप से बरामद हुआ। इस पर हजारों लोग अगले दिन सड़कों पर उतर गये और बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर दिया गया, तब मजबूरी में प्रशासन को बाघ को मारना पड़ा था।
2014 में कार्बेट पार्क की दक्षिणी सीमा से बाहर निकलकर एक बाघिन उत्तर प्रदेश के बहजोई तक पहुंच गयी थी। उसने एक के बाद एक करके लोगों को मारना शुरू कर दिया। जन दबाब में उत्तर प्रदेश सरकार ने बाघिन को नरभक्षी घोषित कर मारने का आदेश जारी कर दिया। जानवरों से प्यार करने वाली भाजपा सांसद मेनका गांधी इस आदेश के विरोध में आ गयीं और बाघिन ने एक के बाद एक करके 10 लोगों को मार डाला, परन्तु बाघिन को नहीं मारा गया।
महाराष्ट्र की अवनि बाघिन का मामला बहुत पुराना नहीं है, पिछले ही वर्ष का है। जिसके द्वारा 13 लोगों को निवाला बनाने के बाद वन विभाग द्वारा गोली मार दी गयी थी। वह भी तब जब वह वन विभाग के अधिकारियों की तरफ झपट ही पड़ी थी।
नवम्बर 2018 की घटना है मजदूरों का दल कार्बेट पार्क से काम करके वापस लौट रहा था। उनके साथ सुरक्षा के लिये बन्दूकों से लैस वन रक्षक भी थे। अचानक बाघ ने एक 20 वर्षीय श्रमिक पंकज पर हमला कर दिया। साथ चल रहे वन रक्षक ने बन्दूक होने के बावजूद भी गोली नहीं चलाई और बाघ ने पंकज को मार डाला।
उ.प्र. के पीलाभीत की घटना एक सप्ताह पुरानी भी नहीं है। पीलीभीत में एक बाघिन ने 9 ग्रामीणों को घायल कर दिया तथा एक को मार दिया। आक्रोशित ग्रामीणों ने आत्मरक्षा में बाघिन को घेरकर लाठी-डंडों से मार दिया। यदि वे ऐसा न करते तो बाघिन न जाने कितने और लोगों को निवाला बना लेती।
29 जुलाई को प्रधानमंत्री ने इठलाते हुए कहा है कि बाघों की संख्या 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य लिया गया था, जिसे हमने 4 वर्ष पूर्व ही हासिल कर लिया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए देशवासियों से बड़ी कीमत वसूली गयी है, प्रधानमंत्री ने देश को इसके बारे में देश को नहीं बताया है।
देश में बाघों को संरक्षित करने के लिए एक दो नहीं 50 टाइगर रिजर्व बनाए गये हैं, जिसका कुल क्षेत्रफल 71 हजार वर्ग किलोमीटर से भी बधिक है। इन टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल देश के 12 राज्य व 6 यूनियन टेरिटरी के क्षेत्रफल भी अधिक है। बाघ बचाने के नाम पर देश के लाखों लोगों को उनके परम्परागत आवासों से उन्हें बेदखल किया जा रहा है तथा वहां पर बाघों को बसाया जा रहा है।
पर्यावरण राज्य मंत्री बाबू सुप्रीयों ने संसद को बताया है कि देश में पिछले 5 वर्षों में 2398 लोग जंगली जानवरों द्वारा मार दिये गये, जिसमें बाघों द्वारा मार दिये गये लोगों की संख्या 200 से अधिक है। अवनि जैसी बाघिन के लिए आंसू बहाने वाले देश में बहुत मिल जाएंगे, परन्तु 2398 लोगों के परिजनों के आंसू पोछने वाला देश में कोई नहीं है।
विदेशों में लोग बाघों को इस तरह पालते हैं
पूंजीवाद व साम्राज्यवाद ने देश-दुनिया के पर्यावरण को बरबाद करने के काम किया है। अब पर्यावरण बचाने के लिए इसकी कीमत आम जनता से वसूली जा रही है। दुनिया व देश में बाघों का संरक्षण होना चाहिए इससे किसी का इंकार नहीं है। परन्तु यह संरक्षण इंसानों के मारे जाने की शर्त पर नहीं होना चाहिए। इंसान और जानवर में से किसी एक को चुनना है तो हमेशा इंसान को ही चुना जाना चाहिए।
बाघ और इंसान में से पहले इंसान का बचाया जाना चाहिए, परन्तु हमारे देश में जंगली जानवरों से इंसानों की सुरक्षा करने की जगह हर्ष-उल्लास मनाया जा रहा है। वे लोग जो जंगलों व ग्रामीण जीवन से दूर नगरों के एसी बंगलों में रहते हैं, वे जनता को पर्यावरण व बाघ बचाने का पाठ पढ़ा रहे हैं
हिन्दी वैब पत्रिका ‘जनज्वार’ से साभार