प्रमोद साह अशोज का महीना और रामलीलाओं का सीजन जब भी आता है एक अजीब सा कवमवाट आज भी लग जाता है। कवमवाट मतलब वही जिसे आप लोग नॉस्टैल्जिया कहते हैं। यह 80 का दशक था, जब हम बच्चे से लड़के हो रहे... Read more
चारु तिवारी फेसबुक कभी-कभी हमारे जीवन का प्रतिबिंब बन जाता है। इसमें दिखाई देने लगता अपना सुखद अतीत। एक माध्यम ही तो है फेसबुक। संवेदनाएं अपनी हैं। यादें भी अपनी। पहले कभी कोई वर्षो बाद मिलत... Read more
विनीता यशस्वी कुमाऊं अंचल में रामलीला के मंचन की परंपरा का इतिहास लगभग 160 वर्षों से भी अधिक पुराना है। यहाँ की रामलीला मुख्यतः रामचरित मानस पर आधारित है जिसे गीत एवं नाट्य शैली में प्रस्तुत... Read more