ललित मौर्य ‘डाउन टू अर्थ’ से साभार हम माने या न मानें प्रकृति से हमारे जुड़ाव की अंतिम कड़ी आदिवासी या वो मूल निवासी हैं, जो आज भी प्राकृतिक धरोहर को संजोए रखने में कामयाब रहे हैं। लेकिन कहीं... Read more
महेश पुनेठा आज हर किसी की जुबां में कल शाम हुई बारिश के किस्से हैं। जहां भी दो लोग मिल रहे हैं,उनकी बातचीत के बीच कल की बारिश बरस पड़ रही है। कल शाम 4 बजे से लगभग 2 घंटे तक बारिश होती रही। इ... Read more
दयानिधि ‘डाउन टू अर्थ’ से साभार अध्ययन में कहा गया है कि, भारत में आक्रामक पौधों की प्रजातियों ने 22 प्रतिशत प्राकृतिक आवासों पर कब्जा किया है। यहां इनके 66 प्रतिशत प्राकृतिक आवासों तक पहुंच... Read more
शुचिता झा ‘डाउन टू अर्थ’ से साभार यह किसी भी प्रजाति के लिए आसान नहीं है कि वह उन मूल प्रजातियों से बेहतर प्रदर्शन करे जो पहले से ही स्थानीय परिवेश के अनुकूल हों। लेकिन, सजावटी झ... Read more
केशव भट्ट बूढ़े हो चुके अपने जिंदा शरीर के लगभग साठेक किलो वजन को साथ लिए वो हर पल कहीं न कहीं धरती के सीने में चारेक दसक से चौड़ीदार वृक्षों को रोपने में लगे रहते हैं. इसके साथ ही सूख रहे न... Read more
सुसैन चाको व ललित मौर्या हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन के चलते हिल स्टेशनों पर दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ ही पर्यटन के लिए जिस तरह से इस क्षेत्र में भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है वो अपने आप... Read more
गिरिजा पांडे पिछले कुछ वर्षों में पहाड़ों में कीड़ाजड़ी की काफी चर्चा हुई है। उच्च हिमालय के कतिपय ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने में इसने अहम् भूमिका निभाई है। हिमालयी ‘गोल... Read more
विनोद पांडे आज संसार भर में पर्यावरण का संरक्षण करने की मुहिम चली है क्योंकि मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण इस सीमा तक बिगड़ चुका है कि आने वाले समय में पर्यावरण असंतुलन से पृथ्वी पर हर प्रकार... Read more
ललित मौर्य हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि वित्तीय संकट की वजह से वनों के बढ़ते विनाश की दर में करीब 36 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। अपने इस अध्ययन में वन... Read more
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला भारत में पक्षियों की आबादी बहुत तेजी से गिर रही है। कई प्रकार की जातियों पर संकट खड़ा हो गया है। गिद्धों की बात करें तो वे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं। ऐसे म... Read more