पंकज कुशवाल साल था 1844 और मार्च का महीना। गंगोत्री धाम समेत पूरा उपला टकनौर बर्फ की चादर ओढ़े था। मां गंगा की भोग मूर्ति अपने शीतकालीन प्रवास मुखबा में थी। जिसे कुछ ही हफ्तों में अक्षय तृतीय... Read more
पंकज कुशवाल साल था 1844 और मार्च का महीना। गंगोत्री धाम समेत पूरा उपला टकनौर बर्फ की चादर ओढ़े था। मां गंगा की भोग मूर्ति अपने शीतकालीन प्रवास मुखबा में थी। जिसे कुछ ही हफ्तों में अक्षय तृतीय... Read more
All rights reserved www.nainitalsamachar.org