कमलेश जोशी
जोशीमठ दरकने के मुहाने पर खड़ा है. पूरा जोशीमठ इस ठिठुरती ठंड में दिन भर सड़क में आंदोलन करता है और रात में मशालें हाथ में थामे सरकार को जगाने की कोशिश कर रहा है. सरकार बहादुर को सत्तर के दशक में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट समझाती रही कि जोशीमठ जैसे अति-संवेदनशील जगह पर अनियंत्रित विकास जोखिम भरा हो सकता है लेकिन सरकार बहादुर आपका विकास किये बिना मानती कहाँ है. भूगर्भ वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता समय-समय पर सरकारों को आगाह करते रहे कि बेतरतीब ब्लास्टिंग कर डैम, टनल, बहुमंज़िला इमारतें मत बनाइये लेकिन जनता को विनाश के रूप किया जा रहा विकास शुरुआती तौर पर बहुत आकर्षित करता है और जब बात अपने ही घर पर पड़ रही दरार के रूप में आ जाती है तो उसकी नींद खुलती है कि हमें ऐसा विकास नहीं चाहिये.
जोशीमठ को लेकर ज़मीनी स्तर पर सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती लोगों को वर्षों से आगाह करते रहे, सरकार और प्रशासन को ज्ञापन सौंपते रहे लेकिन बिना सड़क पर उतरे सरकार बहादुर ने आजतक किसी की सुनी है. रैणी आपदा ने ताबूत में आख़िरी कील ठोक दी और आज चाहकर भी जोशीमठ को बचा पाना मुश्किल है. सोचिये सरकारी विकास के नाम पर विनाश को दावत दी जाए और आपको अपना ही घर ख़ाली करना पड़े तो कितना दुख होता है. लेकिन हमारा दुख दर्द अब सरकारों और धर्म विशेष के हिसाब से उठता-बैठता है. बुलडोज़र कल्चर और घरों को सेकेंड में ज़मींदोज़ कर दिये जाने वाली संस्कृति के पक्षधर तमाम लोग जोशीमठ पर मौन हैं और हल्द्वानी में 4000 से ज़्यादा परिवारों को उजाड़ दिये जाने के आदेश के पुरज़ोर समर्थक. असंवदेनशीलता का आलम यह है कि हर मसले पर हम धर्म विशेष का एंगल खोजकर ज़हर उगलने लगते हैं और जब जोशीमठ जैसा कुछ होता है तो उसे कुदरत का क़हर बोलकर सरकार बहादुर के पक्ष में खड़े हो जाते हैं.
जोशीमठ बद्रीनाथ धाम का गेटवे है और इस ऐतिहासिक शहर का ज़मींदोज़ हो जाना हिमालय में विनाश की पहली घंटी है. केदारनाथ, बद्रीनाथ, नैनीताल, मसूरी जैसे गंतव्य में किया गया अनियंत्रित विकास उन्हें दूसरा जोशीमठ बनाने की तरफ़ अग्रसर है. गोपेश्वर, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, उत्तरकाशी जैसे शहर भी टाइम बम पर बैठे हैं और कब फट जाएँगे कोई नहीं जानता. जोशीमठ में की गई ब्लास्टिंग, टनलों का जाल और बिजली उत्पादन के लिए बनाए गए बाँधों का परिणाम आज हम देख रहे हैं. क्या करेंगे आप ऐसे विकास का जो आख़िर में आपका ही घर ज़मींदोज़ कर दे. आज आप ऑलवैदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, सड़क की दूरी कम करने के लिए बन रही टनलों के क़सीदे गढ़ रहे होंगे लेकिन आप उत्तराखंड हिमालय की प्रकृति से बिल्कुल अनभिज्ञ है. हिमालय दुनिया के तमाम पहाड़ों में सबसे नया है जो आज भी बन रहा है. उत्तराखंड हिमालय का हिस्सा सबसे नाज़ुक और भंगुर है जिसकी वहन क्षमता से अधिक हम उस पर दबाव डाल रहे हैं जिसका परिणाम जोशीमठ के रूप में हमारे सामने है.
उत्तराखंड भूकंप के अतिसंवेदनशील पाँचवे जोन में आता है. सोचिये अगर 4-5 का भूकंप भी उत्तराखंड में आ जाए तो दरार लिये जोशीमठ के इन तमाम घरों का क्या होगा? विकास की आवश्यकता किसे नहीं होती लेकिन विकास नियंत्रित व सतत होना चाहिये न कि बेतरतीब. सरकारों से सवाल पूछने की हिम्मत जुटाइये. अगर सरकार के साथ खड़े होकर आपको लग रहा है कि सरकार आपके साथ खड़ी रहेगी तो जोशीमठ का हाल देख लीजिये. यहाँ के लोगों को भी यही लगता था कि सरकार सिर्फ़ इनके हिसाब से चल रही है लेकिन आज जब इनको सरकार की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब सरकार बहादुर इतनी देर से सुध ले रही है कि वो सुध जोशीमठ को दरकने से बचाने से ज़्यादा लोगों को फ़िलहाल के लिए सुरक्षित जगहों पर विस्थापित करने तक रह गई है.
याद रखिये पहाड़ रहेंगे तो ही उत्तराखंड का अस्तित्व रहेगा. पहाड़ ज़मींदोज़ होंगे तो उत्तराखंड खुद-ब-खुद ज़मींदोज़ हो जाएगा. तो राजनीति छोड़िये और जोशीमठ व हल्द्वानी दोनों जगह रह रहे उत्तराखंडवासियों के हक़ में आवाज़ बुलंद कीजिये.
कभी गिर्दा लिख गए थेः
एक तरफ़ बर्बाद बस्तियाँ-एक तरफ हो तुम
एक तरफ़ डूबती कश्तियाँ-एक तरफ हो तुम
एक तरफ़ हैं सूखी नदियाँ-एक तरफ हो तुम
एक तरफ़ है प्यासी दुनिया-एक तरफ हो तुम
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी
तुम तो पानी के व्यापारी
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी
सारा पानी चूस रहे हो, नदी समंदर लूट रहे हो
गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो
उफ़!!! तुम्हारी ये ख़ुदगर्ज़ी, चलेगी कब तक ये मनमर्ज़ी
जिस दिन डोलेगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जाएँगे, ख़ाली रौखड़ रह जाएँगें
बूँद-बूँद को तरसोगे जब
बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
दिल्ली-देहरादून में बैठे योजनकारी-तब क्या होगा?
एक तरफ़ बर्बाद बस्तियाँ-एक तरफ हो तुम
एक तरफ़ डूबती कश्तियाँ-एक तरफ हो तुम
2 Comments
mayankuniyal6@gmail.com
👏👏👏👏👏
Raman Kattal
We can see the same condition in SHIMLA, HIMACHAL where without taking care of nature many buildings have been created …..Renown SCIENTISTS, ENVIRONMENTALISTS have warned that SHIMLA is in danger and it cannot tolerate more weight ….