महान पर्यावरण विद् श्री सुन्दर लाल बहुगुणा 95 बरस के हो गये हैं । यह एक ओर उनको मंगलकामना देने का तो है ही साथ ही उस पूरी यात्रा को गहन तरह से सोचने का भी है जो अमिट है । विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन ने पर्यावरण को नये मार्ग और दर्शन दे दिये। पेड़ माने टिम्बर नही बल्कि मिट्टी पानी और बयार.. यह बात बहुत सार्थक है जो उन्होने कही और संघर्ष किया और एक नया अध्याय जोड़ दिया।
न जाने कितने लोगो ने संघर्ष किया। गौरादेवी से लेकर चंडीप्रसाद भट, शेखर पाठक, भवानी भाई, धूमसिह नेगी, कुंवर प्रसून, विजय जड़धारी, प्रताप शिखर, राजीव लोचन साह, शमशेर सिह बिष्ट, घनश्याम शैलानी से लेकर असंख्य लोग जुड़े ।
मेरे कुछ संस्मरण हैं उनके साथ । एक तो जब बडियारगढ मे बहुगुणा जी ने उपवास किया था। काफी दिनो बाद उन्हें देहरादून जेल मे लाया गया। एक स्कूटर रिक्शा म मैं और लोककवि घनश्याम शैलानी जनजागरण करते हुए पूरे शहर के चप्पे चप्पे में गये। फिर जेल मे ही बहुत से लोग एकत्र हुए इसमें महान शैलीकार पन्डित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर जी की अधायक्षता मे बैठक हुई। जेल में एक बार जब हेंवल घाटी में पेड़ कटाई हो रही थी तो देहरादून में हमारे पास टैलीग्राम आया। मैं, मेरी माजी रमा शर्मा, बहन रेखा, रंजना, रीता जाजल होते हुए वहां पहुंचे थे ।
मैंने अपने घर पर उनसे लम्बी बात चीत की थी। वह मेरे सम्पादन में छपी पुस्तक ‘पर्यावरण और वन संरक्षण: समस्या और समाधान’ तक्षशिला प्रकाशन दिल्ली से छपी है। उस समय उन्होंने हमारे पिता जी स्वतंत्रता सेनानी कवि श्री राम शर्मा प्रेम की प्रसिद्ध कविता श्री देव सुमन भी सुनाई थी और साथ ही याद है जब टिहरी बांध विरोध मे सुन्दर लाल बहुगुणा जी गंगा कुटी बना कर वहीं बैठ गये थे तो हम वहां पहुंचे थे। उनकी एक बात मैं कभी नही भूलता कि संघर्ष प्रत्यक्ष होना चाहिये और मार्ग वह हो जो हमें गांधी ने बताया था।
अनवरत संघर्ष के प्रतीक पुरुष श्री सुन्दर लाल बहुगुणा को प्रणाम।
फोटोग्राफ अमर उजाला से साभार