प्रमोद साह
सुभाष चंद्र बोस जिनका जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था। जो 18 अगस्त 1945 को रहस्यमय परिस्थितियों में इस संसार को विदा कर गए. आज उनकी यह 125 वी जयंती है। सुभाष चंद्र बोस भारतीय राजनीति के आकाश में उस दौर में एक सितारे के रूप में चमके जब यहां महात्मा गांधी का प्रकाश था। यह सुभाष चंद्र बोस के प्रतिभावान व्यक्तित्व का ही कमाल था कि वह महात्मा गांधी का लगातार सम्मान तो करते रहे लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी की छाया से मुक्त होकर अपनी अलग पहचान भी बनाई।
बचपन से विलक्षण प्रतिभा के धनी सुभाष चंद्र बोस ने स्कूली शिक्षा से ही अपनी प्रतिभा का परचम लहरा दिया था। स्कूली शिक्षा के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में दर्शनशास्त्र से बी.ए. ऑनर्स करने के दौरान विवाद के बाद कॉलेज छोड़ दिया लेकिन पढ़ाई जारी रखी। वह बंगाल रेजीमेंट में भर्ती के लिए गए पर नजरी दोष के कारण असफल हुए। विवेकानंद और अरविंद घोष के क्रांतिकारी विचारों का सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व में पूरा प्रभाव था।
उन्होंनें 1921 में आईसीएस परीक्षा चैथी रैंक के साथ पास की लेकिन 1921 समाप्ति तक सिविल सर्विसेज से त्यागपत्र भी दे दिया। 1921 में ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के संदर्भ से लखनऊ में महात्मा गांधी से मुलाकात की और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए। राष्ट्रीय स्तर पर सुभाष ने शीघ्र ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। ‘साइमन गो बैक’ के नारे के मुख्य सूत्रधार जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ही थे। सुभाष के नेतृत्व में कोलकाता में साइमन का जोरदार विरोध हुआ था। जब 1929 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में संविधान के लिए 8 सदस्यों की कमेटी का गठन हुआ तो सुभाष चंद्र बोस उस समिति के सदस्य रहे। पूर्ण स्वराज्य की मांग पर जोर देते हुए जनवरी 1930 के लाहौर अधिवेशन में महात्मा गांधी की अनिच्छा के बाद भी पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया।
1931 में महात्मा का अंग्रेजों से भारतीय संघर्षरत युवाओं की रिहाई के मामले में एक समझौता हुआ जिसमें सुभाष तो रिहा हुए लेकिन भगत सिंह की रिहाई के लिए अंग्रेज तैयार नहीं थे। महात्मा गांधी पर इस समझौते के उल्लंघन के लिए सरदार पटेल ने दबाव बनाया लेकिन महात्मा तैयार नहीं हुए। भगत सिंह की फांसी के बाद फिर सुभाष और गांधी के रिश्ते मधुर नहीं रहे।
सुभाष चंद्र बोस आजादी के लिए अंग्रेजों पर आंदोलन के दबाव के अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव पर भी काम करना चाहते थे। इसके लिए वह 1936 में ही मुसोलिनी से मिले उसके बाद हिटलर से भी उनका संपर्क बना। 1938 में हरीपुरा कांग्रेस के सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष चुने गए तब यहां योजना आयोग की नीव रखी गई जिसके प्रथम अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू मनोनीत हुए। 1939 में युद्ध के बादल गहराने लगे तब सुभाष चंद्र बोस पूर्व कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन महात्मा गांधी को यह मंजूर न था।
रवीन्द्र नाथ टैगोर सहित कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने बीच-बचाव का प्रयास किया। पट्टाभी सीतारामय्या और सुभाष चंद्र बोस के बीच चुनाव हुआ, गांधी के ना चाहते हुए भी सुभाष चंद्र बोस 1377 के मुकाबले 1580 यानी 203 मतों से विजई हुए। गांधी ने इसे खुद की हार बताया तब कार्यकारिणी के 10-12 सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया। तब बीमार सुभाष चंद्र बोस ने आजादी के संघर्ष के हित में खुद कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। यह भारत के इतिहास में एक निर्णायक घटना रही। जवाहरलाल नेहरू सुभाष चंद्र बोस के समर्थक थे लेकिन सरदार पटेल, उनके बड़े भाई बिट्ठल पटेल द्वारा अपनी समस्त संपत्ति सुभाष चंद्र बोस को दान दिए जाने के कारण नाराज थे। सरदार पटेल वसीयत के इस मुकदमे को जीत गए थे।
विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव की रणनीति पर काम करना सुभाष चंद्र बोस ने प्रारंभ कर दिया था। 4 जुलाई 1943 को सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर बने। उसके बाद दिल्ली कूच का नारा दिया। अक्टूबर 1943 में जर्मनी के सहयोग से सुभाष चंद्र बोस ने भारत को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया जिसे जर्मनी फिलिपींस आदि 11 देशों का समर्थन प्राप्त हुआ। अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक कोहिमा में जापानी सेनाओं के सहयोग से एक बड़ा युद्ध लड़ा गया जिसमें जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा। यह सुभाष चंद्र बोस का अंतरराष्ट्रीय दबाव था की अंग्रेजों को भारत को आजाद करने की दिशा में क्रिप्स और कैबिनेट मिशन के जरिए आजादी की रूपरेखा तय करनी पड़ी। सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित 1946 के नौसेना विद्रोह ने इस जंग में आखिरी मुहर लगाई।
हालांकि 18 अगस्त 1945 को एक कथित विमान दुर्घटना के बाद सुभाष चंद्र बोस फिर कभी नहीं दिखाई दिए लेकिन उनकी मौत को लेकर रहस्य आज भी बना हुआ है उनके परिजन उनकी रूस में नजरबंद रहने की संभावना जताते हैं और सरकार से इस पर हस्तक्षेप की मांग करते हैं। जो भी हो धूमकेतु की तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में धूम मचाने वाले सुभाष चंद्र बोस को उनके योगदान के लिए राष्ट हमेशा हमेशा याद करेगा