राजीव लोचन साह
पूरे देश में जे एन यू को लेकर बहस चल रही है। पक्ष और विपक्ष में जो बयानवीर दिख रहे हैं, विशेष कर सोशल मीडिया में, उनमें अल्मोड़ा के भी कम नहीं हैं। मगर इन लोगों को अपने शहर में स्थित सोबन सिंह जीना परिसर (कुमाऊँ विश्वविद्यालय) अल्मोड़ा की दुर्गति नहीं दिखाई दे रही है।
आज तीसरे पहर कैम्पस पहुँचा तो अध्यापिकाओं का एक झुण्ड वनस्पति विज्ञान विभाग के पास उदास खड़ा था। उनसे पूछा कि 15 नवम्बर को जो घटा और जो अब घट रहा है, क्या उससे आप सन्तुष्ट हैं ? वे चुप रहीं। उन्हें आश्वस्त किया कि नहीं, आपसे नाम नहीं पूछूँगा, न ही कहीं आपके नामों का जिक्र करूँगा। तब वे सब चहकने लगीं। सन्तुष्ट क्या होना ? अब तो कोई छात्र नेता भी हमसे बदसलूकी कर सकता है। क्या हमारा कोई आत्म सम्मान बचा रह गया है ? नौकरी करनी है, सो कर रहे हैं।
नैनीताल से एक तथाकथित जाँच समिति आयी थी। ये सब उसी की प्रतीक्षा में थीं। ये तो नहीं पहचानती थीं, मगर जाँच समिति के चेहरे तो जाने-पहचाने थे। उन्होंने मुझे देखा तो थोड़ा अप्रतिभ हुए। ये निगोड़ा यहाँ कैसे ? वैसे सब मुस्कुराते रहे। “आजकल जे एन यू के अलावा एस एस जे ही तो चर्चा में है। मैंने सुना कि कोई हाई पॉवर कमेटी आ रही है तो दर्शन करने चला आया,” मैंने उनकी आँखों से झाँकते सवाल के जवाब में कहा, “तो कब तक दे रहे हैं रिपोर्ट ?”
“रिपोर्ट तो दे दी। इस बार तो हम यहाँ सौहार्द स्थापित करने आये हैं,” समिति के एक सदस्य केवल सती ने बताया।
सती जी कई दशकों के संघर्ष के बाद विवि की कार्य परिषद में चुने जाने की अपने जीवन की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा को पूरी करने में सफल रहे हैं। पहले कांग्रेस में थे। अब न जाने कहाँ हैं। बाकी भी डी एस बी परिसर नैनीताल के विद्वान प्राध्यापक थे। प्रो. एस पी एस मेहता, प्रो. बी. एस. बिष्ट आदि। एस एस जे परिसर के नये निदेशक जगत सिंह को मैं पहले से जानता नहीं था। वे मुझसे परिचित थे। बहुत अदब से पेश आये। मगर अनामंत्रित रूप से मुझे सामने पाकर उन्हें अपने मेहमानों को लंच पर ले जाने की हड़बड़ी होने लगी।
जगत सिंह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में होते थे। शायद अब भी हों। छात्र संघ अध्यक्ष दीपक उप्रेती, जो 15 नवम्बर की घटना के हीरो थे और अब पूरे कुमाऊँ के छात्रों के हीरो बन गए हैं, भी अभाविप से ही ताल्लुक रखते हैं।
कैसे हो सौहार्द ?
16 नवम्बर तक परिसर निदेशक रहे और उसके बाद छात्रों की माँग पर वि वि प्रशासन द्वारा खलनायक बना कर ‘अवकाश’ पर भेज दिए गए प्रो. आर एस पथनी की दाद देनी पड़ेगी कि वे भयभीत नहीं हैं। 21 सितंबर से हर कक्षा में पंखे, हर शिक्षक के लिए कॉलर माइक, वाटर प्यूरीफायर, डस्ट बिन आदि को लेकर छात्र आन्दोलन शुरू हुआ। सेकंड, थर्ड, फोर्थ सिमेस्टर के अनुत्तीर्ण छात्रों को पुनः परीक्षा देने का मौका देने की माँग ज्यादा जटिल थी।
वह प्रो पथनी के हाथ की बात भी नहीं थी। 40 पंखे वे अपने स्तर से एक डेली वेजेज के इलेक्ट्रिशियन से लगवा भी चुके। बाकी के लिए आंकलन, बजट, टेंडर की औपचारिकताएं होने में समय लगना ही था। दीपक उप्रेती कन्हैया कुमार की तरह देशद्रोही तो हैं नहीं कि तार्किक ढंग से अपनी बात कहें। वे देशभक्त हैं और बदतमीजी से राजनीति में आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। हर अध्यापक को खुल कर गाली देना उनकी संस्कृति का हिस्सा है।
आन्दोलन बढ़ता गया। अंततः 15 नवम्बर को जब छात्रों ने परीक्षा प्रक्रिया में अड़चन डालने की कोशिश की तो पथनी उन्हें समझाने पहुँचे। छात्र तो क्या समझते, छात्र संघ अध्यक्ष ने प्रो. पथनी पर पेट्रोल उँडेल कर उन्हें जला डालने की कोशिश की। सौभाग्य से कोई दुर्घटना नहीं हुई। मगर पथनी ने पुलिस में तहरीर देने का दुस्साहस कर डाला। यहाँ तक तो ठीक था, मगर आश्चर्यजनक यह हुआ कि जिस पार्टी की सरकार है, उसी के छात्र संगठन के सदस्य को गिरफ्तार करने की हिमाकत पुलिस ने भी कर डाली। इस बीच भाँति-भाँति के नेताओं और जन प्रतिनिधियों के फोन प्रो. पथनी को आते रहे कि वे अपनी तहरीर वापस ले लें। सबसे उन्होंने यही कहा कि एक नौजवान की जिंदगी खराब करने की उनकी कोई इच्छा नहीं।
यदि उप्रेती लिखित में माफी माँग कर आगे अपना आचरण ठीक रखने का आश्वासन दें तो वे तहरीर वापस ले लेंगे। उप्रेती ने लिखित में माफी मांगी भी। मगर तब तक पुलिस उन्हें जेल भेज चुकी थी।
अगले दिन दीपक उप्रेती इक्कीसवीं सदी के कुमाऊँ के सबसे बड़े छात्र नेता थे। सारे कुमाऊँ के छात्र उनकी रिहाई की माँग के लिए विद्यालय बन्द करा रहे थे। ‘अवकाश’ पर भेज दिए गए प्रो. पथनी के पक्ष में बोलने के लिये कोई विपक्षी दल का नेता भी नहीं था। गुस्सा था तो सिर्फ एस एस जे परिसर के अध्यापकों को, जिन्होंने पथनी के साथ हुए अन्याय के विरोध में अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। 40 प्रशासनिक पद अभी खाली ही हैं।
उप्रेती को जमानत मिलनी थी। मिली। प्रो. पथनी द्वारा किया गया उनका निलंबन नये परिसर निदेशक जगत सिंह बिष्ट ने बाकायदा फूल मालायें पहना कर खत्म किया। एक दशक के बाद वे शायद उत्तराखंड सरकार में मंत्री होंगे। फ़िलहाल उदासी में घिरे अध्यापक भी वापस अपने पदों पर आयेंगे ही। उनके पास कोई नेतृत्व ही नहीं है। नैनीताल की शिक्षक बिरादरी इस घटना से मुँह फेरे हुए है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अब तक के इतिहास में सबसे काबिल कुलपति (उत्तराखंड में रामपुर-मुरादाबाद जोड़ देने का उनका क्रांतिकारी सुझाव आपको याद होगा) के आने से वे खुशी से लहलहा रहे हैं।
तो सोबन सिंह जीना परिसर में सौहार्द भी पनपेगा और खूब पनपेगा। हाँ, पढ़ाई यहाँ न होती थी और न आगे होगी। आखिर इसे जे एन यू जो क्या बनना है!
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।
One Comment
सुशील कुमार जोशी
चलिये खुला कहीं किसी पोटली का आधा सच ही सही 🙂 साधुवाद