योगेश भट्ट
हाल ही में वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर सर्विस ने भारत की क्रेडिट रेटिंग स्थिर से घटाकर ऋणात्मक कर दी है । जिसका कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती, ग्रामीण परिवारों पर वित्तीय दबाव, रोजगार सृजन में कमी, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में नगदी के संकट बताया गया है । औद्योगिक सुस्ती के चलते देश भर में बिजली खपत में बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है । अक्टूबर माह में यह गिरावट 13.2 थी जो पिछले बारह सालों की सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है । ईधन की मांग भी पिछले छह सालों के निचले स्तर पर है । महाराष्ट्र और गुजरात जैसे बड़े औद्योगिक राज्यों में ईधन की मांग में बड़ी गिरावट आ रही है । उपभोक्ता मांग में कमी के चलते औद्योगिक उत्पादन में पांच फीसदी से अधिक की गिरावट आयी है । आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती का असर कारों से लेकर बिस्किट तक की बिक्री पर अब साफ नजर आने लगा है । राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वेक्षण के मुताबिक चार दशक में पहली बार उपभोक्ता खर्च में गिरावट दर्ज की गयी है।
पिछले दिनों जो जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के जो आंकड़े सामने आए हैं वह तो और भी चिंताजनक हैं। देश की विकास दर घटकर महज 4.5 फीसदी रह गयी है, जो पिछले साढ़े छह साल का सबसे निचला स्तर है । जीडीपी के इन नए आंकड़ों पर उद्योग जगत की चुप्पी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान का समर्थन कर रही है कि कारोबारी खौफ में जी रहे हैं । बजाज ग्रुप के चेयरमैन राहुल बजाज तो खुद खुलकर ऐसा कह भी चुके हैं, जिस पर इन दिनों सियासत भी गर्म है । कुल मिलाकार हालात गंभीर है, ऐसा अब देश की सरकार की मानने लगी है । मगर उत्तराखंड में राज्य सरकार की मानें तो देश भर में गहरा रहे आर्थिक और औद्योगिक संकट का यहां कोई असर नहीं है । सरकार करोड़ों रुपया खर्च कर आंकड़ों के साथ इस ‘चमत्कार’ के एडवरटोरियल जारी कर रही है । सरकार के मुताबिक तो उत्तराखंड में निवेश की बाढ़ आयी हुई है, हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है । हालांकि सरकार जैसा कह रही है वैसा संभव भी नहीं है । सरकार आंकड़ों में चमत्कार दिखाकर हकीकत पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है ।
हकीकत यह है कि पूरे देश की तरह उत्तराखंड की स्थिति भी अच्छी नहीं है । जिन आंकड़ों का सरकार करोड़ों रुपया खर्च कर प्रचार कर रही है, उन पर यकीन करना मुश्किल है । मुश्किल इसलिए नहीं कि बजाज समूह के चेयरमैन राहुल बजाज ने कुछ कहा है या इसलिए भी नहीं कि अक्सर चुप रहने वाले आर्थिक व वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तेजी से गिरती अर्थव्यवस्था के घातक परिणामों की ओर इशारा किया है । उत्तराखंड सरकार के आंकड़ों पर यकीन इसलिए नहीं होता क्योंकि वह प्रथम दृष्टया ही व्यवहारिक नजर नहीं आते । सरकार के आंकड़ों में जबरदस्त विरोधाभास है । जरा गौर कीजिये, पशुपालन सेक्टर में तीन मेगा प्राजेक्टों पर 3850 करोड़ का निवेश् होता है और मात्र 97 लोगों रोजगार मिलता है । दूसरी ओर सूचना प्रौद्योगिकी के सेक्टर की छह परियोजनाओं में पशुपालन से भी कम 3249 करोड़ का निवेश होता है और इसमें 12630 लोगों को रोजगार मिलता है। यही नहीं सूचना प्रौद्योगिकी से ज्यादा 3710 करोड़ का निवेश उद्योग की 33 परियोजनाओं में होता है और इसमें 8147 लोगों को रोजगार मिलता है । सरकार के यह आंकड़े मेगा परियोजनाओं के हैं, अब बताइये ऐसा कैसे संभव है कि किसी सेक्टर में 3850 करोड़ का निवेश होने पर मात्र 97 लोगों को रोजगार ही मिल पाए ? और अगर इसे सच मान भी लिया जाए तो फिर इस पर यकीन कैसे किया जाए कि किसी सेक्टर में 3249 करोड़ का निवेश होने पर 12630 लोगों को रोजगार मिला और 3710 करोड़ के निवेश पर मात्र 8147 लोगों को रोजगार मिला । सरकारी आकंड़ों की यह तो एक बानगी भर है जिनका सरकार अपने विज्ञापनों में प्रचार कर रही है ।
जिन सेक्टरों में सरकार बड़े निवेश और रोजगार के दावे कर रही है उनकी असलियत क्या है यह तो सरकार और आंकड़े तैयार करने वाले सरकारी अफसर ही जानें, मगर इसमें कोई शक नहीं कि राज्य में औद्योगिक निवेश और विकास के आंकड़ों में बड़ा झोल है । देखिये, सरकार ने निवेश संबंधी एमओयू के आंकड़ों में सर्वाधिक 31 हजार 543 करोड़ के एमओयू ऊर्जा सेक्टर में हुए दर्शाए हैं । इधर जब एमओयू के क्रियान्वयन संबंधी आंकड़ों पर नजर दौड़ाते हैं तो पता चलता है कि इस सेक्टर में अभी तक न तो एक भी रुपए का निवेश हुआ और न ही कोई रोजगार मिला । जिस सेक्टर में सबसे अधिक एमओयू हुए अगर उसकी यह स्थिति है तो कैसे यह मान लिया जाए कि सरकार सही तस्वीर दिखा रही है ? इधर सरकार पिछले कुछ महीनों से तकरीबन हर मंच पर यह प्रचार कर रही है कि प्रदेश में निवेश की बाढ़ आ गयी है । कहा जा रहा है कि साल भर के अंदर राज्य में कुल 397 प्रोजेक्टों पर 18 हजार करोड़ का निवेश हुआ है । इन सभी पर काम शुरू हो चुका है और 47 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिला है । जबकि वहीं सरकार के ही आर्थिक विकास, बेरोजगारी और राजस्व से जुड़े आंकड़े इन दावों को झूठला रहे हैं ।
हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार राज्य में निवेश की कोशिश नहीं कर रही । सच्चाई यह है कि सरकार तो निवेश के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है । सरकार को किसी भी तरह के निवेश से परहेज नहीं है, सरकार ने सबके लिए दरवाजे खोले हुए हैं । राज्य और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सरकार निवेशकों को रिझाने के लिए राज्य में दो दो बार भू कानून में संशोधन तक कर चुकी है । राज्य में निवेश के लिए कोई सेक्टर विशेष नहीं है, बागवानी से लेकर भांग की खेती तक, मिनिरल वाटर से लेकर शराब प्लांट तक, जैविक खेती से लेकर औद्योगीकरण तक, पावर प्रोजेक्टस से लेकर प्राइवेट युनिवर्सिटी तक, सोलर प्लांट से लेकर साफ्टवेयर इंडस्ट्री, टूरिज्म से लेकर वेलनेस और रियल स्टेट से होम स्टे तक हर सेक्टर में सरकार निवेश लेने के लिए तैयार है । इसके बावजूद तस्वीर वह नहीं जो सरकार दिखा रही है, तस्वीर कुछ और ही है । एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि निवेश के लिहाज से उत्तराखंड भरोसेमंद नहीं रह गया है । सरकार विजन और नीति के मोर्चे पर बेहद कमजोर साबित हो रही है, राज्य की दिशा ही तय नहीं है । राज्य में विकास को जो माडल तैयार हो रहा है उस पर भी सवाल उठ रहे हैं ।
अब रहा सवाल आंकड़ों का, राज्य में अगर निवेश बढ़ रहा है तो राज्य की आर्थिक विकास दर क्यों गिर रही है ? बेरोजगारी दर क्यों बढ़ रही है ? राज्य की ह्यूमन डवलपमेंट रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड में पढ़े लिखे बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है । बेरोजगारी की दर उत्तराखंड में राष्ट्रीय औसत से अधिक है, यहां तकरीबन 18 फीसदी शिक्षित युवा बेरोजगार हैं । स्वरोजगार करने वालों की संख्या में भी पिछले सालों में भारी गिरावट आ रही है । सरकारी आंकड़ों में ही राज्य के कृषि, औद्योगिक और खनन के क्षेत्र में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है, जिसके चलते आर्थिक विकास दर भी तेजी से गिर रही है । जिस तरह सरकार औद्योगिक माहौल का प्रचार कर रही है उस लिहाज से तो ईज आफ डूइंग बिजनेस में उत्तराखंड की रैंकिंग टाप फाइव राज्यों में होनी चाहिए, लेकिन उत्तराखंड ‘ईज आफ डूईंग बिजनेस’ में टाप टेन में भी नहीं है । ईज आफ डूइंग बिजनेस में उत्तराखंड की रैंकिंग सुधर नहीं पा रही है । यह संभव होगा भी कैसे ? राज्य में ईज आफ डूइंग बिजनेस के प्राविधानों को पूरी तरह राज्य में लागू नहीं किया गया है । उद्यमियों की मानें तो प्रदेश में औद्योगिकीकरण का माहौल ही नहीं है । समस्याओं का समाधान यहां आसानी से नहीं होता, फैसले लेने में इतनी देर होती है कि निवेशक परेशान हो जाता है ।
बहरहाल सरकार आंकड़ों से खेलते हुए जिस तरह एडवरटोरियल के रूप में प्रचार कर रही है, वह सही नहीं है । दुख तो तब होता है जब एक ओर समाचार के संपादकीय पृष्ठ पर यह ‘गांधी दर्शन’ प्रकाशित होता है कि “समाचार पत्रों और मालिकों पर दूषित विज्ञापनों का अनष्टि हावी हो रहा है.. समाचार पत्रों की स्वतंत्रता ऐसा कीमती अधिकार है जिसे कोई भी देश छोड़ना नहीं चाहेगा.. मैं यह जानता हूं कि अनीति से भरे हुए विज्ञापनों की मदद से समाचार पत्रों को चलाना उचित नहीं है.. मैं यह भी मानता हूं कि विज्ञापन यदि लेने ही हो तो उन पर समाचार पत्रों के मालिकों और संपादकों की तरफ से बड़ा सख्त चौकीदार होना आवश्यक है..मेरा आग्रह है कि विज्ञापनों सत्य का यथेष्ट ध्यान रखा जाना चाहिए..हमारे लोगों की एक आदत यह है कि वे पुस्तक या अखबार में छपे हुए शब्दों को शास्त्र वचनों की तरह सत्य मान लेते हैं, इसलिए विज्ञापन की सामग्री तैयार करने में अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता है ” और दूसरी ओर उसी समाचार पत्र में सरकार के ‘चमत्कारी आंकड़ों’ वाले विज्ञापन रूपी एडवरटोरियल प्रकाशित होते हैं ।