राजीव लोचन साह
उत्तरकाशी में चिन्यालीसौड़ के पास सिल्क्यारा की निर्माणाधीन सुरंग में 17 दिन से फँसे 41 मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इन मजदूरों को पूरा सम्मान और मुआवजा देना तथा रेस्क्यू के काम में अहर्निश जुटी टीम को पुरस्कृत करना देश का फर्ज बनता है। मगर इसके आगे कुछ जरूरी सवाल हैं। चारधाम परियोजना या ऑल वेदर रोड, जैसा कि इसे अब कहा जाने लगा है, की माँग क्या कभी उत्तराखंड की जनता की ओर से की गई थी या यह तानाशाह प्रकृति के एक अहंकारी प्रधानमंत्री के दिमाग का खब्त था। इस परियोजना के एकदम शुरूआती चरण में जब कुछ वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अपनी आपत्ति प्रकट करने तथा इस परियोजना को रोक देने की माँग करने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के पास पहुँचे, तो मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है और वे इस बारे में कुछ भी करने में असमर्थ हैं। इस ड्रीम प्रोजेक्ट का खामियाजा उत्तराखंड की जनता बार-बार आने वाली बर्बादी और तबाही के रूप पिछले कई सालों से निरन्तर देख रही है। सिलक्यारा सुरंग की घटना तो उसका महज एक हिस्सा है। यह सम्पूर्ण परियोजना पर्यावरणीय नियमों को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए बन रही है। 880 किमी. लम्बी इस परियोजना को सख्त पर्यावरणीय जाँच का सामना न करना पड़े, इसीलिये इसे सौ-सौ किमी. से कम के टुकड़ों में बाँट दिया गया। इतनी कम लम्बी सड़कों को पर्यावरणीय प्रभाव आँकलन से छूट मिल जाती है। इसीलिये सिलक्यारा-बड़कोट का यह हिस्सा भी गहन पर्यावरणीय जाँच से बच गया और बगैर इस इलाके की भूगर्भीय परिस्थितियों पर ध्यान दिये यहाँ सुरंग का निर्माण होने लगा। सुरंग बनाने का काम भी हैदराबाद की नवयुग इंजीनियरिंग जैसी एक दागदार कम्पनी को दे दिया गया। सिल्क्यारा की घटना ऐसी न पहली है और न अन्तिम होने जा रही है। गोदी मीडिया में जबर्दस्त हाहाकार के बाद भी ऐसी बुनियादी बातों पर चर्चा करने से बचा जा रहा है।