भक्त दर्शन
गढ़वाल के सर्वप्रथम इंटरमीडिएट, सर्वप्रथम ग्रेजुएट सर्वप्रथम डिप्टी कलेक्टर और सर्वप्रथम गढ़वाली भाषा के पुस्तक प्रकाशक *श्री गोविंद प्रसाद घिल्डियाल* का जन्म 24 मई सन 1870 ईस्वी को श्रीनगर के पास डांग गांव में हुआ था। इनके पिता श्री रवि दत्त घिल्डियाल जिलाधीश की अदालत में नायब सरिश्तेदार थे। यह अल्मोड़े से सन 1889 में इंटरमीडिएट परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। उसके बाद बरेली कॉलेज से सन 1891 में इन्होंने बी ए . परीक्षा सम्मान सहित पास की। विद्यार्थी जीवन से ही यह मेधावी थे। कक्षा में प्राय: सर्वप्रथम रहा करते थे और कई बार उन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
बीए के बाद कुछ दिन उन्होंने वकालत का अध्ययन किया। फिर 1 मार्च 1892 से 22 वर्ष की आयु में उन्होंने सरकारी नौकरी शुरू की। इन्होंने कुछ वर्ष नायब तहसीलदार के पद पर कार्य किया और फिर कुछ वर्षों बाद तराई भाबर के आबकारी इंस्पेक्टर बनाए गए। जून 1906 में यह हल्द्वानी में तहसीलदार नियुक्त हुए। जुलाई 1909 में डिप्टी कलेक्टर बनाकर इनका तबादला मुरादाबाद कर दिया गया वहां यह 7 वर्ष तक रहे। सन 1916 में सीतापुर को स्थानांतरित हुए और वहां 2 वर्ष तक कार्य किया। 1918 में इनका तबादला उन्नाव हो गया और मृत्यु के समय तक यह वही नियुक्त थे। अपनी सरकारी कार्यकाल में इन्होंने सब जगह प्रशंसा पाई।
1911 की जनगणना के दिनों में यह मुरादाबाद में थे। इनके उस समय के कार्य की प्रशंसा युक्त प्रांतीय जनगणना प्रबंधक शासन सुपरिटेंडेंट ने अपनी रिपोर्ट की भूमिका में इस प्रकार की थी ” मैं सबसे पहले और महत्व के साथ गोविंद प्रसाद मुरादाबाद का उल्लेख करता हूं जिन्होंने की बहुत गहरी और विस्तृत छानबीन की और कम से कम 33 जातियों के बारे में रिपोर्ट भेजी उन्होंने मेरे लिए विशेषकर विवाह के प्रत्येक अंग के संबंध की कहावतों की भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण सूची संग्रहित की।”
इनकी उसी खोज एवं विद्वता से प्रभावित होकर ही धुरंधर विद्वान *सर जॉर्ज ग्रियर्सन* की इन पर नजर पड़ी और गढ़वाल व कुमाऊं की बोलियों के संबंध में इन से परामर्श किया और तब उस संबंध में अपने संसार प्रसिद्ध ग्रंथ ” *भारतवर्ष की भाषा संबंधी जांच*( लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया) में उन्होंने लिखा।
असहयोग आंदोलन के दिनों में यह उन्नाव में थे । अपनी योग्यता के कारण जिला अमन सभा के मंत्री नियुक्त किए गए। उस पद पर से इन्होंने असहयोग के विरुद्ध जोरदार कविताएं और लेख लिखे। इसी आशय की एक राजनीतिक पद्यावली का भी इन्होंने प्रकाशन किया। लेकिन इनकी सज्जनता और सद व्यवहार के कारण असहयोगी कार्यकर्ता भी इनसे असंतुष्ट नहीं हुए। उधर सरकार ने सन 1922 में इन्हें राय बहादुरी देकर सम्मानित किया।
बचपन से ही साहित्य की ओर इनकी रूचि थी। बरेली के विद्यार्थी जीवन में गढ़वाल डिबेटिंग क्लब के सभापति और कालेज साहित्य समिति के मंत्री थे। उन संस्थाओं के बाद विवादों में यह उच्च कोटि के भाषण दिया करते थे। वह हिंदी और अंग्रेजी ड्रामों के अभिनय में भी भाग लिया करते थे। इस कारण से इनके सहपाठी इनका विशेष आदर किया करते थे। सरकारी नौकरी में प्रविष्ट होने के बाद इन्होंने उत्कृष्ट पुस्तकों का एक सुंदर बड़ा संग्रह किया और साहित्य सेवा में लग गए।
सर्वप्रथम *संस्कृत हितोपदेश का गढ़वाली भाषा में इन्होंने अनुवाद किया*। वह 5 भागों में पूर्ण हुआ था और डिबेटिंग क्लब अल्मोड़ा में मुद्रित किया गया था। इस अवसर पर *श्री गिरिजा दत्त नैथानी* ने अगस्त सन उन्नीस सौ दो 1902 के गढ़वाल समाचार में लिखा था, संस्कृत हितोपदेश का लल्लू जी लाल ने ब्रज भाषा में राजनीति नाम से अनुवाद किया। श्री घिल्डियाल ने सर्वप्रथम गढ़वाली भाषा में अनुवाद किया यह *गढ़वाली भाषा की सर्वप्रथम छपी पुस्तक है*। भाषा सरल सुखद सहज गढ़वाली है। इस पुस्तक के अतिरिक्त उन्होंने श्री सहदेव घिल्डियाल के सहयोग से *बीरबल का भेती चरित* पुस्तक भी गढ़वाली में लिखी।
हिंदी के प्रति इन्हें गहरा प्रेम था। अंग्रेजी नाटककार शेक्सपियर के ओथेलो का हिंदी में इन्होंने अनुवाद किया था। यह शेक्सपियर सोसाइटी के सदस्य भी थे। फिर गोल्डस्मिथ के उदाहरण का हिंदी अनुवाद उन्होंने “विस्मित योगी” शीर्षक से किया। उसके कुछ अंश गढ़वाल समाचार में धारावाही रूप से निकले थे। हिंदी के प्रमुख समाचार पत्रों ने भी उसे स्थान दिया और इनके पास प्रशंसा पत्र भेजें । बहुत कुछ उसी से प्रेरणा पाकर श्री श्रीधर पाठक ने भी उसी पुस्तक का एकांत वासी योगी शीर्षक से अनुवाद किया तथा बाद में गोल्ड स्मिथ के कतिपय अन्य कार्यों का भी उन्होंने अनुवाद किया।
अनुवाद के बाद इनका हिंदी के अनेक साहित्यकारों से अच्छा परिचय हो गया । विशेषकर प्रसिद्ध कवि श्री श्रीधर पाठक से तो इनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई और इनके साथ इनका अनवरत पत्र व्यवहार भी चलता रहा। गढ़वाली सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध के अवसर पर जो अतुलनीय साहस और रण कौशल प्रदर्शित किया था उसके संबंध में उन्होंने दो पुस्तकें प्रकाशित की। *गढ़वाली राजपूतों की सैनिक सेवा और गढ़वाली ब्राह्मणों की सैनिक सेवा*। इस पुस्तक में इन्होंने ब्रिटिश राज की स्थापना से प्रथम विश्व युद्ध तक गढ़वाली सैनिकों के वीरता पूर्ण कारनामों का विस्तृत वर्णन किया है।
गढ़वाल का एक प्रामाणिक इतिहास लिखने की इन्हें हार्दिक अभिलाषा थी , और इस संबंध में उन्होंने बहुत कुछ सामग्री एकत्रित भी कर ली थी। इस विषय का अध्ययन करके यह ऐतिहासिक विषयों पर भी लेख लिखते रहते थे। उदाहरण स्वरूप 31 जुलाई सन 1920 के गढ़वाली में *मेरी गंगा होली तो मी मां आली* की प्रचलित उक्ति कि इन्होंने मार्मिक व्याख्या की। उस लेख से इनकी ऐतिहासिक विवेचना बुद्धि का पता लगता है । ऐसे ऐतिहासिक विषयों के अतिरिक्त इन्होंने गढ़वाली पखानाे का संग्रह भी किया था, और अन्य विषयों पर भी गढ़वाल के समाचार पत्रों के अतिरिक्त भारत मित्र मनोरमा आदि बाहर के पत्र में भी इनके लेख छपते रहते थे। इनके लेख कभी अपने नाम से कभी गुमनाम और कभी-कभी संपादकीय अग्रलेख की तरह भी प्रकाशित हुआ करते थे । लेकिन इन्होंने अधिकतर *खिलारी राम* और अनुभव नामों का ही प्रयोग किया।
उन्नाव से कुछ दिनों की छुट्टियां लेकर यह लैंसडौन आए थे। 18 जुलाई को इन्हें दिल की धड़कन शुरू हुई और डॉक्टरी सहायता के बावजूद 19 जुलाई सन 1922 ईस्वी को असमय ही इन्हें परलोक की यात्रा करनी पड़ी। इनके कनिष्ठ भ्राता श्री अनुसूया प्रसाद घिल्डियाल भी अवकाश प्राप्त जज थे। इनके बड़े पुत्र रघुनंदन प्रसाद घिल्डियाल पीसीएस बहराइच जिले में डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग ऑफिसर भी रहे । इन के छोटे पुत्र रमा प्रसाद घिल्डियाल पहाड़ी हिंदी जगत के प्रसिद्ध कहानीकार उपन्यास लेखक थे।
स्व. भक्त दर्शन जी द्वारा वर्ष 1950 में लिखित पुस्तक ‘गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ’ से साभार