संजय चौहान
जब गढवाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष खेतों में फवाडे लगाते मिले.. सादगी और कार्यशैली का था हर कोई मुरीद.ग्राउंड जीरो से
सीमांत जनपद चमोली का देवाल ब्लाॅक आज भी अति दूरस्थ माना जाता है। पिंडर, कैल और लाटू देवता की घाटी में अव्यवस्थित इस ब्लाॅक में आज भी समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। इसी घाटी में एक गांव है पिनाऊं। दूर पहाडी पर बसे इस खूबसूरत गांव की सुंदरता हर किसी को भाती है। इसी गांव में गढ़वाल राइफल्स के सुबेदार मेजर और आजाज हिंद फौज के कमांडिंग ऑफीसर देवसिंह दानू जी के घर पूर्व विधायक शेर सिंह दानू जी का जन्म हुआ था।
बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी और सादगी की प्रतिमूर्ति शेर सिंह दानू जी आज भी राजनीति के पुरोधाओं के लिए मिशाल हैं। पहाडों के विकास के लिए उन्के पास दीर्घकालीन योजनायें और सोच थी। इन दिनों देवाल के लोहजंग में पांच दिवसीय पूर्व विधायक स्व. शेर सिंह दानू औद्योगिक विकास एवं पर्यटन मेला आयोजित किया जा रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेद्र सिंह रावत ने मेले का उद्घाटन किया और शेर सिंह दानू जी के गांव पिनाऊं को सड़क से जोड़ने सहित क्षेत्र के लिए कई घोषणाएं की।
गौरतलब है कि आजादी के बाद कैलघाटी की पंचायत गठन हुआ तो घेस नाम से एक ग्राम पंचायत बनी, इस पंचायत के पहले प्रधान शेर सिंह दानू के पिता मेजर देवसिंह दानू जी बने थे। पहले पिनाऊं घेस ग्राम सभा में था, अब पिनाऊं अलग ग्राम सभा है। देवसिंह दानू ने अपने इकलौते बेटे शेर सिंह दानू को पढाई के लिए घर से हजारों किलोमीटर दूर भेजा। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय भेजा गया। कानून (एलएलबी) की पढाई के दौरान उनके सहपाटी मांडा के राजकुमार विश्वनाथ प्रताप सिंह थे, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री भी बने। वकालत करने के बाद शेर सिंह दानू जी ने प्रख्यात अधिवक्ता सोबन सिंह जीना के साथ अल्मोड़ा में वकालत शुरू की। यहीं से शेर सिंह दानू जनसंघ के सम्पर्क में आये।
शेर सिंह दानू ने 1969 में कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा और उन्होंने उस समय से दिग्गज नेता व शिक्षा मंत्री डा. शिवानंद नौटियाल को हराया था। विधायक बनने के बाद शेर सिंह दानू ने समूचे पिंडर क्षेत्र को पैदल मार्गों से जोडा। आज भी उनके कार्यकाल में बनायी गयी छह फुटी पैदल बटिया गांवों के बीच सम्पर्क के माध्यम हैं। अगले चुनाव से पहले विधानसभा का परिसीमन हो गया और दानू जी के प्रभाव वाले बड़े क्षेत्र (नारायणबगड़ से ऊपर वाले) को बदरी—केदार क्षेत्र से जोड़ दिया। बड़ा क्षेत्र होने के कारण यहां से पिंडर के नेताओं का चुनाव जीतना मुश्किल हो गया। कुछ वर्ष बाद दानू जी कांग्रेस में चले गये।
जब गढवाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष खेतों पर फवाडे लगाते मिले….
वर्ष 1983 में शेर सिंह दानू जी को गढ़वाल मंडल विकास निगम का चेयरमैंन बनाया गया। उनके चेयरमैंन बनने के समय का एक बेहद ही रोचक प्रसंग है, जब उन्हें चेयरमैंन बनाया गया तब गढ़वाल मंडल विकास निगम के एमडी जीवी पटनायक थे। लखनऊ से गोपन विभाग का पत्र आया कि पूर्व विधायक शेर सिंह दानू जी को गढ़वाल मंडल विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया है। इसके साथ ही पटनायक साहब के लिए अलग से फोन आया कि वे स्वयं दानू जी के गांव तलवाडी जाएं और उन्हें वहां से सम्मान सहित देहरादून लाकर निगम में कार्यभार ग्रहण करायें। दानू जी बाद में पिनाऊं से तलवाडी आ गये थे। पटनायक साहब अगले दिन देहरादून से तलवाड़ी के लिए चले। अपने साथ एक अतिरिक्त कार भी साथ ले गये। तलवाड़ी पहुंचने पर लोगों ने उनके घर की तरफ इशारा करके बताया कि वे ऊपर रहते हैं। पटनायक साहब अपने साथियों के साथ पैदल चलते हुए उनके घर के पास पहुंच गये। घर पर कोई नहीं था।
उनके घर से कुछ दूरी पर पांच छह मजदूर बंजर खोद रहे थे। दानू जी के बारे में जानकारी लेने के लिए पटनायक साहब उन मजदूरों के पास ही पहुंच गये। उन्होंने मजदूरों से पूछा कि दानू साहब से मिलना था, कहां मिलेंगे। पटनायक साहब के ये पूछते ही, उन श्रमिकों में से एक ने फावड़ा किनारे रखा और नीचे बैठकर बोले, बताइये मैं ही शेर सिंह दानू हूं। यह सुनते ही पटनायक साहब हक्के-बक्के रह गये।
पटनायक साहब ने फिर पूरी बात बतायी और उन्हें लेकर अपने साथ देहरादून के लिए चले। उन्हें लगा कि कोई पुराने कांग्रेसी होंगे इसलिए पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष बनाया होगा। पटनायक साहब के पास एक दिन कोई फाइल पहुंची। पत्र अंग्रेजी में था तो उन्हें लगा कि शेर सिंह दानू जी उन्हें बुलाएंगे और पूछेंगे कि क्या लिखा है, लेकिन यह क्या, जब फाइल वापस आयी तो दानू जी ने फाइल ही रंग दी थी। ये देखकर तो पटनायक साहब के होश ही उड़ गये। तब उन्होंने उनके बारे में विस्तार से जानकारी ली और पूरी बात पता चलने के बाद पटनायक साहब शेर सिंह दानू जी के सादगी और कार्य शैली के मुरीद हो गये थे और उनका बहुत सम्मान करने लगे थे।
(नोट!– उक्त बातें 1998 के आसपास दानू जी के सबसे छोटे बेटे अधिवक्ता प्रेम सिंह दानू और वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन बिष्ट को लखनऊ में राज्यपाल के तत्कालीन सचिव जीबी पटनायक द्वारा एक मुलाकात के दौरान बताई थी। इस दौरान पटनायक साहब दानू जी को याद करते हुए बहुत ही भावुक भी हो गये थे)
शेर सिंह दानू जी को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन बिष्ट जी कहते हैं कि शेर सिंह दानू जी सादगी की प्रतिमूर्ति थे, उनकी कार्यशैली का हर कोई मुरीद था। उनकी मृत्यु के करीब 1—12 साल बाद भी एक वरिष्ठ आईएएस अफसर यदि उनको याद करके सिसकने लगे तो समझा जा सकता है कि शेर सिंह दानू का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा। यह मेरा परम सौभाग्य रहा कि दानू जी जब भी मेरे गाँव घेस आते थे वे हमारे घर पर ही रुकते थे। मेरे ताऊ जी स्व. देव सिंह बिष्ट पोस्टमास्टर उनके अभिन्न लोगो में से ते। घेस में उनके रुकने का एक और स्थान था, उनके ही भाई धर्म सिंह दानू (डिप्टी साहब) के घर पर। इसलिए मुझे उन्हें देखने, मिलने और समझने के बहुत अवसर मिले।
बाद में जीएमवीएन के अध्यक्ष बनने के बाद भी मेरा देहरादून में उनसे मिलना होता रहा। यादें बहुत सारी हैं, जगह कम है, कभी आगे अवसर आया तो जरूर साझा करनें की कोशिश करूंगा। दानू जी के नाम से मेले की शुरूआत करने के लिए मेला समिति के अध्यक्ष इंद्र सिंह राणा जी को बहुत साधुवाद। देवाल ब्लाॅक के सभी जनप्रतिनिधि को क्षेत्र के विकास के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आगे आना होगा। ताकि क्षेत्र का समुचित विकास हो सके।