अरुण कुकसाल
‘आप सबका धन्यवाद, आप आये हैं, और हमारे परिवार को यह अहसास दिला रहे हैं कि शमशेर जी केवल मेरे और मेरे परिवार के ही नहीं वरन् आप-सबके हैं। मैं अभीभूत हूं कि आपने उन्हें जीवनभर स्नेह और सम्मान दिया। आज मुझे शमशेर जी के विचारों की छवि उनके मित्रों में दिख रही है। यह हमारे परिवार के लिए गौरव के क्षण हैं। यह आत्मीय संबध हमेशा बनाए रखना। आप सबका पुनः आभार।’ रेवती भाभी (धर्मपत्नी डाॅ. शमशेर बिष्ट) के संबोधन में शब्दों का संकोच और साहस दोनों है। उनके जीवन पर्यन्त संयम, साहस और सहयोग का ही परिणाम है कि शमशेर हम-सबके आदर्श और प्रेरणाश्रोत्र बने।
रेमजे इंटर कालेज, अल्मोड़ा के सभागार में बैठने की जगह नहीं मिल पाई तो लोग बाहर प्रांगण में बैठे-खड़े हैं। किसी को कोई जल्दी नहीं, वक्त भी जैसे यहां आकर चुपचाप खड़ा, सैकड़ों लोगों की नज़रों के साथ मंच की दीवार पर ‘शमशेर स्मृति !’ के बैनर पर टिक गया है। राजीव दा (राजीवलोचन साह) के संचालन में भावनाओं का अतिरेक उन्हें असज कर रहा है। आज लोग मंच से दिग्गजों को नहीं दोस्तों को सुनने के लिए बेताब हैं। शमशेर बिष्ट के उन साथियों को जो सामाजिक सरोकारों में उनकी ताकत रहे हैं। सभागार में चुप्पी इतनी कि केवल वक्ता और बीच-बीच में कैमरे के क्लिक की आवाज ही सुनाई दे रही है। हाल के बीच की गैलरी में शमशेर दा का 8 वर्षीय पोता अविरल बिष्ट पूरे आत्मविश्वास के साथ व्यवस्थाओं का जायज़ा लेते हुए टहल रहा है। अपने दादाजी डाॅ. शमशेर सिंह बिष्ट जी के ‘स्मृति ! समारोह’ की दायित्वशीलता को निभाते हुए उसकी नजऱ मंच और अतिथियों पर बराबर है। मैं सोचता हूं फिर शमशेर दा कहां गए ? यहीं तो मौजूद हैं ‘अविरल’ में और हम-सबके मन-मस्तिष्क में अविरल प्रवाह की तरह।
महेश जोशी, पी.सी.तिवारी, राजीवलोचन साह, उदय किरौला, तरुण जोशी, अनिल कार्की के सामुहिक स्वरों में गूंजतेे जनगीतों ने बता दिया कि ये समारोह नेता नहीं जननायक की जीवंत स्मृति में है। सामाजिक चिंतक और साहित्यकार कपिलेश भोज की नवीन पुस्तक ‘जननायक डाॅ. शमशेर सिंह बिष्ट’ के लोकार्पण के बाद प्रो. शेखर पाठक के संबोधन से विचारों का प्रवाह आगे बढ़ता है। वे कहते हैं, कि शमशेर बिष्ट की परम्परा के निर्वहन के लिए हमें राजनैतिक, सामाजिक और पारस्थितिकीय लड़ाई के लिए आगे आना होगा। युवाओं को इसके लिए जागरूक करने के अभियानों की पहल हमारी ही पीढ़ी को करनी है। युवा पीढ़ी के साथ हमारा संवाद टूटा नहीं, हां शिथिल जरूर हुआ है। उस पर सबको मिल-जुलकर काम करने की आवश्यकता है। मंच से बोलते हुए प्रदीप टम्टा (सांसद) भावपूर्ण हो गए हैं। वे कहते हैं कि उनको जीवन के इस मुकाम तक पहुंचाने की मजबूत आधारशिला शमशेर दा ने ही तैयार की थी। वे हमारे अग्रज, अभिभावक और मार्गदर्शी थे। उनका सानिध्य मिलना हमारे लिए जीवन की अमूल्य निधि है। आज देश का आम आदमी सत्ता के निरंकुश विचार और विकास दोनों ही संकटों से घिरा है। ऐसे समय में डाॅ. शमशेर बिष्ट जी की सिखाई सीख और बताया रास्ता हमें इससे उभरने में मदद दे सकता है। पी.सी. तिवारी (अध्यक्ष, उपपा) ने कहा कि डाॅ. बिष्ट ने समाज की बेहतरी के लिए हमें जीवन में लड़ना-भिड़ना सिखाया। आज हमारे युवावस्था के साथी राजनैतिक रूप में विभिन्न दलों में हैं। लेकिन इसके बावजूद भी हम सामाजिक लड़ाईयों को एक मंच पर आकर लड़ सकते हैं। बस, इसमें एक मजबूत पहल की जरूरत है।
अल्मोड़ा में हुई सुबह की बारिश ने भी शमशेर स्मृति ! समारोह में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज करा ली है। मौसम खुशनुमा हुआ है। कई दिनों की धूल से वातावरण ने निजा़त पाई है। तो बरसों बाद मिल रहे मित्रों के सामुहिक ठहाके उनकी उम्र के ठहराव पर प्रहार कर रहे हैं। लम्बे समय तक न मिल पाने का अहसास आज मिलन के क्षणों को और आनंदित कर रहा है। रेमजे के प्रांगण को भी अस्सी के दशक की याद आ गई होगी। लखनऊ से नवीन जोशी, विपिन त्रिपाठी, त्रिलोचन जोशी, हल्द्वानी से सतीश जोशी, भाष्कर उप्रेती, जगमोहन रौतेला, हरीश पंत, द्वाराहाट से पुष्पेश त्रिपाठी, नैनीताल से राजा बहुगुणा, महेश जोशी, सरु तिवारी, संजीव भगत, प्रकाश उपाध्याय, कैलाश तिवारी, देव सिंह पोखरिया, तरुण जोशी, अनिल कार्की, देहरादून से गीता गैरोला, दिनेश जुयाल, निर्मला बिष्ट, भार्गव चन्दोला, पिथौरागढ़ से उमा भट्ट, राजकुमारी पांगती, बागेश्वर से केशव भट्ट, रुद्रपुर से रूपेश कुमार सिंह, कौसानी से राधा बहन, पौड़ी से सत्यनारायण रतूड़ी, अनुसूया प्रसाद घायल, आशीष नेगी, सूरी भाई, श्रीनगर से कृष्णानंद मैठाणी, जगदम्बा रतूड़ी, उमा मैठाणी, समीर रतूड़ी, सीताराम बहुगुणा, कर्णप्रयाग से इन्द्रेश मैखुरी, गैरसैंण से पुरुषोत्तम असनोड़ा, टिहरी से विजय जड़धारी, धूमसिंह नेगी, अरण्य रंजन, नैनीडांडा से मनीष सुन्दिरियाल, दिल्ली से चंदन डांगी, पलाश विश्वास, चारु तिवारी, अगस्तमुनि से गजेन्द्र रौतेला और अल्मोड़ा के तमाम मित्रों का सैलाब दूर तक है। एक सीने से चिपटाता है तो दूसरा हाथ पकड़ता है तो तीसरा कंधा और खुद की निगाह में इधर-उधर और भी मित्रों के चहकते चेहरे दिखने लगते हैं।
महेश जोशी के हुड़के पर थाप देते ही हरदिल अजी़ज ‘गिरदा’ ‘इक दिन त आलो दुनियां दुनी में’ जनगीत में सजीव हो उठते हैं। मित्रों का जलूस रेमजे से बाजार की ओर ‘डाॅ. शमशेर बिष्ट अमर रहे’ नारे के साथ आगे बढ़ा तो उसमें अल्मोड़ा शहर के लोगों की आवाज भी शामिल हो गई है। आमजन के दिल में शमशेर का जीवंत होना ही उन्हें जननायक बना देता है। आज जननायक शमशेर बिष्ट की याद में ही सही अल्मोड़ा में लम्बे समय बाद जनगीतों का सन्नाटा टूटा है। आम आदमी के गीत अल्मोड़ा की सड़क पर फिर से बुलंद आवाज में गूंजे हैं। जलूस में युवा कम हैं, पर वे कमजोर नहीं हैं, विचारशीलता और दूरदर्शिता में। हमारे युवा होने के समय के दौर की तुलना में वे ज्यादा आत्मविश्वासी, स्पष्ट और साफगोई हैं। दोपहर बाद से देर रात्रि तक विचार-विमर्श का दौर सहमति और असहमति की शक्ल में चलता रहा। संवाद में असहमतियों से ज्यादा ये महत्वपूर्ण है कि आगे संवाद के अवसर ज्यादा व्यापक और दीर्घगामी होंगे। शमशेर बिष्ट जी के जाने के बाद से मित्रों में आई सामाजिक सक्रियता की चुप्पी को उनकी पहली बरसी के आयोजन ने तोड़ा है। ये एक नये परिदृश्य के सामने आने की शुरुवात है।
शमशेर स्मृति !, अल्मोड़ा के सफल निर्वहन के लिए अग्रज राजीवलोचन साह, पी.सी. तिवारी, जगत रौतेला, डाॅ. दीवान नगरकोटी, जयमित्र बिष्ट, इन्द्रा बिष्ट, अजयमित्र बिष्ट, अदिति बिष्ट, डी.के कांडपाल, पूरन चंद तिवारी, प्रकाश जोशी, कमल जोशी, कपिलेश भोज आदि सभी मित्रों को आत्मीय धन्यवाद। परम आदरणीया रेवती भाभी जी का यह संदेश कि ‘यह आत्मीय संबध हमेशा बनाए रखना। हम सबके लिए प्रेरेणास्पद है।