नंद किशोर हटवाल
महान साहित्यकार ऋषितुल्य शिवराज सिंह रावत ‘निस्संग’ जी का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया है।
डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक शिवराज सिंह रावत ‘निस्संग’ अंतिम समय तक अपने गांव देवर (चमोली) में साहित्य साधना में लीन रहे। उनके द्वारा लिखी गई प्रमुख पुस्तकें- गायत्री उपासना एवं दैनिक वन्दना, श्री बदरीनाथ धाम दर्पण, उत्तराखण्ड में नंदा जात, कालीमठ-कालीतीर्थ, उत्तराखण्ड में शाक्त मत और चंडिका जात, पेशावर गोली काण्ड का लौहपुरूष वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, भारतीय जीवनदर्शन और सृष्टि का रहस्य, षोडस संस्कार क्यों? केदार हिमालय और पंच केदार, भाषा तत्व और आर्यभाषा का विकास, मानवाधिकार के मूल तत्व, भारतीय जीवनदर्शन और कर्म का आदर्श, गीता ज्ञान तरंगिणी तथा बीती यादें हैं।
गढ़वाली साहित्य के उन्नयन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित गढ़वाली, हिन्दी, अंग्रेजी शब्दकोश निर्माण में रावत जी की अहम् भूमिका रही। तीलू रौतेली पर लिखा उनका गढ़वाली खण्डकाव्य ‘वीरबाला’, गढ़वाली गीतिकाव्य ‘माल घुघूती’ उनकी महत्वपूर्ण गढ़वाली की रचनाएं हैं। गढ़वाली-हिन्दी व्याकरण तथा ईषावास्योपनिषद और कठोपनिषद का गढ़वाली अनुवाद भी किया। लोक, इतिहास, धर्म, दर्शन, कर्मकाण्ड और पौराणिक साहित्य उनके अध्ययन और लेखन के प्रिय विषय रहे हैं।
निःस्संग जी का जन्म चमोली के दूरस्त गांव देवर-खडोरा में 15 फरवरी 1928 को हुआ था। युवावस्था में फौज में भर्ती हो गए। 1953 से 1974 उन्होंने भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी। 1975 से 1994 तक नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद सरकारी सेवाओं से सेवा निवृत्ति के बाद से लेकर अंतिम समय तक वे निरन्तर साहित्य सेवा में संलग्न रहे। उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा 2010-11 के लिये ‘गुमानी पंत साहित्य सम्मान’, वर्ष 1997 में उमेश डोभाल स्मृति सम्मान, चन्द्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति हिन्दी सेवा सम्मान 2005, उत्तराखण्ड सैनिक शिरोमणी सम्मान 2008, गोपेश्वर में पहाड़ सम्मान, साहित्य विद्या वारिधि सम्मान सहित उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए।
निसंग जी वस्तुतः सिर्फ एक लेखक नहीं थे। सामाजिक सरोकारों से गहरा जुड़ाव रखने वाले साहित्यकार थे। अपनी जमीन, ग्राम-समाज और लोक की गतिविधियों के न सिर्फ अध्येता बल्कि उसके निष्पादक, प्रतिपादक और कार्यकर्ता भी थे। शिवराज सिंह रावत ने जहां से अपनी जीवन यात्रा शुरू की और जहां वे पहुंचे वह प्रेरणादायक है। तमाम प्रतिकूलताओं के बीच एक अजेय योद्धा की तरह लड़ते हुए वे आगे बढ़ते गए। अपनी प्रतिभा और इच्छा शक्ति के बल पर उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किए। शिवराज सिंह रावत ‘निःसंग’ एक अजेय पहाड़ी सैनिक, प्रकाण्ड विद्वान, ग्रामीण किसान और उच्चकोटि के अकादमिक व्यक्तित्व के अनोखे संगम थे। अंतिम समय तक वे अपने ग्राम देवर (चमोली) में साहित्य साधना में लीन रहे।
उन्हें बहुत सादा जीवन जीने वाले भारतीय ऋषि-महर्षियों की परम्परा का साधक ही कहा जा सकता है। ऐसे महर्षि, साधक और तपस्वी साहित्यकार को विनम्र श्रद्धांजलि।