केशव भट्ट
अभी 20 जून को पिंडारी ग्लेशियर के ट्रैक पर गया तो रास्तों के हाल देख लगा कि नेता, ठेकेदार, प्रशासन को जनता और पर्यटकों की परेशानी से कुछ भी लेना-देना नहीं है। 2013 की आपदा उनके लिए आज तक भी वरदान है। अभी भी वे आपदा के नाम पर धन बटोरने में लगे हैं। इस मार्ग पर द्वाली का टूटा रास्ता उनके लिए एक खजाना है, जिसे वे जल्दी ठीक करना ही नहीं चाहते। विभाग के जेई साहेबान आदि के दौरे होते रहते हैं। द्वाली जाकर, सैल्फी खींच कर वे अपनी उपस्थिति दर्ज कर देते हैं और पिंडारी जाना चाहने वालों को डराते रहते हैं कि ऊपर लगातार बारिश हो रही है, द्वाली के पास पिंडर और कफनी में बने लकड़ी के पुल कभी भी बह सकते हैं। वहाँ मत जाओ। कई लोग उनकी बातें सुन कर लौट जाते हैं। कुछ हिम्मत कर आगे जाते भी हैं तो फुरकिया के बाद नालों में सख्त बर्फ की तीखी ढलान में फिसल बर्फीली पिंडर नदी में समाने के खतरे को भांप कर सिस्टम को गरियाते हुए वापस लौट आते हैं।
विश्व प्रसिद्व पिंडारी ग्लेशियर को देखने की चाहत में आने वाले देशी-विदेशी सैलानी इस यात्रा की शुरूआत में ही देख भौंचक्के रह जाते हैं। कपकोट-भराड़ी से खरकिया तक 41 किमी. की सड़क के हालात आज तक भी नहीं सुधरे हैं। भराड़ी से खरकिया पहुंचने में ही ढाई घंटे लग जाते हैं। ये दीगर बात है कि रोज इस मार्ग पर चलने वाली टैक्सियों को आदत पड़ गई है और वे अपनी और सवारियों की जान की परवाह किए बिना बेधड़क भागती रहती हैं। कर्मी-विनायक तक यह सड़क कई जगहों पर भूस्खलन की जद में है। धूर से खरकिया तक दर्जनों जगहों पर धंस चुकी है। चार जगहों पर दलदल से पटी है तो सड़क के किनारे हर जगह टूटे हैं, जिससे हर पल वाहन के धंसने पर उसके नीचे खाई में गिरने का भय बना रहता है। ये हाल तब है जबकि यह सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत है।
खरकिया से यह सड़क अभी नीचे बाच्छम की ओर पिंडर नदी के किनारे सरनी तक बनी है। खरकिया से पिंडारी ग्लेशियर को लगभग 30 किमी. की पैदल यात्रा है। खरकिया से आगे साढ़े चार किमी. के बाद इस मार्ग में अंतिम गांव खाती है। यहां तक यह पैदल मार्ग थोड़ा ठीक है, लेकिन गांव में शत-प्रतिशत बिजली का दावा बेमानी है। बिजली के ट्रांसफर लगे हैं, बिजली के पोलों से घरों को तार भी गए हैं, लेकिन विद्युत की आपूर्ति बंद है। ग्रामीणों का कहना है कि शुरूआत में कुछेक महीने बिजली आई, लेकिन बाद में विभाग ने मीटर लगाने के नाम पर विद्युत सप्लाई बंद कर दी। ग्रामीणों ने मीटर लगाने के लिए आवेदन भी किया, लेकिन लालफीताशाही के चलते फाइल आगे नहीं खिसकी। गांव वाले सोलर लाईट के भरोसे ही हैं। खाती गांव के नीचे जातोली गांव के मार्ग में पिंडर और सुंदरढूंगा नदी के किनारे रिटिंग में माइक्रोहाइडिल बनाने के नाम पर उरेडा और उसके द्वारा गठित की गई संस्था के सांथ ही ठेकेदार ने करोड़ों रूपये बाढ़ के नाम पर डकार लिए। माइक्रो हाइडिल का कहीं कुछ पता नहीं है।
खाती गांव से आगे टीआरसी के पास पुराना रास्ता भूस्खलन की चपेट में आने से नया रास्ता ऊपर से बनाया गया है। आगे मलियाधौड़ का रास्ता वर्ष 2013 की आपदा में ध्वस्त हो जाने से पिंडर नदी के पार को नया रास्ता नीचे निगलियाधार से बनाया गया है। यहां पिंडर नदी में नया पुल बन कर तैंयार हो गया है। ग्रामीण बताते हैं कि पुल बनने के कुछेक हफ्तों बाद ही तिरछा हो गया था। ठेकेदार ने पुल में पूरे नट-बोल्ट ही नहीं लगवाए थे। हंगामा मचने पर इसे तुरंत ठीक करवाया गया।
छिरकोला में खड़क सिंह की इकलौती दुकान तक रास्ता उतार-चढ़ाव लिए हुए है। इससे आगे किलोमीटर भर बाद रास्ता पहले पिंडर नदी के किनारे को था। अब पीडब्लूडी ने ऊपर का पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया है। यह रास्ता कई जगहों पर संकरा और जोखिमभरा है। द्वाली से तीनेक किमी. पहले ध्वस्त हो चुका रास्ता आपदा के बाद से आज तक भी नहीं बन सका है। यहां पर पिंडर और कफनी नदी में दो कच्चे पुल बनाए गए हैं, जो हर साल बाढ़ की भेंट चढ़ जाते हैं। इस जगह में करीब दो किमी. के ध्वस्त रास्ते को पीडब्लूडी आज तक भी नहीं बना सका है। जबकि एक करोड़ दस लाख से ज्यादा रुपये द्वाली के चट्टान काट उसमें रास्ता बनाने और पिंडर नदी में पुल बनने के नाम पर खर्च किए जा चुके हैं। ये रास्ता और द्वाली पर पिंडर नदी के ऊपर पुल कब बनेगा, इस बारे में कोई भी स्पष्ट जवाब विभाग नहीं देता है। यही जवाब रहता है कि ‘‘जल्द ही बन जाएगा।’’
पिंडारी जाने वाला हर पर्यटक हमेशा आशंकित रहता है कि उसके लौटने तक द्वाली में कफनी और पिंडर नदी में बने पुल बह तो नहीं जाएंगे। द्वाली से कफनी ग्लेशियर को जाने वाला पैदल मार्ग भी भूस्खलन की चपेट में आने से ध्वस्त हो गया है. विभाग इस रास्ते को ठीक करने के नाम पर बजट के अभाव का रोना लेकर बैठा हुआ है। द्वाली से पिंडारी ग्लेशियर मार्ग में फुरकिया पड़ाव के मध्य एडीबी और पीडब्लूडी के द्वारा संयुक्त काम के दौरान बनाए गए विश्राम हटों में से एक बर्फबारी की चपेट में आकर ध्वस्त हो गया है। छोटे नालों में बनाए गए सीमेंट के स्कबर भी टूट गए हैं। फुरकिया में पीडब्लूडी का रेस्ट हाउस अब खंडहर हो गया है। दरवाजे, खिड़कियां टूट चुकी हैं और बिल्डिंग भी गिरने के कगार पर है। यहां टीआरसी के हट हैं लेकिन उनमें ताले ही लटके रहते हैं। देखरेख करने वाला कभी मिला ही नहीं। बाहर बने शौचालयों में भी ताले लगे हैं। कोई यहां रुके भी तो उसे इन शौचालयों का कोई फायदा नहीं मिल पाता है।
फुरकिया से पिंडारी ग्लेशियर से ड़ेढ़ किमी. पहले कुटिया बना तीस सालों से रह रहे स्वामी धर्मानंदजी की कुटिया तक का रास्ता भी जोखिम भरा है। इस पैदल मार्ग में कई नाले अभी बर्फ से पटे पड़े हैं, जो कि जानलेवा हो सकते हैं। इस यात्रा सीजन में एक विदेशी समेत कई लोग यहां घायल हो चुके हैं। बावजूद इसके इस पैदल मार्ग की देखरेख के लिए पीडब्लूडी का कोई भी कारिंदा इस मार्ग में मौजूद नहीं है। कई जगहों में रास्ते बहुत संकीर्ण हैं और वहां पर ऊपर से हमेशा पत्थर गिरते रहते हैं। पथारोहण और पर्वतारोहण से गुजर-बसर करने वाले गाईड और पोर्टर कहते हैं कि विश्वप्रसिद्व पिंडारी ग्लेशियर को देखने के लिए हर साल सैकड़ों ट्रैकर इस ओर आते हैं, लेकिन मार्ग की हालत देख ज्यादातर वापस लौट जाते हैं।
धिक्कार है इस व्यवस्था पर जो कि हर जगह कहते फिरती है कि उत्तराखंड एक पर्यटन प्रदेश है, हर किसी का यहां स्वागत है। पिंडर घाटी में आपदा के बाद से छह साल तक में करोड़ों रुपये कमाने वाले भी नहीं चाहते हैं कि यहां सब ठीक हो जाए। द्वाली एक तरह से उनके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह ही है, जिसे वे हर हाल में जिंदा रखना पसंद करते हैं।
पिंडारी ग्लेशियर के पास अपनी धूनी जमाए बस एक स्वामी धर्मानंद ही सच्चे योद्धा हैं जो सिस्टम को सुधारने के लिए भाग-दौड़ कर हर हमेशा अपनी तपस्या में लगे रहते हैं। और हां, पिंडारी ग्लेशियर देखने की चाहत में आने वालों का स्वागत वे बड़े से गिलास में खुशबूदार चाय के सांथ करना नहीं भूलते।.