राजीव लोचन साह
चीन का कोई प्रतिनिधिमंडल नैनीताल आया होगा और यहाँ आकर उसने नगरपालिका के अध्यक्ष और अधिकारियों से भेंट की। इस पर तत्काल नैनीताल के बेहद तेजतर्रार और कर्मठ जिलाधिकारी सविन बंसल की प्रतिक्रिया आयी कि इस प्रतिनिधिमंडल और नगरपालिका के बीच जो बातचीत हुई, उससे प्रशासन का कोई सम्बन्ध नहीं है।
एकदम शुरू में ही यह स्पष्ट करते हुए कि अभी-अभी जो नगरपालिकायें चुनी गई हैं वे बंजर और महज सजावटी हैं तथा उनमें चुने गए अधिकांश लोग खूब पैसा खर्च कर और ज्यादा पैसे कमाने वहाँ पहुँचे हैं और अब पंचायतों के लिए जो चुनाव होने जा रहे हैं उनमें भी ऐसा ही होगा; मैं यह कहना चाहता हूँ कि यही इस देश और प्रदेश का संकट है। 45 साल के राजनैतिक जीवन के बाद मैं और मेरे तमाम साथी इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इस देश को बचाने का एकमात्र तरीका विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था है, जिसे महात्मा गांधी ने ‘ग्राम गणराज्य’ कहा था। हमारे संविधान में इसकी व्यवस्था 73वें-74वें संविधान संशोधन कानून, जिसे कोई भी प्रदेश सरकार लागू नहीं करना चाहती, के रूप में है। यह लागू होगा तो पालिकाएँ या पंचायतें आत्मनिर्भर और सर्वशक्तिमान होंगी, जिले आज की तरह राजस्व जिले नहीं होंगे, बल्कि उनका पुनर्गठन ‘विकास के जिलों’ के रूप में होगा, तब जिलाधिकारी जिला पंचायत अध्यक्ष के मातहत होगा और पंचायत सचिव प्रधानों से बर्तन नहीं मलवायेगा। इस विषय पर हमने 2007 में लोक वाहिनी की ओर से अल्मोड़ा में एक महत्वपूर्ण गोष्ठी करवायी थी, जिसमें डॉ ब्रह्मदेव शर्मा भी आये थे। बाद मॉडल पंचायती राज एक्ट का एक ड्राफ्ट तत्कालीन मंत्री बिशन सिंह चुफाल को भी सौंपा था।
मगर ऐसा कानून लागू होने से तमाम भ्रष्टाचारियों, वे शासन-प्रशासन में हों, राजनीतिक दलों में हों या ठेकेदारों के रूप में, के आमदनी के स्रोत खत्म होते हैं। इसलिये ऐसा ही चल रहा है। पंचायतें अधिकारियों की दबैल हैं औऱ उनमें वही सफल हो रहे हैं जो धंधा करने, खुद खाने और अधिकारियों का पेट भरने वहाँ जा रहे हैं। जनता का उन पर कोई अंकुश नहीं है। उन्हें जनता की चिन्ता भी नहीं है, क्योंकि वे सरकारी पंचायतें हैं और अधिकारी खुश हो जाये, पर्याप्त है। जनता जाये भाड़ में।
मगर अच्छा है, इस घटना के बहाने हमारे लोकतंत्र का यह काला धब्बा सामने तो आया।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।