केंद्र सरकार द्वारा हाल में लाए गए तीन कृषि कानूनों का असर पहाड़ पर भी पड़ेगा। इसलिए किसानों के आंदोलन से पहाड़ वासियों का भी सरोकार है।
महीपाल सिंह नेगी
तीनों कानूनों से मंडी व्यवस्था कमजोर हो रही है और एमएसपी की गारंटी भी नहीं मिल रही। फसल खरीद और भंडारण में कारपोरेट का दबदबा बढ़ेगा। बल्कि नियंत्रण हो जाने की आशंका है।
यह धारणा और तर्क मिथ्या है कि पहाड़ के किसान क्या बेचते हैं। जरूर गन्ना, गेहूं, धान जैसी प्रमुख फसल नहीं बेचतेए लेकिन बहुत सी नगदी फसलें तो बिक्री लायक पैदा होती हैं। जैसे आलू, मटर, प्याज, अदरक, लहसुन और टमाटर सहित तमाम सब्जियां, रवाईं का लाल चावल और हरसिल की राजमा, धनोल्टी के आलू की तो राज्य से बाहर भी डिमांड है।
जब एमएसपी नहीं मिलेगी तो नगदी व बारानाजा फसलों को भी एमएसपी नहीं मिलने वाली। पहाड़ में पारंपरिक या जैविक फसलों के लिए पहले से ही कोई मंडी नहीं। नए कानूनों के बाद मंडी खुलने की संभावनाएं भी पूरी तरह से खत्म।
2017 में उत्तराखंड की राज्य सरकार ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए 6 मंडियों को स्वीकृति दी थी। फिर नए कानूनों की चर्चा शुरू हुई तो एक भी मंडी नहीं खुल पाई। मंडी का विकल्प कारपोरेट को लाया जा रहा है। कारपोरेट दूरस्थ गांव में दो – चार या पांच – सात कुंतल राजमाए चौलाई आदि लेने तो नहीं जाने वाला। जाएगा भी तो एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं होने से कारपोरेट ही रेट बताएगा।
किसान भी इतनी उपज लेकर दूर मैदान में ट्रक लेकर आ भी गए तब भी एमएसपी की गारंटी तो चाहिए होगी। अन्यथा ट्रांसपोर्ट का खर्च मार जाएगी। कारपोरेट के बड़े गोदाम दिल्लीए हरियाणाए पंजाब, पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाईवे के निकट बन रहे हैं। पहाड़ पर उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं।
पहाड़ के लिए तो मंडी और एमएसपी मैदान के किसानों से ज्यादा जरूरी है। पारंपरिक के अलावा नगदी व जैविक फसलों के लिए अलग से मंडी और एमएसपी होनी चाहिए।
लेकिन जब महिनों से लड़ रहे लाखों किसान मंडी नहीं बचा पाएंगे और एमएसपी की गारंटी नहीं ले पाएंगे, तब पहाड़ के दूर – दराज, असंगठित और छोटी जोत के किसान – काश्तकार 2, 2ए 4, 4 कुंतल की राजमाए मंडूवा, मटर, टमाटर आदि की वाजिब कीमत कहां से और किससे ले पाएंगे।
किसान आंदोलन की जीत होती है तो पहाड़ के किसानों को भी सहारा मिलेगा। मंडी और एमएसपी की संभावनाएं भी खुली रहेंगी। आज नहीं तो कल मंडी और एमएसपी की आवाज उठानी ही होगी।
कोरोना लाकडाउन के दौरान टिहरी की चंबा – मसूरी फल पट्टी से मटर 10 रुपए किलो ऋषिकेश जा रहा था और 2 दिन बाद वही मटर पहाड़ पर 60 रुपए किलो बिक रहा था। आलू भी 15 रुपए किलो गया और महिने भर बाद 40 द- 50 रुपए किलो वापस आ गया। लहसुन 50 रुपए किलो गई और दो महिने बाद 150 और 4 महीने बाद 250 रुपए किलो पर बिकने लगी।
जब सहकारी मंडी और एमएसपी मैदान में ही खत्म हो जाएंगे तो पहाड़ चढ़ने की रही सही उम्मीद भी खत्म समझो।