अतुल सती
वैसे तो राहत इंदौरी साहब बोल गए हैं कि ..
जो तौर है दुनिया का उस तौर से बोलो
बहरों की बस्ती है जरा जोर से बोलो !
मगर कितने जोर से ? 2014 में निर्भया बलात्कार हत्याकांड के बाद तो डेढ़ की जनता ने चिल्ला चिल्ला कर बोला ही था कि इस देश की जनता बेटियों के साथ ऐसा अत्याचार ऐसा अपराध बर्दाश्त नहीं करेगी उसके बावजूद आज लग रहा है कि इन्हें ठीक से सुनाई नहीं दिया अन्यथा ऐसा तो नहीं होता जो किरन नेगी के मामले में हुआ।
देश की सर्वोच्च अदालत ने नीचे की अदालत से सजा पाए, नीचे मतलब हाई कोर्ट, अपराधियों को बाइज्जत बरी कर दिया। उन अपराधियों को जिन्होंने स्वयं अपना जुल्म कबूल किया, उनकी निशानदेही पर शव बरामद हुआ, शव के पास उनका पर्स मिला, अपहरण में प्रयुक्त हुई गाड़ी का टूटा हुआ बम्पर शव के पास मिला, गाड़ी से खून के धब्बों का मिलान हुआ वह मिला। शव से मिले सीमन से अपराधियों के सीमन का मिलान हुआ। गवाहियां हुईं उसके बावजूद अपराधी छोड़ दिये गए। अब इसके बाद न्याय के लिए 8 सालों से भटक रहे, धक्के खा रहे, गरीब मां बाप क्या करें ? कहां जांय ?
09 फरवरी 2012 को दिल्ली में दफ्तर से लौट रही किरण नेगी को हनुमान चौक, कुतुब विहार छवाला में एक लाल की इंडिका कार में अगवा कर लिया गया। साथ चल रही सहेलियों ने पुलिस को सूचना दी। इस शिकायत के आधार पर अपहरण की एफ़आईआर दर्ज हुई। 12 फरवरी 2012 को मुख्य आरोपी राहुल को लाल रंग की इंडिका कार के साथ पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। पुलिस के ब्यौरे के अनुसार राहुल ने पुलिस को बताया कि उसने अपने भाई रवि और एक अन्य व्यक्ति विनोद उर्फ छोटू के साथ युवती को कुतुब विहार से उठाया, उसके साथ बलात्कार किया और उसकी हत्या करके शव झज्झर के खेतों में फेंक दिया। पुलिस ने रवि और विनोद को भी गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने रवि और विनोद के साथ जा कर शव भी बरामद कर लिया।
फास्ट ट्रैक कोर्ट ने माना कि मृतका का अपहरण लाल रंग की इंडिका में किया गया था। कार में महिला के बाल मिले थे, जिनके डीएनए का मिलान करने पर मृतका के डीएनए से मिल गए, जिसका अर्थ है कि वे मृतका के ही बाल थे। कार में आरोपी राहुल का वीर्य मिला। मृतका का शव रवि और विनोद ने बरामद करवाया। तीनों आरोपियों ने मृतका के सिर पर वह जगह बताई, जहां वार करके मृतका की हत्या की गयी थी। जैक और पाना मिला जिस पर मृतका का खून लगा था और पोस्ट्मॉर्टेम करने वाले डॉक्टर ने कहा था कि मृतका के शरीर पर घाव इस जैक और पाने के हो सकते हैं। ऐसे ही कुछ अन्य सबूतों के आधार पर निचली अदालत ने आरोपियों को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड दिया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन्हीं सबूतों पर विश्वास करने के साथ ही पाया कि मृतका के शरीर पर जो बाल पाये गए थे, उनका डीएनए आरोपी रवि से मिलता है और कार में जो वीर्य मिला उसका डीएनए आरोपी विनोद से मिलता है। ये सबूत निचली अदालत की नजर में नहीं आए थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा कि आरोपियों की शिनाख्त, गवाह बनाए गए प्रत्यक्षदर्शी नहीं कर पाये। उच्चतम न्यायालय के अनुसार पुलिस ने आरोपियों की शिनाख्त परेड नहीं करवाई। इसी तरह की बात लाल रंग की इंडिका कार और उसमें आरोपी राहुल की गिरफ्तारी के संबंध में भी कही गयी है। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के अभियोजन पक्ष के दावे को उच्चतम न्यायालय ने संदिग्ध पाया। उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार मृतका के शरीर पर अभियुक्त के बाल की बरामदगी संदेहास्पद है क्यूंकि मृतका का शरीर तीन दिन तक खुले में पड़ा रहा। डीएनए प्रोफ़ाइलिंग और अन्य सैंपल परीक्षण को भेजे जाने से पहले उनके कई दिन तक पुलिस मालखाने में रहने से उनके साथ छेड़छाड़ होने की आशंका और ऐसी ही कई अन्य आशंकाएं उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में प्रकट की हैं।
ऐसी तमाम बातों के आधार पर उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ इस नतीजे पर पहुंची कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में नाकामयाब रहा है, इसलिए उच्चतम न्यायालय ने उनको बरी कर दिया। जब सर्वोच्च अदालत में ऐसे सबूतों के साथ अपराधी छूट सकते हैं तब अंकिता भंडारी के हाई प्रोफाइल गुनाहगारों को,जो सत्ता द्वारा संरक्षित हों, जिनके अपराध के सारे साक्ष्य एक-एक कर नष्ट कर दिए गए हों, को सजा मिलेगी इसकी कोई उम्मीद है ?
वे सौ प्रतिशत वे छूटेंगे। अंकित आर्य के पिता विनोद आर्य का जो आत्मविश्वाश से भरा बयान गिरफ्तारी के वक़्त आया कि बच्चा मासूम है छूट के आएगा। वो यूं ही न था। उनको पता है, उसकी पार्टी सत्ता में है, सैटिंग कहां कैसे करनी है। वरना प्रदेश के पुलिस का मुखिया क्या यूं ही कह दे रहा है कि वी आई पी का मतलब कमरा है।
इसलिए अंकिता के न्याय के लिए जरूरी है कि किरण को न्याय मिले और किरन के न्याय के लिए जरूरी है कि न्याय का राज स्थापित हो। अन्यथा अदालत का फर्ज अगर सिर्फ फैसला देना नहीं न्याय करना होता तो क्या वे सिर्फ पर्याप्त सबूत न मिलने के आधार पर अपराधियों को बरी कर अपने फर्ज से, जिम्मेदारी से मुक्त हो सकते थे ? नहीं। वे यह भी प्रावधान करते कि किरण के हत्यारे बेखौफ आज़ाद न घूमें। न्याय का तकाजा था कि वे उच्च स्तरीय जांच का ऐलान कर, पर्याप्त साक्ष्य जमा करने की गारंटी करते, न्याय सुनिश्चित करते किन्तु नहीं किया।
निर्भया हत्याकांड 2014 के बाद, जो जनता का आक्रोश था उसका जो दबाब था, कम हुआ है। उसे पुनः खड़ा किये जाने, सरकारों को न्याय और बेटियों के खिलाफ हो रहे अपराधों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए फिर से सड़कों पर आने बोलने लड़ने की जरूरत आज है। उसके बगैर न अदालतें जिम्मेदार होंगी न सत्ता सरकारें।
One Comment
ksinha2000@hotmail.com
Very nice. Efforts have to be sustained.